प्रश्न: आपने कहा कि सब मन के रोग प्रेम की कमी से पैदा होते हैं?
ओशो- निश्चित ही मन के सभी रोग प्रेम की कमी से पैदा होते हैं। लेकिन इस सत्य को समझना पड़े। जीवन में तीन घटनाएं हैं, जो बहुमूल्य हैं: जन्म, मृत्यु और प्रेम। और जिसने इन तीनों को समझ लिया उसने सब समझ लिया। जन्म है शुरुआत, मृत्यु है अंत, प्रेम है मध्य। जन्म और मृत्यु के बीच जो डोलती लहर है, वह प्रेम है।इसलिए प्रेम बड़ा खतरनाक भी है। क्योंकि उसका एक हाथ तो जन्म को छूता है और एक हाथ मृत्यु को। इसलिए प्रेम में बड़ा आकर्षण है और बड़ा भय भी। प्रेम में आकर्षण है जीवन का, क्योंकि उससे ऊंची जीवन की कोई और अनुभूति नहीं है। इसलिए जीसस ने तो परमात्मा को प्रेम कहा। वस्तुतः प्रेम को परमात्मा कहा। बड़ी ऊंची तरंग है उसकी। उससे ऊंची कोई तरंग नहीं। कोई गौरीशंकर प्रेम के गौरीशंकर से ऊपर नहीं जाता। इसलिए बड़ा उद्दाम आकर्षण है प्रेम का। क्योंकि प्रेम जीवन है। लेकिन बड़ा भय भी है प्रेम का, क्योंकि प्रेम मृत्यु भी है।इसलिए लोग प्रेम करना भी चाहते हैं और बचना भी चाहते हैं। यही मनुष्य की विडंबना है। तुम एक हाथ बढ़ाते हो प्रेम की तरफ और दूसरा खींच लेते हो। क्योंकि तुम्हें जहां जीवन दिखाई पड़ता है उसी के पास लहर लेती मृत्यु भी दिखाई पड़ती है।
जो लोग जीवन और मृत्यु का विरोध छोड़ देते हैं, वे ही लोग प्रेम करने में समर्थ हो पाते हैं; जो यह बात समझ लेते हैं कि जीवन और मृत्यु विरोधी नहीं है। मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, वरन जीवन की ही परिपूर्णता है, परिसमाप्ति है। मृत्यु जीवन की शत्रु नहीं है, वरन जीवन का सार है, निचोड़ है। मृत्यु जीवन को मिटाती नहीं, थके जीवन को विश्राम देती है। जैसे दिनभर के श्रम के बाद रात्रि का विश्राम है, ऐसे जीवनभर के श्रम के बाद मृत्यु का विश्राम है।
मृत्यु के प्रति शत्रुता का भाव अगर तुम्हारे मन में है, तुम कभी प्रेम न कर पाओगे क्योंकि प्रेम में मृत्यु भी जुड़ी है। प्रेम संतुलन है जीवन और मृत्यु का, जन्म और मृत्यु का।
तो आकर्षित तो तुम होओगे लेकिन डरोगे भी। बढ़ोगे भी; बढ़ोगे भी नहीं। चाहोगे भी और इतना भी न चाहोगे, कि कूद पड़ो, छलांग ले लो। हमेशा अटके रहोगे, झिझके रहोगे, खड़े रहोगे किनारे पर। नदी में न उतरोगे प्रेम की।
और जब तुम प्रेम से वंचित रह जाओगे, तो तुम्हारे जीवन में हजार-हजार रोग पैदा हो जाएंगे। क्योंकि जो प्रेम से वंचित रहा, उसका जीवन घृणा से भर जाएगा। वही ऊर्जा जो प्रेम बनती, सड़ेगी, घृणा बनेगी। जो प्रेम से वंचित रहा, उसके जीवन में एक चिड़चिड़ाहट और एक क्रोध की सतत धारा बहने लगेगी। क्योंकि वही ऊर्जा जो बहती है, तो सागर तक पहुंच जाती, बंद हो गई। डबरा बनेगी, सड़ेगी–बहाव चला गया।
जीवन का अर्थ है, बहाव, सतत सातत्य, सिलसिला, बहते ही जाना। जब तक कि सागर ही द्वार पर न आ जाए तब तक रुकना नहीं। जो प्रेम से डरा, वह रुक गया। वह सिकुड़ गया, उसका फैलाव बंद हो गया।