ओशो– राजनीति सांसारिक है- राजनीतिज्ञ लोगों के सेवक हैं। धर्म पवित्र है- वह लोगों के आध्यात्मिक विकास के लिए पथ-प्रदर्शक है। निश्चित ही, जहां तक मूल्यों का संबंध है राजनीति निम्नतम है, और धर्म उच्चतम है, जहां तक मूल्यों का संबंध है। वे अलग ही हैं।राजनेता चाहते हैं कि धर्म राजनीति में हस्तक्षेप न करे; मैं चाहता हूं कि राजनीति धर्म में हस्तक्षेप न करे। उच्चतर को हस्तक्षेप का हर अधिकार है, किंतु निम्नतर को कोई अधिकार नहीं।
धर्म मानव-चेतना को सदियों से ऊपर उठाता रहा है। जो कुछ भी मनुष्य आज है, कितनी भी थोड़ी जो चेतना उसके पास है, उसका सारा श्रेय धर्म को है। राजनीति एक अभिशाप रही है, एक विपदा; और जो कुछ भी मानवता में अभद्र है, राजनीति उस सब के लिए जिम्मेवार है।लेकिन समस्या यह है कि राजनीति के पास शक्ति है, धर्म के पास केवल प्रेम, शांति और दिव्य का अनुभव है। राजनीति धर्म के साथ आसानी से हस्तक्षेप कर सकती है; और वह सदा से हस्तक्षेप करती चली आई है, इस सीमा तक कि उसने बहुत से ऐसे धार्मिक मूल्यों को नष्ट कर डाला है जो पृथ्वी पर मानवता और जीवन के टिके रहने के लिए नितांत आवश्यक हैं।
धर्म के पास पारमाणु हथियार, अणुबम और बंदूकों जैसी सांसारिक शक्तियां नहीं हैं; उसका आयाम बिल्कुल अलग है। धर्म शक्ति की आकांक्षा नहीं है; धर्म खोज है सत्य की, परमात्मा की। और यह खोज ही धार्मिक व्यक्ति को विनम्र, सरल और निर्दोष बना देती है।
राजनीति के पास सारे विध्वंसात्मक हथियार हैं; धर्म नितांत कोमल है। राजनीति के पास हृदय नहीं है; धर्म शुद्ध हृदय है। वह ठीक वैसे ही है जैसे एक सुंदर गुलाब का फूल- जिसका सौंदर्य, जिसका काव्य, जिसका नृत्य जीवन को जीने योग्य बनाता है, उसे अर्थ एवं महत्ता प्रदान करता है। राजनीति पत्थर जैसी है- मृत। किंतु पत्थर फूल को नष्ट कर सकता है और फूल के पास कोई सुरक्षा नहीं है। राजनीति अधार्मिक है।
राजनेता चीजों को उलटा-पलट कर दे रहे हैं। वे चाहते हैं कि धर्म राजनीति में हस्तक्षेप न करे। मनुष्य जाति को गुलामी में रखने के लिए, मनुष्यों को गुलाम बना देने, उनकी स्वतंत्रता नष्ट कर देने, उनकी चेतना नष्ट कर देने के लिए राजनीति के पास समूचा एकाधिकार चाहिए- उन्हें यंत्र-मानव में बदल देने के लिए ताकि राजनीतिज्ञ लोग शक्ति और प्रभुता का मजा ले सकें।
राजनीतिज्ञों के लिए केवल धर्म ही एक समस्या है। वह उनकी पहुंच और उनकी समझ के बाहर है। धर्म अकेला क्षेत्र है जहां राजनीतिज्ञ को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि धर्म ही एकमात्र आशा है।
राजनीति, सदियों से, बस लोगों की हत्या करती रही है, उन्हें विनष्ट करती रही है- राजनीति का सारा इतिहास अपराधियों का, हत्यारों का इतिहास है। तीन हजार वर्षों में राजनीतिज्ञों ने पांच हजार युद्ध पैदा किए हैं। लगता है राजनीतिज्ञ के भीतर बर्बरता की मूल-प्रवृत्ति बहुत शक्तिशाली है; उसका सारा आनंद विनष्ट करने में, आधिपत्य जमाने में है।
धर्म उसके लिए समस्या पैदा करता है, क्योंकि धर्म ने जगत को चेतना के शिखर प्रदान किए हैं- गौतम बुद्ध, जीसस, चवांग्त्सू, नानक, कबीर। ये पृथ्वी के नमक हैं। राजनीति ने जगत को क्या दिया है? चंगेज़ खां? तेमूरलंग? नादिरशाह? सिकंदर? नेपोलियन? इवॉन दि टेरॅबॅल? जोसेफ स्टालिन? एडोल्फ हिटलर? बेनिटो मुसोलिनी? माओत्से तुंग? रोनाल्ड रेगन?- ये सब के सब अपराधी हैं। सत्ता में होने के बजाय इन्हें सींखचों के पीछे होना चाहिए; ये अमानवीय हैं।
और वे आध्यात्मिक रूप से बीमार लोग हैं। शक्ति और आधिपत्य की महत्त्वाकांक्षा बीमार मनों में ही उपजती है। यह हीनता की ग्रंथि से उपजती है। जो लोग हीनता-ग्रंथि से ग्रसित नहीं हैं वे शक्ति की फिक्र नहीं करते; उनका सारा प्रयास शांति के लिए होता है, क्योंकि जीवन का अर्थ केवल शांति में ही जाना जा सकता है- शक्ति मार्ग नहीं है। शांति, मौन, अनुग्रह, ध्यान- ये धर्म के मूलभूत अंग हैं।
मूढ़ राजनीतिज्ञों द्वारा धर्म को नियंत्रित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। स्थिति ऐसी है जैसे कि बीमार लोग चिकित्सकों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहे हों, यह बताते हुए कि उन्हें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए। सुन लो उनसे, क्योंकि बीमारों का बहुमत है, किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि चिकित्सक बीमारों द्वारा नियंत्रित हो। चिकित्सक मनुष्यता के घावों को भर सकता है, बीमारियों से छुटकारा दिला सकता है। धर्म चिकित्सक है।
राजनीतिज्ञ लोग पर्याप्त नुकसान पहुंचा चुके हैं, और समूची मानवता को एक सार्वभौम आत्मघात की तरफ ले जा रहे हैं। और इस पर भी राजनेता हिम्मत रखते हैं कहने की कि धर्म को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए- जब कि इस ग्रह पर समस्त जीवन खतरे में है! केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि निर्दोष पक्षी और उनके गीत, मौन वृक्ष और उनके पुष्प- वह सब कुछ जो जीवित है।
पृथ्वी से जीवन को विदा कर देने के लिए राजनीतिज्ञ लोग पर्याप्त विध्वंसक शक्ति निर्मित करने में सफल हो गए हैं; और वे लगातार और-और पारमाणु हथियारों का ढेर लगाए जा रहे हैं। वास्तव में, आज से तीन वर्ष पहले इतने पारमाणु हथियार थे कि प्रत्येक मनुष्य सात बार नष्ट किया जा सके, यह समूची पृथ्वी सात बार नष्ट की जा सके, अथवा ऐसी सात पृथ्वियां नष्ट की जा सकें। एक मनुष्य एक ही बार मरता है; इतनी सारी विध्वंसक शक्ति इकट्ठा करने की कोई जरूरत नहीं है।
सारी राजनीति झूठों पर टिकी है।
अभी हाल ही में- मुझे यकीन नहीं आया कि कोई ऐसा व्यक्ति जो पागल नहीं है, ऐसे वक्तव्य दे सकता है- रोनाल्ड रेगन ने एक वक्तव्य दिया। वे सीनेट के समक्ष इन्कार कर रहे थे- लगातार- कि वे कुछ एक देशों को कोई भी हथियार दिए जा रहे थे। और अब छानबीन से पता चला है कि वे झूठ बोल रहे थे- दो वर्षों से लगातार झूठ बोल रहे थे। गरीब देशों को विध्वंसक हथियार दिए गए हैं, और थोड़ी मात्रा में नहीं- बहुत बड़ा ढेर। अब तथ्य प्रकाश में आ गए हैं और रोनाल्ड रेगन को एक वक्तव्य देना पड़ा, और वक्तव्य जो उन्होंने दिया है, उस पर मुझे हंसी आयी- इतना बेतुका।उन्होंने कहा, ‘अपने हृदय में, मैं अभी भी जानता हूं कि जो कुछ मैंने कहा वह सत्य था।’ किंतु तथ्य जो प्रकाश में आए हैं, वे बताते हैं कि वह झूठ था। मुझे अभी भी अपने हृदय में विश्वास है कि मैं सच ही बोलता आ रहा था। वे तथ्यों को स्वीकार कर रहे हैं, और फिर भी, साथ-साथ कह रहे हैं, मुझे अभी भी अपने हृदय में विश्वास है कि मैं जो कुछ भी कह रहा था आप सच था, यद्यपि तथ्य उसे गलत साबित कर रहे हैं…
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ धर्म और राजनीति-(प्रवचन-03)