हिट योग, तुम कितने ऐसे काम कर रहे हो जो तुम्हें पता नहीं, लेकिन वह तुम्हारी कल्पना से हो रहा है “ओशो”
ओशो- कल्पना क्या है? यह किसी धारणा में इतना गहरे चले जाना है कि वह धारणा ही वास्तविकता बन जाए। उदाहरण के लिए, तुमने एक विधि के बारे में सुना होगा। जो तिब्बत में प्रयोग की जाती है।
वे उसे ऊष्मा योग कहते है। सर्द रात है, बर्फ गिर रही है। और तिब्बतन लामा खुले आकाश के नीचे नग्न खड़ा हो जाता है, तापमान शून्य से नीचे है। तुम तो मरने ही लगोगे, जम जाओगे। लेकिन लामा एक विधि का अभ्यास कर रहा है। विधि यह है कि वह कल्पना कर रहा है कि उसका शरीर एक लपट है। और उसके शरीर से पसीना निकल रहा है। और सच ही उसका पसीना बहने लगता है जब कि तापमान शून्य से नीचे है। और खून तक जम जाना चाहिए। उसका पसीना बहने लगता है। क्या हो रहा है? यह पसीना वास्तविक है, उसका शरीर वास्तव में गर्म है, लेकिन यह वास्तविकता कल्पना से पैदा की गई है।
तुम कोई सरल सी विधि करके देखो। ताकि तुम महसूस कर सको कि कल्पना से वास्तविकता कैसे पैदा की जा सकती है। जब तक तुम यह महसूस न कर लो, तुम इस विधि का उपयोग नहीं कर सकते। जरा अपनी धड़कन को गिनो। बंद कमरे में बैठ जाओ और अपनी धड़कन को गिनो। और फिर पाँच मिनट के लिए कल्पना करो कि तुम दौड़ रहे हो। कल्पना करो कि तुम दौड़ रहे हो, गर्मी लग रही है, तुम गहरी श्वास ले रहे हो, तुम्हारा पसीना निकल रहा है। और तुम्हारी धड़कन बढ़ रही है, पाँच मिनट यह कल्पना करने के बाद फिर अपनी धड़कन गिनो। तुम्हें अंतर पता चल जायेगा। तुम्हारी धड़कन बढ़ जाएगी। यह तुमने कल्पना करके ही कर लिया, तुम वास्तव में दौड़ नहीं रहे थे।
प्राचीन तिब्बत में बौद्ध भिक्षु कल्पना द्वारा ही शारीरिक अभ्यास किया करते थे। और वे विधियां आधुनिक मनुष्य के लिए बड़ी सहयोगी हो सकती है। क्योंकि सड़कों पर दौड़ना अब कठिन है, दूर तक घूमने जाना कठिन है। कोई निर्जन जगह खोज पाना कठिन है। तुम बस अपने कमरे में फर्श पर लेट कर एक घंटे के लिए यह कल्पना कर सकते हो कि तुम तेजी से चल रहे हो। कल्पना में ही चलते रहो। और अब तो चिकित्सा विशेषज्ञ कहते है कि उसका प्रभाव सच में चलने के समान ही होगा। एक बार तुम अपनी कल्पना से लयवद्ध हो जाओ तो शरीर काम करने लगता है।
तुम पहले ही कितने ऐसे काम कर रहे हो जो तुम्हें पता नहीं तुम्हारी कल्पना कर रही है। कई बार तुम कल्पना से ही कई बीमारियां पैदा कर लेते हो। तुम कल्पना करते हो कि फलां बीमारी,जो संक्रामक है, सब और फैली हुई है। तुम ग्रहणशील हो गए, अब पूरी संभावना है कि तुम बीमारी पकड़ लोगे। और वह बीमारी वास्तविक होगी। लेकिन यह कल्पना से निर्मित हुई थी। कल्पना एक शक्ति है। एक ऊर्जा है और मन उससे चलता है। और जब मन उससे चलता है तो शरीर अनुसरण करता है।