आदमी चौराहा है, जहाँ से सब रास्ते खुलते हैं, इसलिए आदमी अगर नीचे गिरे तो कोई पशु उसका मुकाबला नहीं कर सकता “ओशो”

 आदमी चौराहा है, जहाँ से सब रास्ते खुलते हैं, इसलिए आदमी अगर नीचे गिरे तो कोई पशु उसका मुकाबला नहीं कर सकता “ओशो”

ओशो- यह बात सच है कि मनुष्य अगर गिरे तो पशुओं से बहुत नीचे गिर जाता है और मनुष्य अगर उठे तो देवताओं से बहुत ऊपर उठ जाता है। देवता भी बँधे हैं, जैसे पशु बँधे हैं। इसलिए भारत के मनीषियों ने एक अपूर्व बात कही है कि अगर देवताओं को भी मोक्ष चाहिए हो तो पहले मनुष्य होना पड़ेगा। मनुष्य दोराहा है। पशुओं को मुक्त होना हो तो मनुष्य होना पड़ेगा और देवताओं को मुक्त होना हो तो मनुष्य होना पड़ेगा। क्यों? क्योंकि देवता तो बड़े ऊपर गए हुए हैं? ऊपर तो गए हुए हैं, लेकिन देवता शुभ करने को मजबूर हैं। वहाँ स्वतंत्रता नहीं है। वहाँ सुख अनिवार्य है। वहाँ रोशनी जबर्दस्ती है, उनका चुनाव नहीं है। उन्हें चौराहे पर लौटना पड़ेगा, जहाँ से सब रास्ते खुलते हैं।

आदमी चौराहा है, जहाँ से सब रास्ते खुलते हैं, इसलिए आदमी अगर नीचे गिरे तो कोई पशु उसका मुकाबला नहीं कर सकता। जंगली से जंगली जानवर भी आदमी का मुकाबला नहीं कर सकते। कोई जंगली जानवर जब भर—पेट हो तो किसी को मारता नहीं। भूखा हो तो मारता है! आदमी बड़ा अजीब है। जब भरे—पेट होता है तब शिकार को निकलता है। कोई पशु अपनी ही जाति के प्राणियों को नहीं मारता—कोई सिंह सिंह को नहीं मारता, कोई कुत्ता किसी कुत्ते को नहीं मारता है—अकेला आदमी है जो आदमी को मारता है। और खूब मारता है। और बड़े आयोजन से मारता है। और बड़े झंडे इत्यादि उठाकर और बड़े दर्शनशास्त्र खड़े करके मारता है। और इस ढंग से मारता है कि लगे कि कोई बड़ा काम कर रहा है। हो रहा है कुल मारा जाना, लेकिन ऊँचे ऊँचे नाम— कभी धर्म की आड़, कभी राजनीति की आड़, कभी देश की आड़, कभी स्वतंत्रता की आड़; कभी लोकतंत्र, कभी समाजवाद, न—मालूम कैसे—कैसे शब्द, ऊँचे—ऊँचे शब्द, और आकर पीछे गौर से अगर देखो तो आदमी आदमी को मारने में लगा हुआ है। शांति की बातें करता है, युद्ध की तैयारी करता है। कहता है— शांति होगी कैसे अगर युद्ध के अस्त्र—शस्त्र पास में नहीं होंगे।

आदमी का पूरा इतिहास युद्धों का इतिहास है। पशु—पक्षी तो कभी मार लेते हैं जब उन्हें भूख लगी होती है। आदमी का मारना जघन्य है, अपराधपूर्ण है, पाप है। आदमी पशुओं से नीचे गिरता है, लेकिन देवताओं से ऊपर भी उठ जाता है। ये कथाएँ व्यर्थ ही नहीं हैं कि जब बुद्ध को ज्ञान उत्पन्न हुआ तो देवता स्वर्ग से उतरे और उन्होंने फूल बरसाए। ऐसा वस्तुतः हुआ कि नहीं, यह सवाल नहीं है, ये कोई ऐतिहासिक घटनाएँ नहीं है, ये तो प्रतीक कथाएँ हैं। ये यह कह रही हैं कि जब कोई आदमी बुद्धत्व को उपलब्ध होता है, तो देवता छोटे पड़ जाते हैं। बस उनका काम फूल बरसाने का रह जाता है। बुद्ध ज्ञान को उपलब्ध हुए तो देवता उनके चरणों में आकर झुके। उनके चरणों की धूल सिर पर चढ़ायी। बुद्धत्व देवत्व से ऊपर है। आदमी की सहजता जबर्दस्ती आनेवाली बात नहीं है। आदमी सदा मुक्त रहेगा। इसलिए यह तो मत पूछो कि मनुष्य कभी सहज जीवन की ओर मुड़ेगा कि नहीं? एक—एक व्यक्ति अपना—अपना निर्णय ले सकता है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३