सूफी फकीर जलालुद्दीन’ रूमी ने कहा है–लोग प्रार्थनाएँ करते हैं ताकि परमात्मा को बदल दें “ओशो”
ओशो- सूफी फकीर जलालुद्दीन’ रूमी ने कहा है–लोग प्रार्थनाएँ करते हैं ताकि परमात्मा को बदल दें। पत्नी बीमार है–अगर उसकी आज्ञा से ही पत्ता हिलता है, तो उसकी आज्ञा से ही पत्नी बीमार होगी-आप गये प्रार्थना करने, जरा सुझाव देने कि बदलो यह इरादा, मेरी पत्नी बीमार नहीं होनी चाहिए, यह भूल-चूक सुधार लो– ‘ अल्टीमेटम ‘ देने चले गये, कि नहीं तो फिर दुबारा मुझसे बुरा कोई नहीं। कि मेरी श्रद्धा डगमगाने लगी है अब। या तो मेरी पत्नी ठीक हो, या फिर कभी भरोसा न कर सकूँगा कि तुम हो। हो तो प्रमाण दो! कि घर पहुँचूँ कि पत्नी ठीक हो जाए। कि मैं गरीब हूँ, धन चाहिए। कि चुनाव में खड़ा हुआ हूँ, इस बार तो जिता ही दो।तुमने कुछ माँगा, तो उसका अर्थ हुआ कि तुम परमात्मा को बदलने गये। उसका इरादा मेरे अनुसार चलना चाहिए। यh प्रार्थना हुई। तुम परमात्मा से अपने को ज्यादा समझदार समझ रहे हो? तुम सलाह दे रहे हो? यह अपमान हुआ। यह नास्तिकता है, आस्तिकता नहीं है। आस्तिक तो कहता है–तेरी मर्जी, ठीक। तेरी मर्जी ही ठीक! मेरी मर्जी सुनना ही मत। मैं कमजोर हूँ और कभी-कभी बात उठ पाती है, मगर मेरी सुनना ही मत, क्योंकि मेरी सुनी तो सब भूल हो जाएगी। मैं समझता ही क्या हूँ? तू अपनी किये चले जाना। तू जो करे, वही ठीक है। ठीक की और कोई परिभाषा नहीं है, तू जो करे वही ठीक है।
जलालुद्दीन रूमी ने कहा–लोग जाते हैं प्रार्थना करने ताकि परमात्मा को बदल दें। और, उसने यह भी कहा कि असली प्रार्थना वह है जो तुम्हें बदलती है, परमात्मा को नहीं। यह बात समझने की है–असली प्रार्थना वह है जो तुम्हें बदलती है। प्रार्थना करने में तुम बदलते हो। परमात्मा सुनता है कि नहीं, यह फिकर नहीं, तुमने सुनी या नहीं? तुम्हारी प्रार्थना ही अगर तुम्हारे हृदय तक पहुँच जाए, सुन लो तुम. तो रूपांतरण हो जाता है।
प्रार्थना का जवाब नहीं मिलता
हवा को हमारे शब्द
शायद आस-मान में
हिला जाते हैं
मगर हमें उनका उत्तर नहीं मिलता
बंद नहीं करते तो भी हम प्रार्थना
मंद नहीं करते हम अपने प्रणिपातों की गति धीरे-धीरे
सुबह-शाम ही नहीं
प्रतिपल.
प्रार्थना का भाव हममें जागता रहे
ऐसी एक कृपा हमें मिल जाती है
खिल जाती है
शरीर की कँटीली झाड़ी
प्राण बदल जाते हैं
तब वे शब्दों का उच्चारण नहीं करते
तल्लीन कर देने वाले स्वर गाते हैं
इसलिए मैं प्रार्थना छोड़ता नहीं हूँ
उसे किसी उत्तर से जोड़ता नहीं हूँ
प्रार्थना तुम्हारा सहज आनंदभाव। प्रार्थना साधन नहीं, साध्य। प्रार्थना अपने में पर्याप्त। अपने में पूरी, परिपूर्ण।
नाचो, गाओ आह्लाद प्रगट करो, उत्सव मनाओ। बस वहीं आनंद है। वही आनंद तुम्हें रूपांतरित करेगा। आनंद रसायन है। उसी आनंद में लिप्त होते-होते तुम पाओगे-अरे, परमात्मा तक पहुँचे या नहीं, इससे क्या प्रयोजन है, मैं बदल गया, मैं नया हो आया.! प्रार्थना स्नान है आत्मा का। उससे तुम शुद्ध होओगे, तुम निखरोगे। और एक दिन तुम पाओगे कि प्रार्थना निखारती गयी, निखारती गयी, निखारती गयी एक दिन अचानक चौंक कर पाओगे कि तुम ही परमात्मा हो। इतना निखार जाती है प्रार्थना कि एक दिन तुम पाते हो तुम ही परमात्मा हो।
और जब तक यह न जान लिया जाए कि मैं परमात्मा हूँ’, तब तक कुछ भी नहीं जाना–या जो जाना, सब असार है।
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३