’भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है‘’
ओशो- अगर तुमने एल. एस. डी. या उसी तरह के मादक द्रव्य का सेवन किया हो, तो तुम्हें पता होगा कि कैसे तुम्हारे चारों ओर का जगत प्रकाश और रंगों के जगत में बदल जाता है, जो कि बहुत पारदर्शी और जीवंत मालूम पड़ता है।यह एल. एस. डी. के कारण नहीं है। जगत ऐसा ही है। लेकिन तुम्हारी दृष्टि धूमिल और मंद पड़ गई है। एल. एस. डी. तुम्हारे चारों ओर रंगीन जगत नहीं निर्मित करता है, जगत पहले से ही रंगीन है, उसमें कोई भूल नहीं है। यह रंगों के इंद्रधनुष जैसा है; लेकिन तुम्हें कभी नहीं प्रतीत होता है कि जगत इतना रंग-भरा है। एल. एस. डी. सिर्फ तुम्हारी आंखों से धुंध को हटा देता है। वह जगत को रंगीन नहीं बनाता।
एक बिलकुल नया जगत तुम्हारे सामने होता है। एक मामूली कुर्सी भी चमत्कार बन जाती है। फर्श पर पडा जूता नए रंगों से, नई आभा से भर जाता है, सज जाता है; तब यातायात का मामूली शोरगूल भी संगीतपूर्ण हो उठता है। जिन वृक्षों को तुमने बहुत बार देखा होगा और फिर भी नहीं देखा होगा, वे मानों नया जन्म ग्रहण कर लेते है। यद्यपि तुम बहुत बार उनके पास से गुजरें हो और तुम्हें ख्याल है कि तुमने उन्हें देखा है। वृक्ष का पत्ता-पत्ता एक चमत्कार बन जाता है।और यथार्थ ऐसा ही है; एल. एस. डी. एक यथार्थ का निर्माण नहीं करता है। एल. एस डी तुम्हारी जड़ता को, तुम्हारी संवेदनहीनता को मिटा देता है। और तब तुम जगत को ऐसे देखते हो जैसे तुम्हें सच में उसे देखना चाहिए।
लेकिन एल. एस. डी. तुम्हें सिर्फ एक झलक दे सकता है। और अगर तुम एल. एस. डी. पर निर्भर रहने लगे तो देर-अबेर वह भी तुम्हारी आंखों से धुंध को हटाने में असमर्थ हो जाएगा। फिर तुम्हें उसकी अधिक मात्रा की जरूरत पड़ेगी, और मात्रा बढ़ती जायेगी और उसका असर कम होता जायेगा। फिर तुम्हें यदि एल. एस. डी. या उस तरह की चीजें लेना छोड़ दोगे तो जगत तुम्हारे लिए पहले से भी ज्यादा उदास और फीका मालूम पड़ेगा। तब तुम और भी संवेदनहीन हो जाओगे।
और यह दुर्घटना हमारी प्रत्येक इंद्रिय के साथ घट रही है। अगर तुम कोई बाहरी उपाय; कृत्रिम उपाय काम में लाओगे, तो तुम जड़ हो जाओगे। एल. एस. डी. तुम्हें अंतत: जड़ बना देगा; क्योंकि उससे तुम्हारा विकास नहीं होता है, तुम ज्यादा संवेदनशील नहीं होते हो।अगर तुम विकसित होते हो तो यह एक भिन्न प्रक्रिया है। तब तुम ज्यादा संवेदनशील होगे। और जैसे-जैसे तुम ज्यादा संवेदनशील होते हो, वैसे-वैसे जगत दूसरा होता जाता है। अब तुम्हारी इंद्रियाँ ऐसी अनेक चीजें अनुभव कर सकती है जिन्हें उन्होंने अतीत में कभी नहीं अनुभव किया था क्योंकि तुम उनके प्रति खुले नहीं थे, संवेदनशील नहीं थे।
यह विधि आंतरिक संवेदनशीलता पर आधारित है। पहले संवेदनशीलता को बढ़ाओं। अपने द्वार-दरवाजे बंद कर लो। कमरे में अँधेरा कर लो, और फिर एक छोटी सी मोमबत्ती जलाओ और उस मोमबत्ती के पास प्रेमपूर्ण मुद्रा में, बल्कि प्रार्थनापूर्ण भाव दशा में बैठो और ज्योति से प्रार्थना करो: ‘’अपने रहस्य को मुझ पर प्रकट करो।‘’ स्नान कर लो, अपनी आंखों पर ठंडा पानी छिड़क लो और फिर ज्योति के सामने अत्यंत प्रार्थना पूर्ण भाव दशा में होकर बैठो। ज्योति को देखो ओर शेष सब चीजें भूल जाओ। सिर्फ ज्योति को देखो। ज्योति को देखते रहो।पाँच मिनट बाद तुम्हें अनुभव होगा कि ज्योति में बहुत चीजें बदल रही है। लेकिन स्मरण रहे, यह बदलाहट ज्योति में नहीं हो रही है; दरअसल तुम्हारी दृष्टि बदल रही है।
प्रेमपूर्ण भाव दशा में सारे जगत को भूलकर, समग्र एकाग्रता के साथ, भावपूर्ण ह्रदय के साथ ज्योति को देखते रहो। तुम्हें ज्योति के चारों ओर नए रंग, नई छटाएं दिखाई देंगी। जो पहले कभी नही दिखाई दी थी। वे रंग, वे छटाएं, सब वहां मौजूद है; पूरा इंद्रधनुष वहां उपस्थित है। जहां-जहां भी प्रकाश है, वहां-वहां इंद्रधनुष है। क्योंकि प्रकाश बहुरंगी है, उसमें सब रंग है। लेकिन उन्हें देखने के लिए सूक्ष्म संवेदना की जरूरत है। उसे अनुभव करो और देखते रहो। यदि आंसू भी बहने लगें तो भी देखते रहो। वे आंसू तुम्हारी आंखों को निखार देंगे, ज्यादा ताजा बना जायेंगे।
कभी-कभी तुम्हें प्रतीत होगा कि मोमबत्ती या ज्योति बहुत रहस्यपूर्ण हो गई है। तुम्हें लगेगा कि यह वही साधारण मोमबत्ती नहीं है जो मैं आपने साथ लाया था। उसने एक नई आभा, एक सूक्ष्म दिव्यता, एक भगवत्ता प्राप्त कर ली है। इस प्रयोग को जारी रखो। कई अन्य चीजों के साथ भी तुम इसे कर सकते हो।
मेरे एक मित्र मुझे कह रहे थे कि वे पाँच-छह मित्र पत्थरों के साथ एक प्रयोग कर रहे थे। मैंने उन्हें कहा था कि कैसे प्रयोग करना, और वह लौटकर मुझे पूरी बात कह रहे थे। वे एकांत में एक नदी के किनारे पत्थरों के साथ प्रयोग कर रहे थे। वे उन्हें फील करने की कोशिश कर रहे थे—हाथों से छूकर, चेहरे से लगा कर, जीभ से चख कर, नाक से सूंघ कर—वे उन पत्थरों को हर तरह से फील करने की कोशिश कर रहे थे। साधारण से पत्थर, जो उन्हें नदी किनारे मिल गये थे।
उन्होंने एक घंटे तक यह प्रयोग किया—हर व्यक्ति ने एक पत्थर के साथ। और मेरे मित्र मुझे कह रहे थे एक बहुत अद्भुत घटना घटी। हर किसी ने कहा: ‘’क्या यह पत्थर मैं अपने पास रख सकता हूं? मैं इसके प्रेम में पड़ गया हूं।”
एक साधारण-सा पत्थर, अगर तुम सहानुभूतिपूर्ण ढंग से उससे संबंध बनाते हो, तो तुम प्रेम में पड़ जाओगे। और अगर तुम्हारे पास इतनी संवेदनशीलता नहीं है तो सुंदर से सुंदर व्यक्ति के पास होकर भी तुम पत्थर के पास ही हो; तुम प्रेम में नहीं पड़ सकते हो।
तो संवेदनशीलता को बढ़ाना है। तुम्हारी प्रत्येक इंद्रिय को ज्यादा जीवंत होना है। तो ही तुम इस विधि का प्रयोग कर सकते हो।
‘’भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है।‘’
सर्वत्र प्रकाश है; अनेक-अनेक रूपों और रंगों में प्रकाश सर्वत्र व्याप्त है। उसे देखो। सर्वत्र प्रकाश है। क्योंकि सारी सृष्टि प्रकाश की आधारशिला पर खड़ी है। एक पत्ते को देखो, एक फूल को देखो या एक पत्थर को देखो। और देर-अबेर तुम्हें अनुभव होगा कि उससे प्रकाश की किरणें निकल रही है। बस धैर्य से प्रतीक्षा करो। ज्यादा जल्दी मत करो, क्योंकि जल्दबाजी में कुछ भी प्रकट नहीं होता। तुम जब जल्दी में होते हो तो तुम जड़ हो जाते हो। किसी भी चीज के साथ धीरज से प्रतीक्षा करो। और तुम्हें एक अद्भुत तथ्य से साक्षात्कार होगा, जो सदा से मौजूद था, लेकिन जिसके प्रति तुम सजग नहीं थे, सावचेत नहीं थे।
‘’भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्वत उपस्थिति है।‘’
और जैसे ही तुम्हें इस शाश्वत अस्तित्व की उपस्थिति अनुभव होगी वैसे ही तुम्हारा चित्त बिलकुल मौन और शांत हो जाएगा। तुम तब उसके एक अंश भर होगे, किसी अद्भुत संगीत में एक स्वर भर। फिर कोई चिंता नहीं है, फिर कोई तनाव नहीं है, बूंद समुद्र में गिर गई, खो गई।
लेकिन आरंभ में एक बड़ी कल्पना की जरूरत होगी। और अगर तुम संवेदनशीलता बढ़ाने के अन्य प्रयोग करते हो, तो वह सहयोगी होगा। तुम कई तरह के प्रयोग कर सकते हो। किसी का हाथ अपने हाथ में ले लो। आंखें बंद कर लो। और दूसरे के भीतर के जीवन को महसूस करो; उसे महसूस करो उसे, अपनी और बहने दो; गति करने दो। फिर अपने जीवन को महसूस करो, और उसे दूसरे की ओर प्रवाहित होने दो। किसी वृक्ष के निकट बैठ जाओ और उसकी छाल को छुओ, स्पर्श करो। अपनी आंखें बंद कर लो। और वृक्ष में उठते जीवन-तत्व को अनुभव करो और स्पर्श करो। तुम तुरंत बदलाहट अनुभव करोगे।मैंने एक प्रयोग के बारे में सुना है। एक डाक्टर कुछ लोगों पर प्रयोग कर रहा था कि क्या भाव दशा से शरीर में रासायनिक परिवर्तन होते है। अब उसने निष्कर्ष निकाला है कि भाव दशा से शरीर में तत्काल रासायनिक परिवर्तन होते है।
उसने बारह लोगों के समूह पर यह प्रयोग किया। उसने प्रयोग के आरंभ में उन सबकी पेशाब की जांच की। और सबकी पेशाब साधारण, सामान्य पाई गई। फिर हर व्यक्ति को एक भाव दशा के प्रयोग में रखा गया। एक को क्रोध, हिंसा, हत्या, मार-पीट से भरी फिल्म दिखाई गई। तीस मिनट तक उसे भयावह फिल्म दिखाई गई। वह मात्र फिल्म थी। लेकिन वह व्यक्ति उस भाव दिशा में रहा। दूसरे को एक हंसी खुशी की, प्रसन्नता की फिल्म दिखाई गई। वह आनंदित रहा। और उसी तरह से बाहर लोगों पर प्रयोग किया।
फिर प्रयोग के बाद उनकी पेशाब की जांच की गई; और अब सबकी पेशाब अलग थी। शरीर में रसायनिक परिवर्तन हुए थे। जो हिंसा और भय की भावदशा में रहा वह अब बुझा-बुझा, बीमार था। और हंसी-खुशी की प्रसन्नता की फिल्म दिखाई गई, वह प्रफुल्ल था। उसकी पेशाब अलग थी। उसके शरीर की रासायनिक व्यवस्था अलग थी।
तुम्हें बोध नहीं है। तुम अपने साथ क्या कर रहे हो। जब तुम कोई खून ख़राबे की फिल्म देखने जाते हो तो तुम नहीं जानते हो कि तुम क्या कर रहे हो। तुम अपने शरीर की रसायनिक व्यवस्था बदल रहे हो। जब तुम कोई जासूसी उपन्यास पढ़ते हो, तुम अपनी हत्या स्वयं कर रहे हो। तुम उत्तेजित हो जाओगे; तुम भयभीत हो जाओगे। तुम तनाव से भर जाओगे। जासूसी उपन्यास का यही तो मजा है। तुम जितने उत्तेजित होते हो, तुम उसका उतना ही सुख लेते हो। आगे क्या घटित होने वाला है, इस बात को लेकर जितना सस्पेंस होगा; तुम उतने ही अधिक उत्तेजित होगे। और इस भांति तुम्हारे शरीर का रसायन बदल रहा है।
ये सारी विधियां भी तुम्हारे शरीर का रसायन बदलती है। अगर तुम सारे जगत को जीवन और प्रकाश से भरा अनुभव करते हो, तो तुम्हारे शरीर का रसायन बदलता है। और यह एक चेन रिएक्शन है, इस बदलाहट की एक शृंखला बन जाती है। जब तुम्हारे शरीर का रसायन बदलता है और तुम जगत को देखते हो तो वही जगत ज्यादा जीवंत दिखाई पड़ता है। और जब वह ज्यादा जीवंत दिखाई पड़ता है तो तुम्हारे शरीर की रासायनिक व्यवस्था और भी बदलती है। ऐसे एक शृंखला निर्मित हो जाती है।
यदि यह विधि तीन महीने तक प्रयोग की जाए, तो तुम भिन्न ही जगत में रहने लगोगे, क्योंकि अब तुम ही भिन्न व्यक्ति हो जाओगे।