“भेद विज्ञान” तुमने हमेशा अपने को जोडना सीखा है स्थितियों के साथ; तुम तोड्ने की बात ही भूल गये हो, इसका नाम ही बेहोशी है “ओशो”

 “भेद विज्ञान” तुमने हमेशा अपने को जोडना सीखा है स्थितियों के साथ; तुम तोड्ने की बात ही भूल गये हो, इसका नाम ही बेहोशी है “ओशो”

“भेद विज्ञान”

ओशो- तुम्हारे भीतर ही कोई चेतना का तत्व है जो यात्रा करता है।7 स्‍वप्‍न, सुषुप्‍ति, जाग्रत तुम्हारी यात्रा के पडाव है, तुम नहीं हो। और जैसे ही तुम इस बात को समझ पाओगे कि तुम पृथक हो, अलग हो, वैसे ही चौथे का जन्म शुरू हो जाएगा। वह पृथकता ही चौथा है।महावीर ने इसके लिए बहुत कीमती शब्द का प्रयोग किया है। इसे महावीर कहते है: भेद विज्ञान। वे कहते है कि सारा विज्ञान अध्यात्म के भेद को साफ—साफ कर लेने में है। वही इस शिवसूत्र का अर्थ है कि तुम्हें, तीनों अवस्थाएं अलग—अलग हैं, इसका पता चल जाए। जैसे ही तीनों अवस्थाओं को तुम अलग—अलग जान लोगे, तुम यह भी जान लोगे कि मैं तीनों से अलग हूं— तुम्हें भेद की कला आ गई। अभी हमारी मनोदशा ऐसी है कि जो भी हमारे सामने होता है, हम उसी के साथ एक हो जाते है।किसी ने तुम्हें गाली दी, क्रोध उठा; उस क्षण में तुम क्रोध के साथ एक हो जाते हो। तुम भूल ही जाते हो कि क्षणभर पहले क्रोध नहीं था, तब भी तुम थे। क्षणभर बाद क्रोध फिर चला जाएगा, तब भी तुम रहोगे। तो क्रोध बीच में आया हुआ धुआं है। उसने तुम्हें कितना ही घेर लिया हो, लेकिन वह तुम्हारा स्वभाव नहीं है।चिंता आती है तो चिंता का बादल घिर जाता है; सूरज छिप जाता है। तुम भूल ही जाते हो कि मैं पृथक हूं। सुख आता है तो तुम नाचने लगते हो। दुख आता है तो तुम रोने लगते हो। जो भी घटता है, —तुम उसी के साथ एक हो जाते हो। तुम्हें अपनी पृथकता का कोई बोध नहीं है। इसे धीरे— धीरे अलग करना सीखना होगा। हर स्थिति में अलग करना सीखना होगा। भोजन करते वक्त जानना कि जो भोजन कर रहा है, वह शरीर है। भूख लगे तो जानना कि जिसे भूख लगी है, वह शरीर है। मैं सिर्फ जाननेवाला हूं। चेतना को कोई भूख लग भी नहीं सकती। गरमी लगे और पसीना बहे तो जानना कि वह शरीर पर घट रहा है। इसका यह अर्थ नहीं कि तुम गरमी में बैठे रहना और पसीना बहने देना; हटना, सुविधा बनाना; लेकिन शरीर के लिए ही सुविधा बनाई जा रही है, तुम सिर्फ जाननेवाले हो।धीरे—धीरे प्रत्येक घटना जो तुम्हें घेरती है, तुम उससे अपने को अलग करते जाना। कठिन है पृथक करना; क्योंकि बहुत बारीक फासला है, सीमा—रेखा साफ नहीं है; क्योंकि अनंत जन्मों में तुमने तादात्‍म्‍य करना ही सीखा है, तोड़ना नहीं सीखा। तुमने हमेशा अपने को जोडना सीखा है स्थितियों के साथ; तुम तोड्ने की बात ही भूल गये हो। इसका नाम ही बेहोशी है— यह जो तुमने जोड़ना सीख लिया है।

🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 🍁
शिव-सूत्र-(प्रवचन-02)
जीवन-जागृति के साधना-सूत्र