जैसा हम संघर्ष करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं (युवक कौन) “ओशो संभोग से समाधि की ओर”

 जैसा हम संघर्ष करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं (युवक कौन) “ओशो संभोग से समाधि की ओर”

ओशो- पहली बात, जिन्दगी पर ध्यान चाहिए। मेडीटेशन आन लाइफ, मौत पर नहीं। तो आदमी जवान से जवान होता चला जाता है। बुढ़ापे के अंतिम क्षण तक मौत द्वार पर भी खड़ी हो तो वैसा आदमी जवान होता है।दूसरी बात, जो आदमी जीवन में सुंदर को देखता है, जो आदमी जवान है; वह आदमी असुंदर को मिटाने के लिए लड़ता भी है। जवानी फिर देखती नहीं, जवानी लड़ती भी है।

जवानी स्पेक्टेटर नहीं, जवानी तमाशबीन है कि तमाशा देख रहे हैं खड़े होकर।
जवानी का मतलब है जीना, तमाशगीरी नहीं।
जवानी का मतलब है सृजन।
जवानी का मतलब है सम्मिलित होना, पार्टिसिपेशन।

जिस आदमी को सौंन्दर्य से प्रेम है, जिस आदमी को जीवन का आल्हाद है, वह जीवन को बनाने के लिए श्रम करता है, सुन्दर बनाने के लिए श्रम करता है। वह जीवन की कुरूपता से लड़ता है, वह जीवन को कुरूप करने वालों के खिलाफ विद्रोह करता है। कितनी कुरूपता है समाज में और जिन्दगी में?

सौंदर्य से प्रेम का मतलब है? सौंदर्य को पैदा करो, क्रियेट, करो; जिन्दगी को सुंदर बनाओ। आनंद की उपलब्धि और आनंद की आकांक्षा और अनुभूति को बिखराओ। फूलों को चाहते हो तो फूलों को पैदा करने की चेष्टा में संलग्र हो जाओ। जैसा तुम चाहते हो जिन्दगी को वैसी बनाओ।
जवानी मांग करती है कि तुम कुछ करो, खड़े होकर देखते मत रहो।

हिन्दुस्तान की जवानी तमाशबीन है। हम ऐसे रहते हैं खड़े होकर जीवन में, जैसे कोई जुलूस जा रहा है। वैसे रुके हैं, देख रहे हैं; कुछ भी हो रहा है! शोषण हो रहा है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! बेवकूफियां हो रही हैं, जवान खड़ा देख रहा है! बुद्धिहीन लोग देश को नेतृत्व दे रहे हैं, जवान खड़ा देख रहा है। जड़ता धर्मगुरु बनकर बैठी है, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! सारे मुल्क के हितों को नष्ट किये जा रहे हैं, जवान खड़ा हुआ देख रहा है! यह कैसी जवानी है?

कुरूपता से लड़ना पड़ेगा, असौंदर्य से लड़ना पड़ेगा, शोषण से लड़ना पड़ेगा, जिन्दगी को विकृत करने वाले तत्वों से लड़ना पड़ेगा। जो आदमी जवान होता है, वह सागर की लहरों और तूफानों में जीता है, फिर आकाश में उसकी उड़ान होनी शुरू होती है। लेकिन लड़ोगे तुम? व्यक्तिगत लड़ाई ही नहीं हैं यह, सामूहिक लड़ाई की बात है। कोई फाइट नहीं!
और बिना फाइट के, बिना लड़ाई के, जवानी निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ाई के बिना निखरती नहीं। जवानी सदा लड़ती है और निखरती है, जितनी लड़ती है, उतनी निखरती है। सुंदर के लिए, सत्य के लिए जवानी जितनी लड़ती है, उतनी निखरती है। लेकिन क्या लड़ोगे?

तुम्हारे पिता आ जायेंगे, तुम्हारी गर्दन में रस्सी डालकर कहेंगे, इस लड़की से विवाह करो और तुम घोड़े पर बैठ जाओगे! तुम जवान हो? और तुम्हारे बाप जाकर कहेंगे कि दस हजार रुपये लेंगे इस लड़की के पिता से और तुम मजे से मन में गिनती करोगे कि दस हजार में स्कूटर खरीदें कि क्या करें? तुम जवान हो? ऐसी जवानी दो कौड़ी की जवानी है।

जिस लड़की को तुमने कभी चाहा नहीं, जिस लड़की को तुमने कभी प्रेम नहीं किया, जिस लड़की को तुमने कभी छुआ नहीं, उस लड़की से विवाह करने के लिए तुम पैसे के लिए राजी हो रहे हो? समाज की व्यवस्था के लिए राजी हो रहे हो? तो तुम जवान नहीं हो। तुम्हारी जिन्दगी में कभी भी वे फूल नहीं खिलेंगे, जो युवा मस्तिष्क छूता है। तुम हो ही नहीं; तुम एक मिट्टी के लौदें हो, जिसको कहीं भी सरकाया जा रहा हो, कहीं पर भी लिया जा रहा हो। कुछ भी नहीं तुम्हारे मन में, न संदेह है,न जिज्ञासा है, न संघर्ष है, न पूछ है, न इन्‍क्वायरी है कि यह क्या हो रहा है! कुछ भी हो रहा है, हम देख रहे हैं खड़े होकर! नहीं, ऐसे जवानी नहीं पैदा होती है।

इसलिए दूसरा सूत्र तुमसे कहता हूं और वह यह कि जवानी संघर्ष से पैदा होती है।
संघर्ष गलत के लिए भी हो सकता है और तब जवानी कुरूप हो जाती है। संघर्ष बुरे के लिए भी हो सकता है, तब जवानी विकृत हो जाती है। संघर्ष अधूरे की लिए भी हो सकता है, तब जवानी आत्मघात कर लेती है।
लेकिन संघर्ष जब सत्य के लिए, सुन्दर के लिए, श्रेष्ठ के लिए होता है, संघर्ष जब परमात्मा के लिए होता है, संघर्ष जब जीवन के लिए होता है; तब जवानी सुन्दर, स्वस्थ, सत्य होती चली जाती है।
हम जिसके लिए लड़ते हैं, अंततः वही हम हो जाते हैं।

लड़ो सुन्दर के लिए और तुम सुन्दर हो जाओगे। लड़ो सत्य के लिए और तुम सत्य हो जाओगे। लड़ो श्रेष्ठ के लिए तुम श्रेष्ठ हो जाओगे। और मरो—सड़ो तुम—खड़े—खड़े सडोगे और मर जाओगे और कुछ भी नहीं होओगे।
जिंदगी संघर्ष है और संघर्ष से ही पैदा होती है। जैसा हम संघर्ष करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं।

हिन्दुस्तान में कोई लड़ाई नहीं है, कोई फाइट नहीं है! सब कुछ हो रहा है, अजीब हो रहा है। हम सब हैं, देखते हैं, सब हो रहा है और होने दे रहे हैं! अगर हिन्दुस्तान की जवानी खड़ी हो जाय, तो हिन्दुस्तान में फिर ये सब नासमझियां नहीं हो सकती हैं, जो हो रही हैं। एक आवाज में टूट जायेंगी। क्योंकि जवान नहीं है, ‘ कुछ भी हो रहा है। मैं यह दूसरी बात कहता हूं। लड़ाई के मौके खोजना सत्य के लिए, ईमानदारी के लिए।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3
संभोग से समाधि कि ओर (ग्‍याहरवां प्रवचन)
युवक कौन