सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? “ओशो”

 सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? “ओशो”

ओशो– नये वर्ष के नये दिन पर पहली बात तो यह कहना चाहूंगा कि दिन तो रोज ही नया होता है, लेकिन रोज नये दिन को न देख पाने के कारण हम वर्ष में कभी-कभी नये दिन को देखने की कोशिश करते हैं। अपने को धोखा देने की तरकीबों में से एक तरकीब यह भी है। दिन तो कभी भी पुराना नहीं लौटता, रोज ही नया होता है। हर पल और हर क्षण नया होता है। लेकिन हमने अपनी पूरी जिंदगी को पुराना कर डाला है। उसमें नये की तलाश मन में बनी रहती है। तो वर्ष में एकाध दिन नया दिन मान कर अपनी इस तलाश को पूरा कर लेते हैं।लेकिन सोचने जैसा है जिसका पूरा वर्ष पुराना होता हो उसका एक दिन नया कैसे हो सकता है? जिसकी एक वर्ष की पुराना देखने की आदत हो वह एक दिन को नया कैसे देख पाएगा? मैं कल तक जो रोज हर दिन को, हर सुबह को पुराना देखा हूं आज की सुबह को नया कैसे देख सकूंगा?

मैं ही देखने वाला हूं। और मेरा जो मन हर चीज को पुरानी कर लेता है वह आज को भी पुराना कर लेगा। तब फिर नये का धोखा पैदा करने के लिए नये कपड़े हैं, उत्सव है, मिठाइयां हैं, गीत हैं; फिर नये का हम धोखा पैदा करना चाहते हैं। लेकिन न नये कपड़ों से कुछ नया हो सकता है, न नये गीतों से कुछ हो सकता है।
नया मन चाहिए! और नया मन जिसके पास हो, उसे कोई दिन कभी पुराना नहीं होता। और जिसके पास ताजा मन हो, फ्रेश माइंड हो, वह हर चीज को ताजी और नई कर लेता है। लेकिन ताजा मन हमारे पास नहीं है। तो हम चीजों को नई करते हैं। मकान पर नया रंग-रोगन कर लेते हैं। पुरानी कार बदल कर नई कार लेते हैं। पुराने कपड़े की जगह नया कपड़ा कर लेते हैं। हम चीजों को नया करते रहते हैं, क्योंकि नया मन हमारे पास नहीं है।
नई चीजें कितनी देर धोखा देंगी? नया कपड़ा कितनी देर नया रहेगा? पहनते ही पुराना हो जाता है। नई कार कितनी देर नई रहेगी? पोर्च में आते ही पुरानी हो जाती है। कभी सोचा है यह कि नये और पुराने होने के बीच में कितना फासला होता है? जब तक जो नहीं मिला है, नया होता है; मिलते ही पुराना हो जाता है। अगर नई कार खरीद लाए हैं, तो कल तक सोचा था कि नई कार कैसे आए, और आज से ही सोचना शुरू कर देंगे कि और नई कैसे आए! इससे छुटकारा कैसे हो!
चीजों को नया करने वाली इस वृत्ति ने सब तरफ जीवन को बड़ी कठिनाई में डाल दिया है। क्योंकि कार ही नई नहीं करनी पड़ेगी, पत्नी भी नई लानी पड़ेगी। चीजें नई होनी चाहिए न! मकान को नया पोत कर नया कर लेने पर, नई कार खरीद लेने पर पत्नी भी खुश हो रही है, पति भी खुश हो रहा है। लेकिन उन्हें खयाल नहीं कि यह जो आदमी चीजों को नया करने में लगा है, यह एक पत्नी से जीवन भर राजी नहीं रह सकता, न यह पत्नी एक पति से जीवन भर राजी रह सकती है। क्योंकि नये होने का मतलब चीजें बदलना होता है। तो पहले पश्चिम में मकान बदले, कारें बदलीं, फिर अब आदमी बदलने लगे हैं। वह यहां भी होगा।
और नये की खोज जरूर है मन में, होनी भी चाहिए। लेकिन दो तरह की नये की खोज होती है। या तो स्वयं को नया करने की एक खोज होती है। और जो आदमी स्वयं को नया कर लेता है उसे कभी कोई चीज पुरानी होती ही नहीं। जो अपने मन को रोज नया कर लेता है उसके लिए हर चीज रोज नई हो जाती है, क्योंकि वह आदमी रोज नया हो जाता है। और जो अपने को नया नहीं कर पाता उसके लिए सब चीजें पुरानी ही होती हैं। थोड़ी देर धोखा दे सकता है नये से, लेकिन थोड़ी देर बाद सब चीज पुरानी पड़ जाती है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३