पश्चिम के प्रभाव ने भारत को नीचे गिराया है..चरित्र में, आशा में, आत्मा में, गलत कहते हैं वे लोग “ओशो”
ओशो- भारत के दुर्भाग्य की कथा बहुत लंबी है। और जैसा कि लोग साधारणतः समझते हैं कि हमें ज्ञात है कि भारत का दुर्भाग्य क्या है, वह बात बिल्कुल ही गलत है। हमें बिल्कुल भी ज्ञात नहीं है कि भारत का दुर्भाग्य क्या है। दुर्भाग्य के जो फल और परिणाम हुए हैं वे हमें ज्ञात हैं। लेकिन किन जड़ों के कारण, किन रूट्स के कारण भारत का सारा जीवन विषाक्त, असफल और उदास हो गया है? वे कौन से बुनियादी कारण हैं जिनके कारण भारत का जीवन-रस सूख गया है, भारत का बड़ा वृक्ष धीरे-धीरे कुम्हला गया, उस पर फूल-फल आने बंद हो गए हैं, भारत की प्रतिभा पूरी की पूरी जड़, अवरुद्ध हो गई है? वे कौन से कारण हैं जिनसे यह हुआ है?निश्चित ही, उन कारणों को हम समझ लें तो उन्हें बदला भी जा सकता है। सिर्फ वे ही कारण कभी नहीं बदले जा सकते जिनका हमें कोई पता ही न हो। बीमारी मिटानी उतनी कठिन नहीं है जितना कठिन निदान, डाइग्नोसिस है। एक बार ठीक से पता चल जाए कि बीमारी क्या है, तो बीमारी के मिटाने के उपाय निश्चित ही खोजे जा सकते हैं। लेकिन अगर यही पता न चले कि बीमारी क्या है और कहां है, तो इलाज से बीमारी ठीक तो नहीं होती, अंधे इलाज से बीमारी और बढ़ती चली जाती है। बीमारी से भी अनेक बार औषधि ज्यादा खतरनाक हो जाती है, अगर बीमारी का कोई पता न हो। बीमारियां कम लोगों को मारती हैं, वैद्य ज्यादा लोगों को मार डालते हैं, अगर इस बात का ठीक पता न हो कि बीमारी क्या है।और मुझे दिखाई पड़ता है कि हमें कुछ भी पता नहीं कि हमारी बीमारी क्या है, हमारे दुर्भाग्य का मूल आधार क्या है। यह तो दिखाई पड़ता है कि दुर्भाग्य घटित हो गया है। यह तो दिखाई पड़ता है कि अंधकार जीवन पर छा गया है। एक उदासी, एक निराशा, एक हताशा, एक बोझिलपन है, और ऐसा कि जैसे हमने सब खो दिया है और आगे कुछ भी पाने की उम्मीद भी खो दी है। वह दिखाई पड़ता है। लेकिन यह क्यों हो गया है?
बहुत से लोग हैं जो इसका निदान करते हैं। कोई कहेगा कि पश्चिम के प्रभाव ने भारत को नीचे गिराया है..चरित्र में, आशा में, आत्मा में।गलत कहते हैं वे लोग। गलत इसलिए कहते हैं कि यह बात ध्यान रहे कि जैसे पानी नीचे की तरफ बहता है वैसे ही प्रभाव भी ऊपर की तरफ नहीं बहता, हमेशा नीचे की तरफ बहता है। अगर एक बुरे और अच्छे आदमी का मिलना हो तो जिसकी ऊंचाई ज्यादा होगी, प्रभाव उसकी तरफ से दूसरे आदमी की तरफ बहेगा। अगर अच्छे आदमी की ऊंचाई ज्यादा होगी तो बुरा आदमी परिवर्तित हो जाएगा और अगर अच्छे आदमी की सिर्फ बातचीत होगी और जीवन में कोई गहराई न होगी तो बुरा आदमी प्रभावी हो जाएगा और प्रभाव बुरे आदमी से अच्छे आदमी की तरफ बहने शुरू हो जाएंगे।पश्चिम से भारत प्रभावित हुआ है, इसका कारण यह नहीं है कि पश्चिम ने भारत को प्रभावित कर दिया है। इसका कारण यह है कि पश्चिम की, जिसको हम अनीति कहते हैं, वह अनीति भी हमारी नीति से ज्यादा बलवान और शक्तिशाली सिद्ध हुई है। पश्चिम की अनैतिकता की भी एक ऊंचाई है, हमारी नैतिकता की भी उतनी ऊंचाई नहीं है। पश्चिम के भौतिकवाद की भी एक सामथ्र्य है, हमारे अध्यात्मवाद में उतनी भी सामथ्र्य नहीं है, उससे भी ज्यादा निर्वीर्य और नपुंसक सिद्ध हुआ है। इसलिए प्रभाव उनकी तरफ से हमारी तरफ बहता है। इसमें दोष उनका नहीं है।पहाड़ पर पानी गिरता है, लेकिन गिरा हुआ पानी भी पहाड़ से उतर जाता है नीचे, क्योंकि पहाड़ की ऊंचाइयां इतनी हैं। और यह हो सकता है कि एक झील में पानी भी न गिरे, एक गड्ढे में पानी भी न गिरे, लेकिन पहाड़ पर गिरा हुआ पानी बह कर थोड़ी देर में गड्ढे में भर जाएगा। और गड्ढा यह कह सकता है कि पानी मुझमें भर कर मुझे भ्रष्ट कर रहा है। लेकिन गड्ढे को जानना चाहिए कि वह गड्ढा है, इसलिए पानी भर रहा है। वहां खाली जगह है, वहां नीचाई है, इसलिए प्रभाव चारों तरफ से दौड़ते हैं और भर जाते हैं।
भारत की आत्मा रिक्त और खाली है, इसलिए सारी दुनिया उसे कभी भी प्रभावित कर सकती है। जिनकी आत्माएं भरी हैं, समृद्ध हैं, वे प्रभावित नहीं होते, बल्कि प्रभावित करते हैं। यह दोष देने से कुछ भी न होगा कि पश्चिम की शिक्षा और पश्चिम की संस्कृति हमें विकृत कर रही है। यह ऐसा ही है जैसे गड्ढा कहे कि पानी भर कर मुझे नष्ट कर रहा है। गड्ढे को जानना चाहिए कि मैं गड्ढा हूं, इसलिए पानी मेरी तरफ दौड़ता है। अगर मैं पहाड़ का शिखर होता तो पानी मेरी तरफ नहीं दौड़ सकता था।
लेकिन हम गाली देकर तृप्त हो जाते हैं और सोचते हैं हमने कोई कारण खोज लिया। हम सोचते हैं हमने पश्चिम को दोष देकर कोई कारण खोज लिया।हम बिल्कुल नहीं देख पाए कि हम गड्ढे की तरह हैं, कारण वहां है।
कुछ लोग हैं जो कहेंगे कि हजार साल से भारत गुलाम था, इसलिए दीन-हीन और दरिद्र और दुखी और पीड़ित हो गया है।
वे भी गलत कहते हैं। उनकी आंखें भी बहुत गहरी नहीं हैं किसी देश की आत्मा को देखने के लिए। गुलामी से कोई मुल्क पतित नहीं होता, पतित होने से कोई मुल्क गुलाम हो सकता है। गुलामी से कोई कैसे पतित हो सकता है? और बिना पतित हुए कोई गुलाम कैसे हो सकता है? एक कौम को मरने की हमेशा स्वतंत्रता है। लेकिन जो लोग मरने के मुकाबले में गुलामी को चुन लेते हैं वे ही केवल गुलाम हो सकते हैं।लेकिन हम मृत्यु से इतने भयभीत लोग हैं कि हम कैसा भी दीन-हीन, दलित, पैरों में पड़ा हुआ जीवन स्वीकार कर सकते हैं, लेकिन मृत्यु को वरण करने की हिम्मत हमने बहुत पहले खो दी है। हम इसलिए नहीं नीचे गिर गए हैं कि हम हजार साल गुलाम रहे। हम नीचे गिरे, इसलिए हमें हजार साल गुलाम रहना पड़ा है।
और आज भी हमारी कोई ऊंचाई नहीं उठ गई है। कोई स्वतंत्र होने से ऊंचा नहीं उठ जाता है। मात्र स्वतंत्र होने से कोई ऊपर नहीं उठ जाता है। बल्कि हालतें उलटी दिखाई पड़ती हैं। गुलाम हम जैसे थे तो जैसे एक गुलामी से बंधे थे और हमारे चरित्र को चारों तरफ से दीवालें रोके हुए थीं। स्वतंत्र होकर हमारे चरित्र में और पतन आया है, ऊंचाई नहीं उठी है। जैसे स्वतंत्रता ने हमारे चरित्र में जो छिपे हुए रोग थे उन सबको मुक्त कर दिया है और स्वतंत्र कर दिया है। हम स्वतंत्र नहीं हुए, हमारी सारी बीमारियां स्वतंत्र हो गई हैं। हम स्वतंत्र नहीं हुए, हमारी सारी कमजोरियां स्वतंत्र हो गई हैं। हम स्वतंत्र नहीं हुए, हमारे भीतर जितने भी रोग के कीटाणु थे वे सब स्वतंत्र हो गए हैं। और देश गुलामी की हालत से भी बदतर हालतों में बीस वर्षों में नीचे उतर गया है।
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३
भारत का भविष्य, प्रवचन-16