अगर हिंदुस्तान में युवकों के भीतर पैदा होते अनुशासनहीनता और विद्रोह को कोई दिशा दी जा सकी, तो हिंदुस्तान एक नई संस्कृति को जन्म दे सकता है “ओशो”

 अगर हिंदुस्तान में युवकों के भीतर पैदा होते अनुशासनहीनता और विद्रोह को कोई दिशा दी जा सकी, तो हिंदुस्तान एक नई संस्कृति को जन्म दे सकता है “ओशो”

ओशो- एक और प्रश्न इसी संदर्भ में पूछा है कि युवकों में, सारे मुल्क में विद्यार्थियों में विरोध है, आंदोलन है, अनुशासन टूट रहा है। क्या उसके लिए कहूं?

तो इसी संदर्भ में यह कहना चाहता हूं कि यह विद्रोह शुभ है। यह आंदोलन बुरा नहीं है, यह अच्छे लक्षण हैं। हालांकि अभी जो उसने रुख लिया है, वह गलत है। ये अच्छे लक्षण हैं। अगर युवक विद्रोह में गया तो दुनिया में कुछ हो सकता है। युवक गए नहीं विद्रोह में। हजारों साल से युवक उसी बात को मान लेता है, जो उसके पीछे की पीढ़ी उसे सिखा जाती है। वह इनकार करता ही नहीं। यह दुनिया वैसी की वैसी बनी रहती है, जैसे बाप-दादों की थी, और उनके पहले थी। जिन-जिन चीजों में बच्चों ने इनकार किया है, उन-उन चीजों में विकास हुआ है। बच्चों ने विज्ञान में इनकार किया, विज्ञान आगे विकसित हुआ। बच्चों ने धर्म में इनकार नहीं किया, इसलिए धर्म जड़ हो गया, वह आगे विकसित नहीं हुआ।बच्चों ने विज्ञान में इनकार कर दिया। उन्होंने कहाः तुमने एक मंजिल का मकान बनाया था, हम तीन मंजिल का मकान बनाएंगे। और इससे बाप ने कोई अपमान भी नहीं समझा। बाप खुश हुआ कि मेरा लड़का तीन मंजिल का मकान बना रहा है। लेकिन अगर कोई लड़का कहे कि हम महावीर से आगे जाएंगे, तो बाप ना-खुश हो जाता है। क्योंकि महावीर तक तो बात खत्म हो गई है। अब थोड़े कोई पच्चीसवां तीर्थंकर होना है! दरवाजे बंद हो गए हैं। अब कोई ज्ञान की दुनिया में जरूरत नहीं है। बात खत्म हो गई, ज्ञान दे गया। अब हमारा काम है, हम दोहराएं। हमारा काम है हम स्तुति करें। अब हमारा काम है, हम पूजा करें। ज्ञान-वान की, खोज की जरूरत कहां है? महावीर सब काम आपके लिए निपटा गए।

मोहम्मद आखिरी पैगंबर हैं, उनके आगे कोई पैगंबर नहीं है, वह भी दरवाजा बंद है। क्राइस्ट ईश्वर के इकलौते लड़के हैं, दूसरा कोई उनका लड़का ही नहीं है। वह दरवाजा बंद है। सब दरवाजे बंद, आगे कोई गुंजाइश नहीं है। आप घूमो, इसके आस-पास चक्कर मारो, परिक्रमा करो इन भगवानों की। आगे जाने का कोई उपाय नहीं है। बच्चों का मस्तिष्क कुंठित करने की सारी व्यवस्था कर ली गई है। और इसे अच्छे-अच्छे नामों पर–अनुशासन, आदर, इस सब अच्छे-अच्छे नामों से थोपा गया है।जो अनुशासन बाहर से थोपा जाता है वह परतंत्रता है। जो अनुशासन खुद के विवेक से आता है, वही केवल स्वतंत्रता है। दुनिया में ऐसे अनुशासन को तोड़ ही दिया जाना चाहिए, जो दूसरे थोपते हों। दुनिया में हम वैसा अनुशासन चाहते हैं, जो खुद के विवेक से आता हो।

बच्चे को अनुशासन मत दीजिए, डिसिप्लिन मत दीजिए, बच्चे को विवेक दीजिए, विचार दीजिए, होश दीजिए, समझ दीजिए। जहां समझ है, जहां विचार है, जहां विवेक है, वहां अनुशासन अपने से आएगा। लेकिन हम बच्चे को न विवेक देना चाहते हैं, न विचार देना चाहते हैं, न होश देना चाहते हैं। हम देना चाहते हैं अनुशासन। हम कहना चाहते हैं, बाएं घूमो तो वह बाएं घूम जाए, हम कहें दाएं घूमो तो वह दाएं घूम जाए। हम मशीन बनाना चाहते हैं कि आदमी बनाना चाहते हैं? दुनिया में मशीन बनाने के कई तरह के कारखाने खुले हुए हैं। मिलिट्री सबसे बड़ा कारखाना है। बाएं घूमो, आदमी बाएं घूमता है। दाएं घूमो, तो दाएं घूमता है। आगे जाओ, आगे जाता है। पीछे जाओ, पीछे जाता है। तीन-चार साल एक आदमी से ऐसी मूढ़ता करवाई जाती है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है। फिर उससे कहते हैं, गोली मारो। वह गोली मारता है। जैसे बाएं जाओ, उतनी ही आज्ञा! उससे कहो एटम गिराओ, वह एटम गिराता है। उसके भीतर कोई विवेक नहीं रहा, कोई विचार नहीं रहा। उसे कोई समझ नहीं रही, उसकी सारी समझ मार डाली गई। डिसिप्लिनड आदमी का मतलब है, मुर्दा आदमी, मरा हुआ आदमी। उसके भीतर कोई विवेक नहीं, कोई विचार नहीं। जिस आदमी ने हिरोशिमा पर एटम गिराया, उसने एटम गिराया, एक लाख बीस हजार आदमी हिरोशिमा और नागासाकी में आग की लपटों में पड़ गए। उन्होंने असह्य पीड़ा सही। क्षण भर में नरक जाना। वह आदमी वापस लौटा, उसने आकर भोजन किया, अपने बच्चों को प्रेम किया होगा, अपनी पत्नी से प्रेम की बातें की होंगी, सो गया।क्या इसका पत्नी के प्रति प्रेम सच्चा हो सकता है, जो एक लाख बीस हजार आदमियों को आग में डाल कर आया, और जिसके मन में यह खयाल भी नहीं उठा कि क्या कर रहा हूं? क्या यह अपनी पत्नी को प्रेम कर सकता है? क्या यह अपने बच्चों को प्रेम कर सकता है? इतने बच्चे वहां आग में जल रहे हैं। इसके मन में विचार भी नहीं उठा। क्या अगर यह विचारशील होता, तो यह नहीं कहता कि मैं एक आदमी मर जाऊं, वह बेहतर। मुझे गोली मार दें, मैं डिसिप्लिन तोड़ता हंू, लेकिन मैं एटम गिराने नहीं जाऊंगा। एक लाख बीस हजार मारूं, उससे तो एक मर जाऊं। तो मैं जानता कि इसने जो अपनी पत्नी को प्रेम किया होगा, वह सच्चा रहा होगा? इसने अपने बच्चों को जो प्रेम किया होगा वह सच्चा रहा होगा? लेकिन वह तो सो गया।
सुबह ट्रूमैन से अमरीका में पूछा (उनकी आज्ञा से वह बम गिरा था)पत्रकारों ने, आप रात को ठीक से सोए? ट्रूमैन ने कहाः बहुत ठीक से। कई दिनों से ठीक से सो ही नहीं पाया। मामला खत्म हो गया। मैं ठीक से सो गया। नींद गहरी आई।
ये ट्रूमैन हैं, जो सच्चे आदमी हैं। इसी तरह के ट्रूमैन सारी दुनिया में हैं। इनको रात बेचैनी नहीं हुई। एक लाख बीस हजार आदमी वहां आग की लपटों में जल रहे हैं–निरीह बच्चे, निरीह औरतें, ये आसानी से सो गए।
यह उस आदमी से पूछा गया, तुमने क्यों बम गिराया? उसने कहाः मैंने तो केवल आज्ञा का पालन किया। यह आज्ञा का पालन तो खतरनाक है। ऐसे आज्ञा पालन करने वाले युवक अब दुनिया में और नहीं चाहिए। हम ऐसे युवक चाहते हैं, जो विचार करें। हम पाकिस्तान में ऐसे युवक चाहते हैं जो कहें राजनीतिज्ञों से कि तुम मूर्ख हो, हम गोली चलाने को हिंदुस्तान पर राजी नहीं हैं, हमारे भाई हैं। हम कल तक साथ थे। हिंदुस्तान के राजनीतिज्ञों से हिंदुस्तान का युवक कहे कि बेवकूफी बंद करो, हम गोली चलाने को राजी नहीं।दुनिया में हम ऐसे युवक चाहते हैं, जो सब तरह के डिसिप्लिन तोड़ दें। यह दुनिया दूसरी हो सकती है, लेकिन हम तो चाहते हैं, डिसिप्लिनड हो युवक। उससे क्या होगा? हजारों साल से डिसिप्लिन सिखा कर बेवकूफियों में वह इतना लगाया गया है। आज जब वह तोड़ रहा है, तो डर हो रहा है। जरूर, तोड़ना उसका अभी गलत है, क्योंकि तोड़ने के लिए उसके पास न कोई भूमि है, न कोई विचार है, न कोई दृष्टि है। तोड़ना उसका गलत है। बस में आग लगा देता है। मैं भी नहीं कहंूगा कि बस में आग लगाओ। मैं तो कहता हंू, आग ही लगानी है तो किसी बड़ी चीज में लगाओ, बस में लगाने से क्या होगा? मैं तो यही कहता हंू युवकों से कि आग ही लगानी है तो हिंदुस्तान में बहुत चीजें हैं, जिनमें लगाओ। जातियों में आग लगाओ, धर्मो में आग लगाओ तो कुछ होगा। हिंदू होने में, मुसलमान होने में, जैन होने में आग लगाओ तो कुछ होगा। भारतीय होने में, पाकिस्तानी होने में आग लगाओ तो कुछ होगा। तुम बस जलाओगे तो क्या होगा?
लेकिन मैं कहता हंू कि शुभ लक्षण हैं। कम से कम बस तो जलाते हो! शायद जलाने का खयाल आ जाए तो कुछ और भी जलाओ। गुरु के खिलाफ खड़े होओ। बेचारा गरीब मास्टर है; उसके खिलाफ खड़े हो! तो मैं कहता हूं, मनु महाराज के खिलाफ खड़े हो तो कुछ बात हो जाएगी। ये बेचारे गरीब मास्टर मोशाय से क्या लड़ना है, इसकी क्या हैसियत है, इसके खिलाफ क्या? लेकिन फिर भी सोचता हंू कि तुम गुरु के खिलाफ खड़े हुए हो, शायद तुम महागुरुओं के खिलाफ भी किसी दिन खड़े हो सको। जब हम कुआं खोदते हैं, तो पहले कंकड़-पत्थर ही हाथ आते हैं, फिर धीरे-धीरे अच्छी मिट्टी आती है, फिर जल आता है। अभी ये कंकड़-पत्थर हाथ आ रहे हैं–यह जो अनुशासनहीनता है–यह बुरी है, लेकिन शुभ है, अच्छे लक्षण हैं। अगर इसको ठीक-ठीक दिशा दी जा सकी, तो दुनिया में युवक एक क्रांति ला सकते हैं। अगर इसको दिशा नहीं दी जा सकी तो बस जलाएंगे, मकान जलाएंगे तोड़ेंगे, फोड़ेंगे, छोटी चीजें तोड़ेंगे-फोड़ेंगे।
मुझे दिखता है, अगर बड़ी चीजें तोड़ने-फोड़ने की तरफ उनकी आंखें उठाई जा सकें, वह खुद भी छोटी चीजें तोड़ने को राजी नही हो सकेंगे। क्यों? मैं अभी था विद्यार्थियों के बीच। मैंने उनसे पूछाः मैंने उनसे कहा कि जो छोटी चीजें तोड़ता है, वह खुद छोटा हो जाता है, क्योंकि हम जो करते हैं, वही हो जाते हैं। तो मैंने कहा, अगर तुम बसें जलाओगे तो तुम बस कंडक्टरों और ड्राइवरों से ऊपर नहीं उठे सकते हो। तुम्हारी बुद्धि उससे आगे नहीं जा सकती। अगर तुम पुलिसवाले से लड़ोगे तो तुम ज्यादा से ज्यादा पुलिसवाले हो सकते हो। लड़ाई ही करनी है, तो कुछ बड़ी करो, क्योंकि शत्रु को ही चुनना है, तो कोई बड़ा चुनो। चुनौती ही लेनी है, तो कोई बड़ी लो। चढ़ना ही है, तो कोई हिमालय चढ़ो, तो तुम्हारे भीतर बड़ा आदमी पैदा होगा। तुम्हारे भीतर बड़ा व्यक्तित्व पैदा होगा। यह जो अनुशासनहीनता है, मेरी दृष्टि में बुरी नहीं है। राजनीतिज्ञों की दृष्टि में बुरी है, क्योंकि यह घबड़ाते हैं इससे। समाज के ठेकेदारों की दृष्टि में बुरी है, वह इससे घबड़ा रहे हैं, क्योंकि अगर यह बढ़ी, तो उन सबको दिक्कतें खड़ी हो जाएंगी। धर्माध्यक्ष जो हैं, उनको घबड़ाहट है। साधु-संन्यासी हैं, उनको घबड़ाहट है। वह सब इकट्ठे खड़े हो जाएंगे, कहेंगे, यह बुरा है। मैं आपसे यह कहता हूं, यह शुभ है, लेकिन यह जैसा है, उतना ही शुभ नहीं है। उस पर रुक नहीं जाना है, इसे और बड़े आयाम देना है, बड़ी दिशाएं देनी हैं।
अगर हिंदुस्तान में युवकों के भीतर पैदा होते अनुशासनहीनता और विद्रोह को कोई दिशा दी जा सकी, तो हिंदुस्तान एक नई संस्कृति को जन्म दे सकता है। नहीं दी जा सकी तो ये बच्चे जो कुछ आपने बनाया था, उसे भी खराब कर देंगे। उसे तो खराब करने में ये भी खराब हो जाएंगे। कुछ अच्छा पैदा नहीं हो सकेगा। आपका मकान गिर जाए, इसमें तो कोई हर्जा नहीं है। लेकिन उसे गिराने में सारी दृष्टि लग गई तो ये कोई नया मकान शायद नहीं बना सकेंगे। मुझे यह दिखाई पड़ता है, मुझे ये जो विद्रोह के नये-नये स्वर पैदा हो रहे हैं, ये शुभ हैं, इनका स्वागत होना चाहिए, और इसे दिशा दी जानी चाहिए। और सारी क्रांति को इकट्ठा किया जाना चाहिए। और मुल्क के उन-उन पत्थरों पर जो परम्पराओं ने हमारे ऊपर थोप दिए हैं, उनको तोड़ा जाना चाहिए ताकि एक नये मनुष्य को, एक नई सभ्यता को पैदा किया जा सके।
यह हो सकता है। हिंदुस्तान में कभी बगावत नहीं हुई है। हिदुस्तान बहुत गैर-बगावती मुल्क है। हिंदुस्तान में कभी कोई बुनियादी क्रांतियां नहीं हुई हैं। हिंदुस्तान करीब-करीब एक ढांचे में जीता रहा है। इसीलिए तो हम मरते गए, सड़ते गए, हम नीचे गिरते गए। क्योंकि जो कौम निरंतर अपने भीतर क्रांति नहीं करती है, उसके भीतर धीरे-धीरे आत्मा क्षीण होती चली जाती है। वृक्ष हैं, हर साल पुराने पत्ते गिर जाते हैं और नये पत्ते आ जाते हैं, इसलिए वृक्ष ताजा और हर साल नई जिंदगी ले आता है। क्रांति सतत होती रहनी चाहिए समाज को, तो समाज का कचरा और कूड़ा जलता रहता है और नये समाज के, नई दिशाओं के आगमन होते रहते हैं। नये मनुष्य का जन्म होता रहता है।
तो मैं इस पक्ष में हंू। मैं उस अनुशासन को प्रेम करता हूं जो विवेक से आए। मैं उस अनुशासन को प्रेम नहीं करता जो दमन से आए, दबाव से आए, ऊपर से थोपा जाए। मैं उस अनुशासन को प्रेम करता हूं जो आत्मा से जन्मे। इसलिए बच्चों को प्रेम दें, विचार के जागरण का सहारा दें, विवेक पैदा करने के लिए, साथी और मित्र बनें। और उनके भीतर उस दीये को जला दें, जो ज्ञान का है–तो फिर उनके भीतर एक अनुशासन होगा, जो अदभुत होता है। जिसे कहीं से लाना नहीं पड़ता, खोजना नहीं पड़ता। भीतर से आता है और जीवन को बदल देता है। जैसे बैलगाड़ियां चलती हैं तो पीछे चाक के निशान बन जाते हैं, ऐसे ही जहां विवेक होता है, वहीं पीछे अनुशासन निशानों की तरह अपने आप चला आता है। लाया हुआ खतरनाक है, आया हुआ अनुशासन सदा ही स्वागत के योग्य है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 
गिरह हमारा सुन्न में-(प्रवचन-03)