ओशो- च्वांगत्से की पत्नी मर गई। च्वांगत्से तो ख्याति नाम संत था। सम्राट संवेदना प्रगट करने आया। तो सम्राट तैयार करके आया होगा।
जब भी संवेदना प्रगट करने कोई जाता है तो रिहर्सल कर लेता है, क्या कहना! क्योंकि संवेदना का क्षण इतना नाजुक, कि कहीं कुछ गलत बात न निकल जाये! तो हम तैयारी करके जाते हैं, क्या कहेंगे, कैसे कहेंगे। और संवेदना का क्षण बड़ा ही अटपटा। किसी के घर कोई मर जाये और तुम्हें जाना पड़ता है तो कैसी मुसीबत मालूम पड़ती है कि क्या करें! इसलिये लोग अकेले नहीं जाते, दस-पांच लोग जाते हैं। उसमें बोझ बंट जाता है। बातचीत चल जाती है। यहां-वहां की बातचीत करके तुम दुख प्रगट करके वापिस लौट आते हो।
सम्राट आया तो उदास चेहरा करके आया था। लेकिन यहां देखा कि फकीर च्वांगत्से एक झाड़ के नीचे बैठकर खंजड़ी बजा रहा है। सम्राट को थोड़ी चोट लगी। जब खंजड़ी बजाना बंद हुआ, उसने च्वांगत्से की तरफ देखा। वह प्रसन्न है, जैसा सदा था। तो सम्राट ने कहा कि यह जरा सीमा के बाहर है। दुखी मत होओ, चलेगा; लेकिन कम से कम खंजड़ी तो मत बजाओ। मत रोओ, चलेगा, लेकिन यह उत्सव मनाने का तो क्षण नहीं है!
च्वांगत्से ने कहा, या तो रोओ या उत्सव मनाओ। दो के बीच कोई जगह नहीं है। या तो ऊर्जा आंसू बनेगी, या ऊर्जा मुस्कुराहट बनेगी। दो के बीच कोई जगह नहीं है, जहां तुम खड़े हो जाओ।
तुमने कभी जीवन में ऐसी कोई जगह जानी है–दो के बीच? या तो तुम उदास होते तो या प्रसन्न; दो के मध्य क्या है? और कभी अगर तुम खयाल भी करते हो कि मैं मध्य में हूं तो तुम गौर से देखना, तुम उदास हो। मध्य में कोई होता ही नहीं। मध्य में कोई जगह ही नहीं है। या तो ऊर्जा बहती है आनंद की तरफ, या दुख की तरफ।
च्वांगत्से ने कहा, ‘मध्य में कोई जगह नहीं है। या तो खंजड़ी बजेगी, या आंसू बहेंगे। और आंसू बहाने की कोई जरूरत नहीं है; क्योंकि न कोई मरता है, न कोई कभी पैदा होता है। और फिर यह जो मेरी पत्नी थी, इसने मुझे इतना सुख दिया, इसे अगर मैं सुखपूर्वक बिदा भी न दे सकूं तो और मैं क्या कर सकता हूं!’
सम्राट बिना बोले वापिस लौट गया। दुबारा कभी च्वांगत्से को देखने नहीं आया। क्योंकि वह जो सब तैयार करके आया था, इसने सब गड़बड़ कर दिया।
तुम दुखी आदमी की तलाश में हो क्योंकि तुम्हें सेवा का मौका मिलता है, दया का मौका मिलता है। और दया में ऐसा मजा है अहंकार को, जिसका कोई हिसाब नहीं। तुम चाहते हो कि कोई मौका मिले, जब तुम दया कर सको। इसलिये तुम खयाल करो कि जब तुम पर कोई दया करता है तो तुम अच्छा अनुभव नहीं करते। जब तुम पर कोई दया बरसाता है तो तुम्हें भीतर पीड़ा होती है, तुम्हारे अहंकार को चोट लगती है। तुम भी परमात्मा से प्रार्थना करते हो, कोई मौका देना कि मैं भी दया कर सकूं इस पर। इसलिये तुम किसी को चोट पहुंचाओ, वे तुम्हें भला माफ कर दें, लेकिन तुमने जिस पर दया की है, वह तुम्हें कभी माफ नहीं करेगा।