महावीर ने कहा है–भूल कर भी स्वप्न में भी कोई बुरी धारणा मत करना, क्योंकि वह परिणाम ला सकती है “ओशो”

 महावीर ने कहा है–भूल कर भी स्वप्न में भी कोई बुरी धारणा मत करना, क्योंकि वह परिणाम ला सकती है “ओशो”

अरिहंत मंगल हैं। सिद्ध मंगल हैं। साधु मंगल हैं। केवली-प्ररूपित अर्थात आत्मज्ञ-कथित धर्म मंगल है। अरिहंत लोकोत्तम हैं। सिद्ध लोकोत्तम हैं। साधु लोकोत्तम हैं। केवली-प्ररूपित अर्थात आत्मज्ञ-कथित धर्म लोकोत्तम है।

ओशो- महावीर ने कहा है: जिसे पाना हो उसे देखना शुरू करना चाहिए। क्योंकि हम उसे ही पा सकते हैं जिसे हम देखने में समर्थ हो जाएं। जिसे हमने देखा नहीं, उसे पाने का भी कोई उपाय नहीं। जिसे खोजना हो, उसकी भावना करनी प्रारंभ कर देनी चाहिए। क्योंकि इस जगत में हमें वही मिलता है, जो मिलने के भी पहले, जिसके लिए हम अपने हृदय में जगह बना लेते हैं। अतिथि घर आता हो तो हम इंतजाम कर लेते हैं उसके स्वागत का। अरिहंत को निर्मित करना हो स्वयं में, सिद्ध को पाना हो कभी, किसी क्षण स्वयं भी केवली बन जाना हो तो उसे देखना, उसकी भावना करनी, उसकी आकांक्षा और अभीप्सा की तरफ चरण उठाने शुरू करने जरूरी हैं।
महावीर से ढाई हजार साल पहले चीन में एक कहावत प्रचलित थी। और वह कहावत थी–लाओत्सु के द्वारा कही गई और बाद में संगृहीत की गई चिंतन की धारा का पूरा का पूरा सार–वह कहावत थी: ‘दि सुपीरियर फिजिशियन क्योर्स दि इलनेस बिफोर इट इ़ज मैनिफेस्टेड। जो श्रेष्ठ चिकित्सक है वह बीमारी के प्रकट होने के पहले ही उसे ठीक कर देता है।’ ‘दि इनफीरियर फिजिशियन ओनली केयर्स फॉर दि इलनेस व्हिच ही वा़ज नॉट एबल टु प्रिवेंट। और, जो साधारण चिकित्सक है वह केवल बीमारी को दूर करने में थोड़ी बहुत सहायता पहुंचाता है, जिसे वह रोकने में समर्थ नहीं था।’
हैरान होंगे जान कर आप यह बात कि महावीर से ढाई हजार साल पहले, आज से पांच हजार साल पहले चीन में चिकित्सक को बीमारी के ठीक करने के लिए कोई पुरस्कार नहीं दिया जाता था। उलटा ही रिवाज था, या हम समझें कि हम जो कर रहे हैं वह उलटा है। चिकित्सक को पैसे दिए जाते थे इसलिए कि वह किसी को बीमार न पड़ने दे। और अगर कभी कोई बीमार पड़ जाता तो चिकित्सक को उलटे उसे पैसे चुकाने पड़ते थे। तो हर व्यक्ति नियमित अपने चिकित्सक को पैसे देता था ताकि वह बीमार न पड़े। और बीमार पड़ जाए तो चिकित्सक को उसे ठीक भी करना पड़ता और पैसे भी देने पड़ते। जब तक वह ठीक न हो जाता, तब तक बीमार को फीस मिलती चिकित्सक के द्वारा। यह जो चिकित्सा की पद्धति चीन में थी उसका नाम है: एक्युपंक्चर। इस चिकित्सा की पद्धति को नया वैज्ञानिक समर्थन मिलना शुरू हुआ है।
रूस में वे इस पर बड़े प्रयोग कर रहे हैं और उनकी दृष्टि है कि इस सदी के पूरे होते-होते रूस में चिकित्सक को बीमार को बीमार न पड़ने देने की तनख्वाह देनी शुरू कर दी जाएगी। और जब भी कोई बीमार पड़ेगा तो चिकित्सक जिम्मेवार और अपराधी होगा। एक्युपंक्चर मानता है कि शरीर में खून ही नहीं बहता, विद्युत ही नहीं बहती–एक और तीसरा प्रवाह है, प्राण-ऊर्जा का, एलन वाइटल का–वह प्रवाह भी शरीर में बहता है। सात सौ स्थानों पर शरीर के अलग-अलग वह प्रवाह, चमड़ी को स्पर्श करता है। इसलिए एक्युपंक्चर में चमड़ी पर जहां-जहां प्रवाह अव्यवस्थित हो गया है, वहां सुई चुभा कर उस प्रवाह को संतुलित करने की कोशिश की जाती है। बीमारी के आने के छह महीने पहले उस प्रवाह में असंतुलन शुरू हो जाता है। यह जान कर आपको हैरानी होगी कि नाड़ी की जानकारी भी वस्तुतः खून के प्रवाह की जानकारी नहीं है। नाड़ी के द्वारा भी उसी जीवन-प्रवाह को समझने की कोशिश की जाती रही है। और छह महीने पहले नाड़ी अस्त-व्यस्त होनी शुरू हो जाती है–बीमारी के आने के छह महीने पहले।
हमारे भीतर जो प्राण-शरीर है उसमें पहले बीज रूप में चीजें पैदा होती हैं और फिर वृक्ष रूप में हमारे भौतिक शरीर तक फैल जाती हैं। चाहे शुभ को जन्म देना हो, चाहे अशुभ को। चाहे स्वास्थ्य को जन्म देना हो, चाहे बीमारी को। सबसे पहले प्राण-शरीर में बीज आरोपित करने होते हैं। यह जो मंगल की स्तुति है कि अरिहंत मंगल हैं, यह प्राण-शरीर में बीज डालने का उपाय है। क्योंकि जो मंगल है उसकी कामना स्वाभाविक हो जाती है। हम वही चाहते हैं जो मंगल है। जो अमंगल है वह हम नहीं चाहते हैं। इसमें चाह की तो बात ही नहीं की गई है, सिर्फ मंगल का भाव है।
अरिहंत मंगल हैं, सिद्ध मंगल हैं, साधु मंगल हैं। ‘केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं’–वह जिन्होंने स्वयं को जाना और पाया, उनके द्वारा प्ररूपित धर्म मंगल है–सिर्फ मंगल का भाव।
यह जान कर हैरानी होगी कि मन का नियम है, जो भी मंगल है, ऐसा भाव गहन हो जाए, उसकी आकांक्षा शुरू हो जाती है। आकांक्षा को पैदा नहीं करना पड़ता। मंगल की धारणा को पैदा करना पड़ता है। आकांक्षा मंगल की धारणा के पीछे छाया की भांति चली आती है।
धारणा पतंजलि योग के आठ अंगों में कीमती अंग है जहां से अंतर्यात्रा शुरू होती है–धारणा, ध्यान, समाधि। छठवां सूत्र है धारणा, सातवां ध्यान, आठवां समाधि। यह जो मंगल की धारणा है, यह पतंजलि योग-सूत्र का छठवां सूत्र है, और महावीर के योग-सूत्र का पहला। क्योंकि महावीर का मानना यह है कि धारणा से सब शुरू हो जाता है। धारणा जैसे ही हमारे भीतर गहन होती है, हमारी चेतना रूपांतरित होती है। न केवल हमारी, हमारे पड़ोस में जो बैठा है उसकी भी। यह जान कर आपको आश्र्चर्य होगा कि आप अपनी ही धारणाओं से प्रभावित नहीं होते, आपके निकट जो धारणाओं के प्रवाह बहते हैं उनसे भी प्रभावित होते हैं। इसलिए महावीर ने कहा है: अज्ञानी से दूर रहना मंगल है, ज्ञानी के निकट रहना मंगल है। चेतना जिसकी रुग्ण है उससे दूर रहना मंगल है। चेतना जिसकी स्वस्थ है उसके निकट, सान्निध्य में रहना मंगल है। सत्संग का इतना ही अर्थ है कि जहां शुभ धारणाएं हों, उस मिल्यू में, उस वातावरण में रहना मंगल है।
रूस के एक विचारक, जो एक्युपंक्चर पर काम कर रहे हैं, डॉक्टर सिरोव, उन्होंने यांत्रिक आविष्कार किए हैं जिनसे पड़ोसी की धारणा आपको कब प्रभावित करती है और कैसे प्रभावित करती है, उसकी जांच की जा सकती है। आप पूरे समय पड़ोस की धारणाओं से इम्पोज किए जा रहे हैं। आपको पता ही नहीं कि आपको जो क्रोध आया है, जरूरी नहीं है कि आपका ही हो। वह आपके पड़ोसी का भी हो सकता है। भीड़ में बहुत मौकों पर आपको खयाल नहीं है–भीड़ में एक आदमी जम्हाई लेता है और दस आदमी, उसी क्षण, अलग-अलग कोनों में बैठे हुए जम्हाई लेने शुरू कर देते हैं। सिरोव का कहना है कि वह धारणा एक के मन में जो पैदा हुई उसके वर्तुल आस-पास चले गए और दूसरों को भी उसने पकड़ लिया। अब इसके लिए उसने यंत्र निर्मित किए हैं, जो बताते हैं कि धारणा आपको कब पकड़ती है और कब आपमें प्रवेश कर जाती है। अपनी धारणा से तो व्यक्ति का प्राण-शरीर प्रभावित होता ही है, दूसरे की धारणा से भी प्रभावित होता है। कुछ घटनाएं इस संबंध में आपको कहूं तो बहुत आसान होगा।
उन्नीस सौ दस में जर्मनी की एक ट्रेन में एक पंद्रह-सोलह वर्ष का युवक बेंच के नीचे छिपा पड़ा है। उसके पास टिकट नहीं है। वह घर से भाग खड़ा हुआ है। उसके पास पैसा भी नहीं है। फिर तो बाद में वह बहुत प्रसिद्ध आदमी हुआ और हिटलर ने उसके सिर पर दो लाख मार्क की घोषणा की कि जो उसका सिर काट लाए। वह तो फिर बहुत बड़ा आदमी हुआ और उसके बड़े अदभुत परिणाम हुए, और स्टैलिन और आइंस्टीन और गांधी सब उससे मिल कर आनंदित और प्रभावित हुए। उस आदमी का बाद में नाम हुआ–वुल्फ मैसिंग। उस दिन तो उसे कोई नहीं जानता था, उन्नीस सौ दस में।
वुल्फ मैसिंग ने अभी अपनी आत्म-कथा लिखी है जो रूस में प्रकाशित हुई है और बड़ा समर्थन मिला है। अपनी आत्म-कथा उसने लिखी है: ‘अबाउट माईसेल्फ।’ उसमें उसने लिखा है कि उस दिन मेरी जिंदगी बदल गई। उस ट्रेन में नीचे फर्श पर छिपा हुआ पड़ा था बिना टिकट के कारण। मैसिंग ने लिखा है कि वे शब्द मुझे कभी नहीं भूलते–टिकट चेकर का कमरे में प्रवेश, उसके जूतों की आवाज और मेरी श्र्वास का ठहर जाना और मेरी घबड़ाहट और पसीने का छूट जाना, ठंडी सुबह, और फिर उसका मेरे पास आकर पूछना–यंगमैन, योर टिकट?
मैसिंग के पास तो टिकट थी नहीं। लेकिन अचानक पास में पड़ा हुआ एक कागज का टुकड़ा–अखबार की रद्दी का टुकड़ा मैसिंग ने हाथ में उठा लिया। आंख बंद की और संकल्प किया कि यह टिकट है, और उसे उठा कर टिकट चैकर को दे दिया। और मन में उसने सोचा कि हे परमात्मा, उसे टिकट दिखाई पड़ जाए। टिकट चेकर ने उस कागज को पंक्चर किया, टिकट वापस लौटाई और कहा: व्हेन यू हैव गाट दि टिकट, वाई यू आर लाइंग अंडर दि सीट? पागल हो! जब टिकट तुम्हारे पास है तो नीचे क्यों पड़े हो? मैसिंग को खुद भी भरोसा नहीं आया। लेकिन इस घटना ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी। इस घटना के बाद पिछली आधी सदी में, पचास वर्षों में जमीन पर वह सबसे महत्वपूर्ण आदमी था जिसे धारणा के संबंध में सर्वाधिक अनुभव थे।
मैसिंग की परीक्षा दुनिया में बड़े-बड़े लोगों ने ली। उन्नीस सौ चालीस में एक नाटक के मंच पर जहां वह अपना प्रयोग दिखला रहा था–लोगों में विचार संक्रमित करने का–अचानक पुलिस ने आकर मंच का परदा गिरा दिया और लोगों से कहा कि यह कार्यक्रम समाप्त हो गया है। क्योंकि मैसिंग गिरफ्तार कर लिया गया। मैसिंग को तत्काल बंद गाड़ी में डाल कर क्रेमलिन ले जाया गया और स्टैलिन के सामने मौजूद किया गया। स्टैलिन ने कहा: मैं मान नहीं सकता कि कोई किसी दूसरे की धारणा को सिर्फ आंतरिक धारणा से प्रभावित कर सके। क्योंकि अगर ऐसा हो सकता है तो फिर आदमी सिर्फ पदार्थ नहीं रह जाता। तो मैं तुम्हें इसलिए पकड़ कर बुलाया हूं कि तुम मेरे सामने सिद्ध करो।
मैसिंग ने कहा: आप जैसा भी चाहें। तो स्टैलिन ने कहा कि कल दो बजे तक तुम यहां बंद रहो। दो बजे आदमी तुम्हें ले जाएंगे मास्को के बड़े बैंक में। तुम क्लर्क से एक लाख रुपया सिर्फ धारणा के द्वारा निकलवा कर ले आओ।
पूरा बैंक मिलिट्री से घेरा गया है। दो आदमी पिस्तौलें लिए हुए मैसिंग के पीछे, ठीक दो बजे उसे बैंक में ले जाया गया। उसे कुछ पता नहीं कि किस काउंटर पर उसे ले जाया जाएगा। जाकर ट्रेजरर के सामने उसे खड़ा कर दिया गया। उसने एक कोरा कागज उन दो आदमियों के सामने निकाला। कोरे कागज को दो क्षण देखा। ट्रेजरर को दिया, और एक लाख रूबल। ट्रेजरर ने कई बार उस कागज को देखा, चश्मा लगाया, वापस गौर से देखा और फिर एक लाख रूबल निकाल कर मैसिंग को दे दिए। मैसिंग ने बैग में वे पैसे अंदर रखे। स्टैलिन को जाकर रुपये दिए। स्टैलिन ने कहा: बहुत हैरानी हुई! वापस मैसिंग लौटा। जाकर क्लर्क के हाथ में वे रुपये वापस दिए और कहा: मेरा कागज वापस लौटा दो। जब क्लर्क ने वापस कागज देखा तो वह खाली था। उसे हार्ट अटैक का दौरा पड़ गया और वह वहीं नीचे गिर पड़ा। वह बेहोश हो गया। उसकी समझ के बाहर हो गई बात कि क्या हुआ।
लेकिन स्टैलिन इतने से राजी न हुआ। कोई जालसाजी हो सकती है। कोई क्लर्क और उसके बीच तालमेल हो सकता है। तो क्रेमलिन के एक कमरे में उसे बंद किया गया। हजारों सैनिकों का पहरा लगाया गया और कहा कि ठीक बारह बज कर पांच मिनट पर वह सैनिकों के पहरे के बाहर हो जाए। वह ठीक बारह बज कर पांच मिनट पर बाहर हो गया। सैनिक अपनी जगह खड़े रहे, वह किसी को दिखाई नहीं पड़ा। वह स्टैलिन के सामने जाकर मौजूद हो गया।
इस पर भी स्टैलिन को भरोसा नहीं आया। और भरोसा आने जैसा नहीं था, क्योंकि स्टैलिन की पूरी फिलॉसफी, पूरा चिंतन, पूरे कम्युनिज्म की धारणा, सब बिखरती है। यह एक आदमी कोई धोखाधड़ी कर दे और सारा का सारा मार्क्सियन चिंतन का आधार गिर जाए। लेकिन स्टैलिन प्रभावित जरूर इतना हुआ कि उसने तीसरे प्रयोग के लिए और प्रार्थना की।
उसकी दृष्टि में जो सर्वाधिक कठिन बात हो सकती थी, वह यह थी–उसने कहा कि कल रात बारह बजे मेरे कमरे में तुम मौजूद हो जाओ, बिना किसी अनुमति पत्र के। यह सर्वाधिक कठिन बात थी। क्योंकि स्टैलिन जितने गहन पहरे में रहता था उतना पृथ्वी पर दूसरा कोई आदमी कभी नहीं रहा। पता भी नहीं होता था कि स्टैलिन किस कमरे में है क्रेमलिन के। रोज कमरा बदल दिया जाता था ताकि कोई खतरा न हो, कोई बम न फेंका जा सके, कोई हमला न किया जा सके। सिपाहियों की पहली कतार जानती थी कि पांच नंबर कमरे में है, दूसरी कतार जानती थी कि छह नंबर कमरे में है, तीसरी कतार जानती थी कि आठ नंबर कमरे में है। अपने ही सिपाहियों से भी बचने की जरूरत स्टैलिन को थी। कोई पता नहीं होता था कि स्टैलिन किस कमरे में है। स्टैलिन की खुद पत्नी भी स्टैलिन के कमरे का पता नहीं रख सकती थी। क्रेमलिन के सारे कमरे, जिनमें स्टैलिन अलग-अलग होता था, करीब-करीब एक जैसे थे, जिनमें वह कहीं भी किसी भी क्षण हट सकता था। सारा इंतजाम हर कमरे में था।
ठीक रात बारह बजे पहरेदार पहरा देते रहे और मैसिंग जाकर स्टैलिन की मेज के सामने खड़ा हो गया, स्टैलिन भी कंप गया। और स्टैलिन ने कहा कि तुमने यह किया कैसे? यह असंभव है!
मैसिंग ने कहा: मैं नहीं जानता। मैने कुछ ज्यादा नहीं किया, मैने सिर्फ एक ही काम किया कि मैं दरवाजे पर आया और मैंने कहा कि आइ एम बैरिया–वह जो बैरिया, रूसी पुलिस का सबसे बड़ा आदमी था, स्टैलिन के बाद नंबर दो की ताकत का आदमी–बस मैंने सिर्फ इतना ही भाव किया कि मैं बैरिया हूं, और तुम्हारे सैनिक मुझे सलाम बजाने लगे और मैं भीतर आ गया।
स्टैलिन ने सिर्फ मैसिंग को आज्ञा दी कि वह रूस में घूम सकता है, और प्रामाणिक है। उन्नीस सौ चालीस के बाद रूस में इस तरह के लोगों की हत्या नहीं की जा सकी, वह सिर्फ मैसिंग के कारण। उन्नीस सौ चालीस तक रूस में कई लोग मार डाले गए जिन्होंने इस तरह के दावे किए थे। कार्ल आटोविच नाम का एक आदमी–उन्नीस सौ सैंतीस में रूस में हत्या की गई, स्टैलिन की आज्ञा से। क्योंकि वह भी जो करता था वह ऐसा था कि उससे कम्युनिज्म की जो मैटीरियलिस्ट, भौतिकवादी धारणा है, वह बिखर जाती है।
अगर धारणा इतनी महत्वपूर्ण हो सकती है तो स्टैलिन ने आज्ञा दी अपने वैज्ञानिकों को कि मैसिंग की बात को पूरा समझने की कोशिश करो, क्योंकि इसका युद्ध में भी उपयोग हो सकता है। और जो आदमी मैसिंग का अध्ययन करता रहा, उस आदमी ने, नामोव ने कहा है कि जो अल्टीमेट वैपन है युद्ध का, आखिरी जो अस्त्र सिद्ध होगा, वह यह मैसिंग के अध्ययन से निकलेगा। क्योंकि जिस राष्ट्र के हाथ में धारणा को प्रभावित करने के मौलिक सूत्र आ जाएंगे, उस राष्ट्र को अणु की शक्ति से हराया नहीं जा सकता। सच तो यह है कि जिनके हाथ में अणुबम हों उनको भी धारणा से प्रभावित किया जा सकता है कि वे अपने ऊपर ही फेंक लें। एक हवाई जहाज बम फेंकने आ रहा हो, उसके पायलट को प्रभावित किया जा सकता है कि वापस लौट जाए, अपनी ही राजधानी पर गिरा दे।
नामोव ने कहा है कि दि अल्टीमेट वैपन इन वॉर इ़ज गोइंग टु बी साइकिक पॉवर। यह धारणा की जो शक्ति है, यह आखिरी अस्त्र सिद्ध होगा। इस पर रोज काम बढ़ता चला जाता है। स्टैलिन जैसे लोगों की उत्सुकता तो निश्र्चित ही विनाश की तरफ होगी। महावीर जैसे लोगों की उत्सुकता निर्माण और सृजन की ओर है। इसलिए मंगल की धारणा, महावीर ने कहा है–भूल कर भी स्वप्न में भी कोई बुरी धारणा मत करना, क्योंकि वह परिणाम ला सकती है।
आप राह से गुजर रहे हैं, आप सोचते हैं, मैंने कुछ किया भी नहीं। एक मन में खयाल भर आ गया कि इस आदमी की हत्या कर दूं। आपने कुछ किया नहीं। कि इस दुकान से फलां चीज चुरा लूं, आप चोरी करने नहीं भी गए। लेकिन क्या आप निश्चिंत हो सकते हैं कि राह पर किसी चोर ने आपकी धारणा न पकड़ ली होगी?

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३