इस खयाल में मत रहना कि जो भीतर जेल में बंद हैं वे ही चोर हैं, जो पकड़ जाते हैं वे बंद हैं, जो नहीं पकड़ते वे बाहर हैं, बड़े चोर इतिहास बनाएंगे, छोटे चोर कारागृहों में बंद होंगे “ओशो”
प्रश्न– एक और छोटा सा प्रश्न है और बहुत बढ़िया हैः एक उलझन है कि मेरे मन में चोरी करने का भाव हो उठता है, खर्च की कमी रहती है इसलिए मुझसे चोरी हो जाती है। इस बात का कृपया उपाय बतलाएं कि इस चोरी से कैसे मुक्त हुआ जाए?
ओशो– बड़ी ईमानदारी की बात पूछी है, इसलिए बहुत अच्छी है। क्योंकि लोग भगवान की बातें पूछते हैं, पुनर्जन्म की बातें पूछते हैं। यह तो कोई पूछता ही नहीं कि मैं चोर हूं। जो आदमी यह पूछता है उसकी जिंदगी में कुछ हो सकता है। उसकी जिंदगी का प्रश्न सच्चा है और सीधा है। उसे कोई चीज खटक रही है जिंदगी में, वह उस पर विचार कर रहा है। लेकिन दूसरे लोग तो विचार कर रहे हैं–आत्मा अमर है या नहीं? और भगवान है तो किस शास्त्र में है? ये सब झूठे प्रश्न हैं। ये वास्तविक प्रश्न नहीं हैं। वास्तविक प्रश्न तो जिंदगी के होते हैं–कि मेरे भीतर बेईमानी है, मेरे भीतर क्रोध है, मुझे चोरी हो आती है, मैं क्या करूं?चोरी तो रहेगी। जब तक चेतना बाहर की तरफ गति करती है, चोरी रहेगी। यह मत सोचना कि जो जेलों में बंद हैं वे ही चोर हैं। जो पकड़ जाते हैं वे बंद हैं, जो नहीं पकड़ते वे बाहर हैं। इस खयाल में मत रहना कि जो भीतर जेल के बंद हैं वे ही चोर हैं। जो पकड़ जाते हैं वे बंद हैं बेचारे; वे जरा कमजोर चोर हैं या नासमझ चोर हैं; होशियार नहीं हैं, बहुत चालाक नहीं हैं। जो चालाक हैं, होशियार हैं, वे बाहर हैं। जो उनसे भी ज्यादा चालाक हैं वे मजिस्ट्रेट हैं। जो उनसे भी ज्यादा चालाक हैं वे पुरोहित हैं, जो उनसे भी ज्यादा चालाक हैं वे साधु हैं। चोर सब हैं, क्योंकि जिसकी चेतना बाहर की तरफ बह रही है वह बिना चोरी किए बच नहीं सकता।
एक दफा ऐसा हुआ कि सिकंदर के पास हिंदुस्तान से लौटते वक्त उसके फौजी पड़ाव में एक डाकू ने डाका डाल दिया। रात फौजें सोई थीं, वह सामान चुरा कर ले गया। सिकंदर बहुत हैरान हुआ, उसने कहा, हद्द हो गई। सुबह वह डाकू पकड़ कर लाया गया। सिकंदर ने कहा कि तुम कैसे बदतमीज हो! कैसे अनैतिक व्यक्ति हो!
उस डाकू ने कहा कि नहीं, ऐसा व्यवहार न करें। जैसा एक बड़ा भाई छोटे भाई के साथ व्यवहार करता है वैसा व्यवहार करें।
सिकंदर ने कहा, तू मेरा छोटा भाई कैसे?
उसने कहा, तुम बड़े डाकू हो, तुम्हें दुनिया मानती है। हम छोटे डाकू हैं, हमें मानती नहीं। हम जरा कमजोर हैं, शक्तिहीन हैं, हम छोटे-मोटे डाके डालते हैं। तुम बड़े डाके डालते हो, तुम बादशाह हो। तुम भी वही करते हो, हम भी वही करते हैं।
आपके बड़े से बड़े राजा भी चोरी करते रहे हैं। चोरी न करें तो राजा कैसे हो जाएंगे? हां, उनकी चोरी स्वीकृत है, क्योंकि वे बड़े चोर हैं और ताकतवर चोर हैं। इसलिए वे हड़प लेते हैं तो उसको जीत कहा जाता है। वे जमीन बढ़ा लेते हैं तो उसको राज्य कहा जाता है। आप बगल वाले की जमीन दबाएंगे तो चोर समझे जाएंगे; आप बगल वाले की जेब में हाथ डालेंगे तो चोर समझे जाएंगे। और सब राजा आपकी जेबों में हाथ डाले रहे, नहीं तो उनके पास आता कहां से? वे बड़े चोर हैं, वे स्वीकृत चोर हैं, समाज उनको मान्यता देता है। और क्यों? क्योंकि समाज उनसे डरता है। वे जो चाहते हैं मनवा लेते हैं।
नेपोलियन ने कहा है कि जो मैं कह दूं वही कानून है।
तो ठीक कहा है, जो ताकतवर कह दे वह कानून है। दुनिया में दो तरह के चोर रहे–ताकतवर और कम ताकतवर। कम ताकतवर सजा भोगते हैं, ताकतवर अपनी चोरी का पुण्य यहीं लूटते हैं, मजा करते हैं। और उन ताकतवरों ने बड़ी होशियारी की बातें की हैं कि उन्होंने पुरोहितों को भी मना लिया है। क्योंकि उनकी चोरी में भागीदार ये भी हैं, पुरोहित भी उनकी चोरी में भागीदार हैं, तो इनको भी मना लिया है। इनसे वे यह कहते हैं कि जिनके पास नहीं है वे पिछले जन्मों के पाप का फल भोग रहे हैं और हमारे पास है तो हम पिछले जन्मों के पुण्य का फल भोग रहे हैं।
जब कि असलियत यह है कि या तो उनके बापों के पाप का फल है उनकी संपत्ति या उनके और बापों के या उनके खुद के। बिना पाप के संपत्ति इकट्ठी होनी कठिन है, बिना चोरी के संपत्ति इकट्ठी नहीं होती। संपत्ति मात्र चोरी है। यह असंभव है। लेकिन जिनके पास संपत्ति है वे यह व्यवस्था करते हैं कि हमारी संपत्ति खो न जाए, चोरी न चली जाए। तो वे पुरोहितों को कहते हैं, लोगों को समझाओ कि चोरी बहुत बुरी चीज है, चोरी बहुत पाप है। ताकि जिनके पास नहीं है वे दूर रहें, डरे हुए रहें। पुलिस है, अदालत है, सब है। लेकिन फिर भी डर है कि फिर भी आदमी चोरी करने को राजी हो जाए। इसलिए बचपन से उसके भीतर कांशियंस पैदा करता है समाज–कि देखो, चोरी बहुत बुरी चीज है। चोरी बहुत बुरी चीज है, मतलब जिनके पास संपत्ति है उनसे मत लेना।
लेकिन उनके पास संपत्ति कैसे आ गई? उनके पास संपत्ति कैसे आ गई? उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए यह भी व्यवस्था कर रखी है कि चोरी मत करना। यह संपत्ति का जो केंद्रीकरण है उसने ही ‘चोरी न करना’ इसको प्रचारित किया हुआ है। लेकिन उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि शोषण मत करना। अभी तक दुनिया के किसी धर्मग्रंथ में यह नहीं लिखा है कि शोषण करना पाप है। लिखा है चोरी करना पाप है। शोषण करना पाप नहीं है। जब कि शोषण के कारण ही चोरी पैदा होती है। नहीं तो चोरी पैदा क्यों होगी? अगर दुनिया में शोषण नहीं होगा, चोरी नहीं होगी।
कनफ्यूशियस हुआ चीन में। उसकी अदालत में एक मुकदमा आया। अदालत में मुकदमा यह था कि एक आदमी ने चोरी की थी। उस पर मुकदमा था, चोरी पकड़ गई थी, संपत्ति भी पकड़ गई थी। कनफ्यूशियस ने फैसला दिया–ढाई हजार साल पहले फैसला दिया, अदभुत फैसला दिया, मैं भी उसकी जगह होता तो वही फैसला देता, हालांकि अभी तक दुनिया उससे राजी नहीं कि उसने ठीक किया–उसने छह महीने की सजा साहूकार को दे दी और छह महीने की सजा चोर को दे दी।
साहूकार हैरान हुआ कि तुम्हारा दिमाग खराब है? मेरी संपत्ति चोरी जाए और मुझे सजा! यह कौन से कानून में लिखा हुआ है?
उसने कहा कि तुम्हारे पास इतनी संपत्ति इकट्ठा होना ही चोरी का बुनियादी कारण है। इस गांव में तुम्हारे पास इतनी संपत्ति इकट्ठी हो गई है कि बाकी लोग भी चोरी नहीं कर रहे हैं, यही आश्चर्य की बात है।
जीवन की धारा एकदम गलत है, एकदम गलत है, उसमें सब चोरी कर रहे हैं। इसलिए जिसको यह खयाल आ गया है कि मुझसे चोरी हो रही है, मैं क्या करूं? उसके भीतर एक चिंतन तो पैदा हुआ है। कुछ हो सकता है। लेकिन चोरी की बहुत फिक्र न करें, चोरी से तो वह नहीं बच सकेगा। मान्य चोरी करेगा, अमान्य चोरी करेगा, चोरी से तो नहीं बच सकेगा, जब तक कि उसकी चेतना-धारा बाहर की तरफ बहती है।
चेतना की धारा भीतर की तरफ बहे तो चोरी बंद होती है। चोरी बंद होती है। उसके बिना चोरी बंद नहीं हो सकती। दुनिया में अगर कभी भी चोरी समाप्त होगी तो वह तभी जब अधिक जीवन अंतर्गामी होंगे। बहिर्गामी होंगे, चोरी बंद नहीं हो सकती। हां, छोटी चोरियां पकड़ी जाती रहेंगी, बड़ी चोरियां सम्मानित होती रहेंगी। बड़े चोर इतिहास बनाएंगे, छोटे चोर कारागृहों में बंद होंगे। यह होगा, लेकिन चोरी बंद नहीं होगी। चाहे समाजवाद आ जाए तो भी चोरी बंद नहीं होगी। चोरी की शक्लें बदल जाएंगी। शक्लें दूसरी हो जाएंगी, लेकिन चोरी होगी..।
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3
गिरह हमारा सुन्न मे (प्रवचन-7)