ओशोः – “नाभि साधना” जिस व्यक्ति को भी जीवन केंद्रों को विकसित करना है और प्रभावित करना है, उसे पहली बात है, रिदमिक ब्रीदिंग, उसके लिए पहली बात है, लयबद्ध श्वास। चलते उठते बैठते इतनी लयबद्ध, इतनी शांत, इतनी गहरी श्वास कि श्वास का एक अलग संगीत, एक अलग हार्मनी दिन रात उसे मालूम होने लगे।आप चल रहे हैं रास्ते पर, कोई काम तो नहीं कर रहे हैं। बड़ा आनदपूर्ण होगा कि आप गहरी, शांत, धीमी और गहरी और लयबद्ध श्वास लें। दो फायदे होंगे। जितनी देर तक लयबद्ध श्वास रहेगी, उतनी देर तक आपका चिंतन कम हो जाएगा, उतनी देर तक मन के विचार बंद हो जाएंगे।
अगर श्वास बिलकुल सम हो, तो मन के विचार एकदम बंद हो जाते हैं, शांत हो जाते हैं। श्वास मन के विचारों को बहुत गहरे, दूर तक प्रभावित करती है। और श्वास ठीक से लेने में कुछ भी खर्च नहीं करना होता है। और श्वास ठीक से लेने में कोई समय भी नहीं लगाना होता है। श्वास ठीक से लेने में कहीं से कोई समय निकालने की भी जरूरत नहीं होती है। आप ट्रेन में बैठे हैं, आप रास्ते पर चल रहे हैं, आप घर में बैठे हैं धीरे धीरे अगर गहरी, शांत श्वास लेने की प्रक्रिया जारी रहे तो थोड़े दिन में यह प्रक्रिया सहज हो जाएगी। आपको इसका बोध भी नहीं रहेगा। यह सहज ही गहरी और धीमी चलने लगेगी। जितनी श्वास की धारा धीमी और गहरी होगी, उतना ही आपका नाभिकेंद्र विकसित होगा। श्वास प्रतिक्षण जाकर नाभिकेंद्र पर चोट पहुंचाती है। अगर श्वास ऊपर से ही लौट आती है, तो नाभिकेंद्र धीरे धीरे सुस्त हो जाता है, ढीला हो जाता है। उस तक चोट नहीं पहुंचती।…
उसमें गहरी श्वास पहली प्रक्रिया है। जितनी गहरी श्वास, जितनी लयबद्ध, जितनी संगतिपूर्ण, उतनी ही आपके भीतर जीवन चेतना नाभि के आसपास विकीर्ण होने लगेगी, फैलने लगेगी।
नाभि एक जीवित केंद्र बन जाएगी। और थोड़े ही दिनों में आपको नाभि से अनुभव होने लगेगा कि कोई शक्ति बाहर फिंकने लगी। और थोड़े ही दिनों में आपको यह भी अनुभव होने लगेगा कि कोई शक्ति नाभि के करीब आकर खींचने भी लगी। आप पाएंगे कि एक बिलकुल लिविंग, एक जीवंत, एक डाइनैमिक केंद्र नाभि के पास विकसित होना शुरू हो गया है। और जैसे ही यह अनुभव होगा, और बहुत से अनुभव इसके आस पास प्रकट होने शुरू हो जाएंगे।
फिजियोलॉजिकलि, शारीरिक रूप से श्वास पहली चीज है नाभि के केंद्र को विकसित करने के लिए। मानसिक रूप से कुछ गुण नाभि को विकसित करने में सहयोगी होते हैं। जैसा मैंने सुबह आपसे कहा, अभय, फियरलेसनेस। जितना आदमी भयभीत होगा, उतना ही आदमी नाभि के निकट नहीं पहुंच पाएगा। जितना आदमी निर्भय होगा, उतना ही नाभि के निकट पहुंचेगा।