ओशो- मैं के साथ आपका नाम जुड़ा हुआ है, मेरा नाम जुड़ा हुआ है। अगर आपका नाम राम है, कोई राम को गाली दे दे तो आप अपना होश खो देंगे। लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि किसी का कोई नाम होता है? क्या कभी विचार किया कि राम क्या मेरा नाम है? क्या किसी का भी कोई नाम है? नाम तो अत्यंत काल्पनिक औपचारिक बात है। कामचलाऊ है, जरूरत है इसलिए आपके ऊपर लगा दिया, ऊ पर से चिपका हुआ लेबिल है, आपके प्राणों से नाम का क्या संबंध है। लेकिन हमारे प्राणों से हम इस नाम को बहुत संबंधित मान कर जीते हैं।एक फकीर हुआ, राम ही नाम था उसका। किसी ने उसे गाली दी, वह खूब हंसने लगा। गाली देने वाला चैंक गया और उसने पूछा कि आप हंसते क्यों हैं? उसने कहा तुम सांझ राम की तरफ आना, तो बतायेंगे। वह थोड़ा हैरान हुआ, उसने कहा कि कौन राम? उसने कहा कि मेरी तरफ आना, तो बतायेंगे। सांझ वह आया और उसने पूछा कि आप क्यों हंसे? उसने कहा मुझे हंसी इसलिए आ गई कि तुमने जैसे ही राम को गाली दी मुझे क्रोध आने वाला था, क्रोध उठा था फिर मुझे एकदम से खयाल आया कि क्या मैं राम हूं? या कि कामचलाऊ एक शब्द है, और तब मुझे हंसी आ गई। एक शब्द जो बिलकुल कामचलाऊ है, उस पर की गई चोट मुझे कैसे पहुंच सकती है? उसे की गई चोट मुझे कैसे पहुंच सकती है, उसकी की गई प्रशंसा मुझ तक कैसे पहुंच सकती है? लेकिन आइडेंटिटी हमारी बहुत गहरी है, नाम और हम बिल्कुल एक हो गये हैं। उसमें कोई फर्क, फासला नहीं रहा। इसीलिए तो आदमी मर जाता है लेकिन कब्र पर उसका नाम हम लगा ही देते हैं। न केवल जिंदों के नाम होते हैं बल्कि मुर्दों के भी हमारी दुनिया में नाम होते हैं।एक आदमी तो मिट जाता है, मर जाता है लेकिन मंदिर पर नाम लगा जाता है। वे यहां तख्तियां कहीं न कहीं जरूर लगी होंगी। नाम से इतना गहरा, इतना गहरा, नाम जो कि बिलकुल, बिलकुल ही औपचारिक, बिलकुल औपचारिक बात है; जिसका हमारे प्राणों से कोई भी, कोई गहरा संबंध नहीं है, कोई संबंध ही नहीं है। जिसे अ कहते हैं, उसे ब कहें, स कहें कुछ भी कहें, एक कहें, दो कहें, तीन कहें काम चल जाएगा। जो इतनी कामचलाऊ बात है, वह हमें इतनी महत्वपूर्ण है? और यह नाम हमारे अहंकार का बड़ा बुनियादी हिस्सा है, इसे हटाएं, देखें नाम किसी का भी नहीं। किसी का भी नहीं है। पौधों के कोई नाम हैं, पक्षियों के कोई नाम हैं? मछलियों के कोई नाम हैं? फिर भी वे हैं, बिना नाम के पौधे हैं, बिना नाम के पक्षी हैं, बिना नाम के मछलियां हैं, बिना नाम का सारा संसार है सिर्फ आदमी को छोड़ कर। आदमी का भी कोई नाम नहीं है, बच्चा पैदा होता है, अनाम। कोई उसका नाम नहीं। लेकिन हम नाम चिपका देते हैं। और फिर वह नाम के केंद्र पर जीने लगता है। उसका नाम ऊंचा हो, उसका नाम अखबार में हो, उसके नाम की इज्जत हो, उसके नाम की चर्चा हो, उसके नाम की प्रशंसा हो, उसके नाम पर फूलों की मालाएं हों, जिंदगी में, मरने के बाद भी।
🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 🍁🍁 स्वयं की सत्ता-(प्रवचन-06) छठवां प्रवचन-(भार क्या है?)