वासना के लिए भविष्य का विस्तार चाहिए, इसलिए जो लोग वासनाओं से मुक्त होना चाहते हैं, उनके लिए एक ही प्रक्रिया है “ओशो”

 वासना के लिए भविष्य का विस्तार चाहिए, इसलिए जो लोग वासनाओं से मुक्त होना चाहते हैं, उनके लिए एक ही प्रक्रिया है “ओशो”

ओशो- मृत्यु का जो दंश है, जो पीड़ा है, वह जीवन की व्यर्थता के कारण है जीवनभर हम कोशिश करते हैं जो भी पाने की, उसे कभी पा नहीं पाते हैं। लगता है कि मिलेगा। लगता है कि अब मिला। लगता है कि बस, अब मिलने में कोई देर नहीं। और हर बार निशाना चूक जाता है। और मृत्यु के क्षण में आदमी पाता है कि जो भी चाहा था, वह कुछ भी नहीं मिला। सिर्फ अपनी वासनाओं की राख ही हाथ में रह जाती है।मरते क्षण में जो पीड़ा है, वह मृत्यु की नहीं, वह व्यर्थ गए जीवन की होती है। जो लोग जीवन को, जीवन की सार्थकता को, जीवन के आनंद को पा लेते हैं, वे मृत्यु से पीड़ित होते हुए नहीं देखे जाते। उन्हें तो मृत्यु एक विश्राम मालूम होती है। लेकिन अधिकतम लोग तो मृत्यु से पीड़ित होते देखे जाते हैं।

हम सबको यही लगता है कि वे मृत्यु से दुखी हो रहे हैं। वह गलत है। वे दुखी हो रहे हैं इसलिए कि वह जीवन चला गया, जिसमें पाने के बहुत मन्यूबे थे, बडी आकांक्षाएं थीं, बड़े दूर के सपने थे। बड़े तारे थे, जिन तक पहुंचना था और कहीं भी पहुंचना नहीं हो पाया। और आदमी इस पूरी दौड़ में बिना कहीं पहुंचे रास्ते पर ही मर जाता है। पड़ाव भी उपलब्ध नहीं होता, मंजिल तो बहुत दूर है। मृत्यु का जो दंश है, जो पीड़ा है, वह जीवन की व्यर्थता के कारण है।

इसलिए बुद्ध को हम दुखी नहीं देखते मरते क्षण में। सुकरात को हम दुखी नहीं देखते। महावीर को हम पीड़ित नहीं देखते। मृत्यु उन्हें मित्र की तरह आती हुई मालूम पड़ती है। लेकिन हमें शत्रु की तरह आती मालूम पड़ती है। क्यों? क्योंकि हमारी वासनाएं तो पूरी नहीं हुईं; हमें अभी और समय चाहिए। हमारी इच्छाएं तो अभी अधूरी हैं। अभी हमें और भविष्य चाहिए।

ध्यान रहे, भविष्य न हो तो हमारी इच्छाओं को फैलने की जगह नहीं रह जाती। भविष्य तो चाहिए ही, तभी हम अपनी इच्छाओं की शाखाओं को फैला सकते हैं। वर्तमान में इच्छा नहीं होती, इच्छा सदा भविष्य में होती है। वासनाओं का जाल तो सदा भविष्य में होता है, वर्तमान में कोई वासना का जाल नहीं होता। अगर कोई व्यक्ति शुद्ध वर्तमान में हो, अभी, यहीं हो, तो उसके चित्त में कोई वासना नहीं रह जाएगी।

वासना हो ही नहीं सकती वर्तमान में। वासना तो होती ही कल है, आने वाले कल में, आने वाले क्षण में। वासना का संबंध ही भविष्य से है। जो लोग गहरे में खोजते हैं, वे तो कहते हैं कि भविष्य ही इसीलिए मन पैदा करता है, क्योंकि बिना भविष्य के वासनाओं को फैलाएगा कहां। भविष्य कैनवस का काम करता है, जिसमें वासनाओं के सपने फैल जाते हैं।

इसलिए जो लोग वासनाओं से मुक्त होना चाहते हैं, उनके लिए एक ही प्रक्रिया है और वह यह है कि भविष्य को छोड़ दो और वर्तमान में जीयो। वर्तमान से आगे मत बढ़ो। जो क्षण हाथ में है, उसको ही जी लो; आने वाले क्षण का विचार ही मत करो। जब वह आ जाएगा, तब जी लेंगे। जो आदमी मोमेंट टु मोमेंट, क्षण— क्षण जीने लगता है, उसके चित्त में वासना का उपाय नहीं रह जाता। वासना के लिए भविष्य का विस्तार चाहिए।

मौत दुख देती है, क्योंकि मौत के साथ पहली दफा हमें पता चलता है, अब कोई भविष्य नहीं है। मौत दरवाजा बंद कर देती है भविष्य का, वर्तमान ही रह जाता है। और वर्तमान में तो सिर्फ टूटे हुए वासनाओं के खंडहर होते हैं, राख होती है, असफलताओं का ढेर होता है, विषाद होता है, संताप होता है। कोई वासना की पूर्ति का तो उपाय नहीं दिखता, और थोड़ा भविष्य चाहिए।

🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 🍁🍁
गीता दर्शन—भाग—5
परम गोपनीय—मौन—(प्रवचन—चौदहवा)
अध्‍याय—10