एक्टोपिक प्रेग्नेंसी : एक ऐसा गर्भधारण जो खुशी की जगह समस्या का बन सकता है कारण, जानें इसके कारण, लक्षण व उपचार “गायनेकॉलोजिस्ट डाॅ. मोनीदीपा शाहा”
भिलाई– गर्भवती महिलाओं के लिए सही दावा और सही इलाज कितना जरूरी होता है यह हम सब जानते हैं। गर्भधारण एक सुखद एहसास है, लेकिन यदि प्रेगनेंसी सामान्य की जगह एक्टोपिक हो तो सुखद एहसास एक दुखद समस्या बन सकता है। आमतौर पर महिलाएं घर पर प्रेगनेंसी टेस्ट करके यह जान तो लेती हैं कि वे प्रेगनेंट है, लेकिन ऐसा करने से गड़बड़ी का पता नहीं चलता है। गर्भधारण की समस्याओं में एक्टोपिक प्रेगनेंसी भी एक है।
भिलाई स्पर्श हॉस्पिटल की एक्सपर्ट डॉक्टर व गायनेकॉलोजिस्ट मोनीदीपा शाहा बता रही हैं क्या है एक्टोपिक प्रेग्नेंसी। डॉ. शाहा के अनुसार स्पर्श हॉस्पिटल में इस समस्या से ग्रसित 100 से ज्यादा ऐसे केस आ चुके हैं, जो जान के जोखिम तक पहुंच चुके थे।क्या है एक्टोपिक प्रेग्नेंसी
डॉक्टर मोनीदीप शाहा के अनुसार एक्टोपिक प्रेग्नेंसी में फर्टिलाइज एग गर्भाशय से जुड़ने के बजाय फैलोपियन ट्यूब, एब्डोमिनल कैविटी या गर्भाशय ग्रीवा से जाकर जुड़ जाता है। यह 100 में से एक प्रेगनेंट महिला को हो सकता है।
क्यों होती है यह दिक्कत
डॉ. शाहा के मुताबिक इसके बहुत से कारण हो सकते हैं। जैसे पेल्विक इंफ्लामेट्री डिजीज, अधिक धूम्रपान, सही समय से अधिक उम्र में प्रेगनेंसी, यौन संक्रमित रोग, फर्टिलिटी दवाओं का सेवन, आईवीएफ जैसी फर्टिलिटी ट्रीटमेंट या अन्य ऐसे तमाम कारणों से एक्टोपिक प्रेग्नेंसी हो सकती है।
कब शुरू होते है इसके लक्षण
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के लक्षण आमतौर पर गर्भावस्था के चौथे और 12वें सप्ताह के बीच दिखाई पड़ने लगते हैं। वहीं कुछ महिलाओं में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते।
ये दिखते हैं असर
–वेजाइना से ब्लीडिंग
–यानि पैल्विक क्षेत्र में दर्द होना
–जी मचलना या उल्टी होना
–चक्कर आना या कमजोरी
–शरीर में दर्द
–पीरियड न आना
–लॉ ब्लड प्रेशर
एक्टोविक प्रेग्नेंसी का उपचार
अंडा गर्भाशय के बाहर सामान्य रूप से विकसित नहीं हो सकता। इससे जान का खतरा भी हो सकता है। इसमें बनने वाले एक्टोपिक ऊतक सर्जरी द्वारा हटाकर एक्टोपिक प्रेगनेंसी का उपचार किया जाता है। बस इसका समय पर पता लगा लिया जाए।
क्या एक्टोपिक प्रेग्नेंसी से बच्चा हो सकता है
दुर्भाग्यवश नहीं, इस अवस्था में भ्रूण को नहीं बचाया जा सकता। क्योंकि इसमें भ्रूण के बढ़ने से पहले ही उसे हटाना पड़ता है। ऐसा न किया जाए तो ट्यूब फट सकती है।
दोबारा कंसीव करने का सही समय
ऐसे केस में सर्जरी होने की वजह से महिला को कम से कम एक से डेढ़ महीने रेस्ट लेना चहिए। सर्जरी के बाद दोबारा कंसीव करने के लिए महिला को आमतौर पर किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती। ऐसी कई महिलाएं हैं जो इस सर्जरी के बाद भी सफल प्रेग्नेंसी के चलते एक स्वस्थ बच्चे की मां बनी हैं।