जीवन की गहरी से गहरी चोरी अनुकरण, नकल, अनुसरण है “ओशो”

 जीवन की गहरी से गहरी चोरी अनुकरण, नकल, अनुसरण है “ओशो”

ओशो- जब भी कोई व्यक्ति किसी और जैसा बनने की चेष्टा में रत होता है तभी गहरे में चोर हो जाता है। जब भी कोई व्यक्ति किसी और को अपने ऊपर ओढ़ लेता है, तो नकली हो जाता है, असली नहीं रह जाता। आथेंटिक, प्रामाणिक निजता उसकी खो जाती है।इसका यह अर्थ नहीं है कि दूसरों से आई हुई तरंगें हम ग्रहण न करें। इसका यह भी अर्थ नहीं है कि दूसरों से हम संबंधित न हों। दूसरों से हम जरूर ही संबंधित हों, लेकिन स्व को बचाते हुए। क्योंकि फिर संबंधित कौन होगा, अगर स्व भी खो गया। दूसरों से तरंगें आयेंगी, उन्हें लेना भी पड़ेगा; उन्हें लें जरूर, लेकिन वे तरंगें ही न बन जायें। उन्हें लें भी, दें भी; लेकिन उनके पार भी आप बचे रहें; उनसे अछूता भी पीछे कोई खड़ा रहे; उस सारे लेन-देन के बाद भी कोई बच जाये, जो लेन-देन के बाहर है।

अंग्रेजी में एक शब्द है–एक्सटेसी। हमारे पास एक शब्द है–समाधि। समाधि को जो लोग अंग्रेजी में रूपांतरित करते हैं, वे एक्सटेसी करते हैं। एक्सटेसी बड़ा अदभुत शब्द है। एक्सटेसी का मतलब है, बाहर खड़े होना, टु स्टैंड आउट साइड। एक्सटेसी का मतलब है, जीवन की सारी धारा में होते हुए भी हर पल बाहर खड़े होना। जीवन में बहते हुए, जीवन के बाहर भी हमारे भीतर कुछ रह जाये, वही हमारी निजता है, वही हमारा होना है। अगर हम जीवन में पूरी तरह खो गए हैं और हमारे पास हमारे संबंधों के अतिरिक्त कुछ भी न बचा, तो हमने अपनी आत्मा खो दी है।

आत्मा का और कोई अर्थ नहीं है। आत्मा का अर्थ ही यही है कि सब हो फिर भी भीतर, कुछ अछूता, अस्पर्शित, अनटच्ड, बाहर रह जाये। रास्ते पर चल रहे हैं; लेकिन चलते समय भी कुछ आपके भीतर होना चाहिए, जो नहीं चल रहा है। क्रोध से भरे हैं; लेकिन क्रोध से भरे क्षण में भी कोई आपके भीतर होना चाहिए, जो आपके क्रोध को भी देख रहा है। भोजन कर रहे हैं; भोजन करते समय भी कोई आपके भीतर होना चाहिए जो भोजन नहीं कर रहा है, बल्कि जो यह भी जान रहा है कि भोजन किया जा रहा है।

अगर प्रतिपल जीवन के अंतरजाल में हम अपने भीतर किसी को बचा पाते हैं, तो वह जो बचा हुआ है, जो शेष है, द रिमेनिंग, वही हमारी निजता है। उस निजता का जिसके पास अस्तित्व नहीं है, वह आदमी आदमी कहे जाने का हकदार नहीं रह जाता। उसके पास कोई आत्मा नहीं है। उसने अपनी आत्मा खो दी है।