शिक्षा के नाम पर बीमार आदमी तैयार करने की फैक्ट्रियां बढ़ती जा रही हैं “ओशो”

ओशो– अगर यही शिक्षा है तो भगवान करे कि सारी शिक्षा बंद हो जाए तो भी आदमी इससे बेहतर हो सकता है। जंगली आदमी शिक्षित आदमी से बेहतर है। उसमें ज्यादा प्रेम है और कम प्रतिस्पर्धा है, उसमें ज्यादा हृदय है और कम मस्तिष्क है; लेकिन इससे बेहतर वह आदमी है। लेकिन हम इसको शिक्षा कह रहे हैं! और हम करीब-करीब जिन-जिन बातों को कहते हैं कि तुम यह करना, उनसे उलटी बातें हम, पूरा सरंजाम हमारा, उलटी बातें सिखाता है!
आप क्या कहते हैं? आप सिखाते हैं उदारता, सहानुभूति। लेकिन प्रतियोगी मन, काम्पिटिटिव माइंड कैसे उदार हो सकता है? कैसे सहानुभूतिपूर्ण हो सकता है? अगर प्रतियोगी मन सहानुभूतिपूर्ण हो तो प्रतियोगिता कैसे चलेगी? प्रतियोगी मन कठोर होगा, हिंसक होगा, अनुदार होगा—होना ही पड़ेगा उसे। और हमारी व्यवस्था ऐसी है कि हमें पता भी नहीं चलेगा, हमें खयाल में भी नहीं आएगा कि यह हिंसक आदमी है, जो सारी भीड़ को हटा कर आगे जा रहा है। यह क्या है? यह हिंसक आदमी है और हम इसे सिखाए जा रहे हैं, हम इसे तैयार किए जा रहे हैं।
फैक्ट्रियां बढ़ती जा रही हैं इस तरह की शिक्षा की, उनको हम स्कूल कहते हैं, विद्यालय कहते हैं; यह सरासर झूठ है। ये सब फैक्ट्रियां हैं जिनमें एक बीमार आदमी तैयार किया जा रहा है और वह बीमार आदमी सारी दुनिया को गड्ढे में लिए जा रहा है। हिंसा बढ़ती जाती है, प्रतिस्पर्धा बढ़ती जाती है। एक-दूसरे के गले पर एक-दूसरे का हाथ है। आप यहां बैठे हैं, कहेंगे कि हमारा किसके गले पर हाथ है। लेकिन जरा गौर से देखें, हर आदमी का हाथ हर दूसरे आदमी के गले पर है और एक-एक गले पर हजार-हजार हाथ हैं और हर आदमी का हाथ दूसरे की जेब में है और एक-एक जेब में हजार-हजार हाथ हैं और यह बढ़ता जा रहा है। यह कहां जाएगा, यह कहां टूटेगा, यह कब तक चल सकता है, यह एटम और हाइड्रोजन बम कहां से पैदा हो रहे हैं?—प्रतियोगिता से, प्रतिस्पर्धा से! वह चाहे प्रतिस्पर्धा दो आदमियों की हो, चाहे दो राष्ट्रों की, कोई फर्क थोड़े ही है। वह रूस की हो या अमरीका की, कोई फर्क थोड़े ही है।
प्रतिस्पर्धा है, आगे होना है। अगर तुम एटम बम बनाते हो तो हम हाइड्रोजन बम बनाते हैं, तुम हाइड्रोजन बनाते हो तो हम कुछ और बनाएंगे, सुपर हाइड्रोजन बम बनाएंगे। लेकिन पीछे हम नहीं रह सकते। पीछे रहना हमें कभी सिखाया नहीं गया है। हमें आगे होना है। अगर तुम दस मारते हो हम बीस मारेंगे। अगर तुम एक मुल्क मिटाते हो तो हम दो मिटा देंगे। यानी हम इस तक के लिए राजी हो सकते हैं कि हम सबको मिटाने के लिए राजी हो सकते हैं, क्योंकि हम पीछे नहीं रह सकते। यह है और यह कौन पैदा कर रहा है! यह कहां से सारी बात आ रही है! यह शिक्षा से सारी बात आ रही है।
लेकिन हम अंधे हैं और हम यह देखते नहीं कि मामला क्या है। बच्चों को हम क्या सिखाते हैं? उनको सिखाते हैं, लोभी मत बनो, भयभीत मत बनो, लेकिन करते क्या हैं? हम पूरे वक्त लोभ सिखाते हैं, पूरे वक्त भय सिखाते हैं। पुराने जमाने में नरक के भय थे, स्वर्ग के पुरस्कार का प्रलोभन था। वह हजारों साल तक सिखाया गया। पूरे प्राण ढीले कर दिए गए आदमी के। भय और लोभ के सिवाय उसमें कुछ भी नहीं बचा। भय है कि कहीं नरक न चला जाऊं और लोभ लगा है कि किसी भांति स्वर्ग पहुंच जाऊं। हम क्या करते हैं? जहां भी दंड और पुरस्कार है, वहां भय है और वहां लोभ है। लेकिन बच्चों को हम कैसे सिखाते हैं, सिखाने का रास्ता क्या है? सिखाने का रास्ता है या तो भय या लोभ। या तो मारो और सिखाओ, या फिर प्रलोभन दो कि हम यह-यह देंगे, गोल्ड मेडल देंगे, इज्जत देंगे, नौकरी देंगे, समाज में स्थान मिलेगा, ऊंचा पद देंगे, नवाब बना देंगे।
मैं जब पढ़ता था तो वे कहते थे कि पढ़ोगे लिखोगे होगे नवाब, तुमको नवाब बना देंगे, तुमको तहसीलदार बनाएंगे। तुम राष्ट्रपति हो जाओगे। ये प्रलोभन हैं और ये प्रलोभन हम छोटे-छोटे बच्चों के मन में जगाते हैं। हमने कभी उनको सिखाया क्या कि तुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम शांत रहो, आनंदित रहो! नहीं। हमने सिखाया, तुम ऐसा जीवन बसर करना कि तुम ऊंची से ऊंची कुर्सी पर पहुंच जाओ। तुम्हारी तनख्वाह बड़ी से बड़ी हो जाए, तुम्हारे कपड़े अच्छे से अच्छे हो जाएं, तुम्हारा मकान ऊंचे से ऊंचा हो जाए, हमने यह सिखाया है। हमने हमेशा यह सिखाया है कि तुम लोभ को आगे से आगे खींचना, क्योंकि लोभ ही सफलता है। और जो असफल है उसके लिए कोई स्थान है?
इस पूरी शिक्षा में असफल के लिए जब कोई स्थान नहीं है, असफल के प्रति कोई जगह नहीं है और केवल सफलता की धुन और ज्वर हम पैदा करते हैं तो फिर स्वाभाविक है कि सारी दुनिया में जो सफल होना चाहता है वह जो बन सकता है, करता है। क्योंकि सफलता आखिर में सब छिपा देती है। एक आदमी किस भांति चपरासी से राष्ट्रपति बनता है! एक दफा राष्ट्रपति बन जाए तो फिर कुछ पता नहीं चलता कि वह कैसे राष्ट्रपति बना, कौन सी तिकड़म से, कौन सी शरारत से, कौन सी बेईमानी से, कौन से झूठ से? किस भांति से राष्ट्रपति बना, कोई जरूरत अब पूछने की नहीं है! न दुनिया में कभी कोई पूछेगा, न पूछने का कोई सवाल उठेगा। एक दफा सफलता आ जाए तो सब पाप छिप जाते हैं और समाप्त हो जाते हैं। सफलता एकमात्र सूत्र है। तो जब सफलता एकमात्र सूत्र है तो मैं झूठ बोल कर क्यों न सफल हो जाऊं, बेईमानी करके क्यों न सफल हो जाऊं! अगर सत्य बोलता हूं, असफल होता हूं, तो क्या करूं?
तो हम एक तरफ सफलता को केंद्र बनाए हैं और जब झूठ बढ़ता है, बेईमानी बढ़ती है तो हम परेशान होते हैं कि यह क्या मामला है। जब तक सफलता, सक्सेस एकमात्र केंद्र है, सारी कसौटी का एकमात्र मापदंड है, तब तक दुनिया में झूठ रहेगा, बेईमानी रहेगी, चोरी रहेगी। यह नहीं हट सकती, क्योंकि अगर चोरी से सफलता मिलती है तो क्या किया जाए? अगर बेईमानी से सफलता मिलती है तो क्या किया जाए? बेईमानी से बचा जाए कि सफलता छोड़ी जाए, क्या किया जाए? जब सफलता एकमात्र माप है, एकमात्र मूल्य है, एकमात्र वैल्यू है कि वह आदमी महान है जो सफल हो गया तो फिर बाकी सब बातें अपने आप गौण हो जाती हैं। रोते हैं हम, चिल्लाते हैं कि बेईमानी बढ़ रही है, यह हो रहा है। यह सब बढ़ेगी, यह बढ़नी चाहिए। आप जो सिखा रहे हैं उसका फल है यह, और पांच हजार साल से जो सिखा रहे हैं उसका फल है।
सफलता की वैल्यू जानी चाहिए, सफलता कोई वैल्यू नहीं है, सफलता कोई मूल्य नहीं है। सफल आदमी कोई बड़े सम्मान की बात नहीं है। सफल नहीं सुफल होना चाहिए आदमी—सफल नहीं सुफल! एक आदमी बुरे काम
में सफल हो जाए, इससे बेहतर है कि एक आदमी भले काम में असफल हो जाए। सम्मान काम से होना चाहिए, सफलता से नहीं। लेकिन सफलता मूल्य है और सारा सारा, इंतजाम उसके केंद्र पर घूम रहा है। सिखा रहे हैं, कुछ सत्य सिखा रहे हैं?
एजुकेशन कमीशन बैठा था अभी। उसके चेयरमैन ने मुझसे कहा कि हम अपने बच्चों को कहते हैं कि तुम सत्य बोलो। सब तरह समझाते हैं, लेकिन फिर भी कभी-कभी झूठ बोलते हैं! मैंने उनसे कहा कि क्या आप पसंद करेंगे कि आपका लड़का सड़क पर भंगी हो जाए, बुहारी लगाए, या एक स्कूल में चपरासी हो जाए? पसंद करेंगे? या कि आपका दिल है कि लड़का भी आपकी भांति एजुकेशन कमीशन का चेयरमैन हो। हिंदुस्तान के बाहर एंबेसेडर हो, धीरे-धीरे चढ़े सीढ़ियां!…और ऊपर आकाश में बैठ जाए, आखिर में भगवान हो जाए! क्या चाहते हैं? क्या आप राजी हैं इस बात के लिए कि आपका लड़का सड़क पर बुहारी लगाए? तो आपको कोई तकलीफ न हो…! उन्होंने कहा कि नहीं, तकलीफ तो होगी! तो मैंने कहा अगर तकलीफ होगी तो फिर आप लड़के से चाहते नहीं हैं कि वह सत्य हो, ईमानदार हो। क्रमशः……..
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३