ओशो- बर्ट्रेंड रसेल ने ज्ञान के दो विभाजन किए हैं। एक को कहा है नालेज, ज्ञान, और एक को कहा है एक्येनटेंस, परिचय। तो जो हम सिद्धात से जानते हैं, वह परिचय मात्र है, मियर एक्येनटेंस। वह ज्ञान नहीं है। जिसको रसेल ने ज्ञान कहा है, उसी को कृष्ण तत्व से जानना कहते हैं। टु नो ए थिंग इन इट्स एलिमेंट, उसकी जो गहरी से गहरी तात्विकता है, उसकी जो गहरी से गहरी बुनियाद है, उसमें ही जानना। अनुभव के अतिरिक्त बुनियाद में जानने का कोई उपाय नहीं है।इन दोनों मार्गों को जो उनके तत्व में जान लेता है, वह फिर मोहित नहीं होता है। वह इन दोनों मार्गों में ही मोहित नहीं होता है, ऐसा नहीं, वह समस्त विपरीतता के चक्कर से मुक्त हो जाता है। संसार से मुक्त होने का गहनतम जो अर्थ है, वह है, मुक्त हो जाना संसार की विपरीतता के नियम से, दि ला आफ दि अपोजिट। वह जो’ विपरीत खींचता है..।इसलिए योगी स्त्री को छोड्कर इसलिए नहीं जाता कि वह स्त्री है। या योगी स्त्री के साथ रहकर भी स्त्री को इसलिए नहीं छोड़ देता है कि वह स्त्री है। या अगर योगिनी है, तो पुरुष को छोड्कर इसलिए नहीं जाती, या पुरुष के साथ रहकर भी पुरुष का आकर्षण इसलिए नहीं छोड़ देती कि वह पुरुष है, बल्कि इसलिए कि वह अपोजिट है, वह विपरीत है।और विपरीत से मुक्त हुए बिना कोई भी व्यक्ति शात नहीं हो सकता। मोह से मुक्त हुए बिना, निर्मोह हुए बिना कोई भी व्यक्ति शात नहीं हो सकता। क्योंकि वह दूसरा खींचता ही रहेगा। और जब आप एक तरफ होते हैं, तब दूसरा आपको खींचता है, जब आप दूसरी तरफ जाते हैं, तब जिससे आप हट गए हैं, वह आपको पुन: खींचने लगता है। पूरा जीवन इसी तरह घड़ी के पेंडुलम की तरह दो अतियों के बीच में डांवाडोल होता है। जिसे छोड़ देते हैं, वह फिर आकर्षक हो जाता है, फिर पुकारने लगता है, फिर बुलाने लगता है। पश्चिम के मनोवैज्ञानिक दंपतियों को सलाह देते हैं कि अगर पत्नी से न बन रही हो ठीक, या पति से ठीक न बन रही हो, तो थोड़ी देर के लिए दूसरे स्त्री-पुरुषों के साथ प्रेम के अस्थायी संबंध निर्मित कर लेने चाहिए।बड़ी हैरानी की बात है। क्योंकि कोई स्त्री यह नहीं सोच सकती कि उसका पति, जब उससे नहीं बन रही है, अगर किसी और स्त्री के थोड़े-बहुत दिन के प्रेम में पड़ जाए, तो इससे कुछ लाभ होगा। इससे तो बात बिलकुल टूट जाएगी
लेकिन पश्चिम का मनोवैज्ञानिक ठीक कहता है। वह कहता है, दूसरी स्त्री से थोड़े दिन संबंध बनाकर वह फिर अपनी स्त्री के प्रति आकर्षित हो जाता है; अतियों में डोल जाता है।
असल में जिससे हम दूर हटते हैं, उसके प्रति हम फिर आकर्षित होने लगते हैं। दूर हटना, पास आने की तरकीब है, पास आना, दूर जाने की व्यवस्था है। हर चीज ऐसे ही खींचती रहती है।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ ☘️☘️ गीता-दर्शन – भाग 4 तत्वज्ञ—कर्मकांड के पार अध्याय—8 – प्रवचन—ग्यारहवां