महाभारत #भारत की #सभ्यता का आत्यंतिक शिखर था जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं “ओशो”

 महाभारत #भारत की #सभ्यता का आत्यंतिक शिखर था जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं “ओशो”

प्रश्न: महाभारत को आपने बहुत-बहुत महिमा दी है, उसे जीवन का पूरा काव्य कहा है। तब क्या यह दावा सही है कि जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं है?

ओशो: पहली बात, दावा सही है। जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं है। महाभारत का जन्म हुआ उस आत्यंतिक शिखर पर, जहां तक कोई भी सभ्यता पहुंच सकती है। जैसे ऋतुओं में वसंत है; और वसंत में जो सौंदर्य जाना है, वह आत्यंतिक है। फिर वर्ष में बहुत बार उसकी भनक मिलेगी, लेकिन शिखर तो वसंत में ही छुआ जाएगा।

हर सभ्यता के जीवन में वसंत आता है। लेकिन फिर वसंत के बाद ही तो उतार शुरू हो जाते हैं। हर सभ्यता अपने ऊंचे शिखर पर पहुंचती है। फिर वहीं से उतार शुरू हो जाता है। क्योंकि जहां पूर्णता होती है, वहीं से मृत्यु घटने लगती है।

महाभारत #भारत की #सभ्यता का आत्यंतिक शिखर था। पर शिखर से पतन होता है। जैसे गाड़ी का चाक घूमता है; जो हिस्सा ऊपर पहुंचता है, ठीक ऊपर पहुंच जाता है, बस फिर नीचे उतरना शुरू हो जाता है। जैसे जीवन का चाक घूमता है; बच्चा है, जवान होता है, बूढ़ा होता है, मरता है।
तुमने कभी ख्याल किया कि कब तुम बूढ़े होने शुरू हो जाते हो! ठीक पैंतीस वर्ष की उम्र में तुम बूढ़े होने शुरू हो जाते हो। पता तुम्हें शायद पचास साल की उम्र में चलता है, वह दूसरी बात है। लेकिन बूढ़े तो तुम पैंतीस साल के–अगर तुम सत्तर साल जीने वाले हो, तो वर्तुल सत्तर साल में पूरा होगा, तो पैंतीस साल में आखिरी ऊंचाई छू लेगा।
तो पैंतीस साल में तुम्हारी प्रतिभा अपने निखार पर होती है। शरीर अपनी स्वास्थ्य की आखिरी ऊंचाई पर होता है। फिर वहां से ऊर्जा गिरनी शुरू होती है। इसलिए कोई चालीस-पैंतालीस के बीच हार्ट अटैक और सब तरह की बीमारियां आनी शुरू होती हैं। ऊर्जा उतरने लगी। मौत खबर देने लगी, द्वार पर दस्तक मारने लगी।

यह उचित ही है कि #कृष्ण भारत के परम शिखर हैं। हमने उनको #पूर्णावतार कहा है।

पूरब की सभ्यता ने अपनी आत्यंतिक ऊंचाई गौरीशंकर को छुआ। महाभारत में वह सारा सार-निचोड़ है, जो पूरब ने जाना था अपनी लंबी यात्रा में जीवन की; हजारों वर्षों का सार-निचोड़ है। लेकिन फिर पतन हो गया, होना ही था।
तो महाभारत ऊंचाई भी है, और पतन भी है। वहीं से वर्तुल फिर नीचे उतरना शुरू हुआ। फिर उस ऊंचाई को हम दुबारा नहीं छू सके हैं अभी तक। फिर हम भटक रहे हैं, फिर हम खोज रहे हैं।

और भारत का मन सदा ही पीछे की तरफ लगा है। क्योंकि जो ऊंचाई हमने एक दफा देख ली थी, जो स्वर्ण-शिखर हमने छू लिए थे, वे भूलते भी नहीं। वे हमारे स्वप्नों में आ जाते हैं; हमारे काव्य में उतरते हैं; छाया की तरह हमें वे घेरे रहते हैं, उनका माधुर्य हमें बुलाता है।

इसलिए सारी दुनिया में भारत शायद अकेला मुल्क है, जो पीछे की तरफ देखता है। #अमेरिका में लोग आगे की तरफ देखते हैं। उन्होंने अभी अपना आखिरी शिखर नहीं छुआ है। जैसे छोटा बच्चा भविष्य की तरफ देखता है; बूढ़ा पीछे की तरफ देखने लगता है। अमेरिका में लोग कल की सोचते हैं। भारत में हम गए, बीते कल की सोचते हैं।
कारण है। हमने ऊंचाई देख ली; अब उससे और ऊंचे जाना संभव नहीं मालूम होता, असंभव मालूम होता है। महाभारत उस सारी सभ्यता का सार-निचोड़ है, जो बिखर गई, खो गई। और भी सभ्यताएं दुनिया में पैदा हुई हैं, बिखर गईं, खो गईं। लेकिन वे अपना सार-निचोड़ छोड़ नहीं पाईं।

जैसे कि #बेबीलोन की सभ्यता खो गई। कुछ थोड़े से खंडहर रह गए हैं। कोई ऐसा महाग्रंथ नहीं छूटा, जो उनके पूरे गौरव की कथा कहता।
असीरिया की सभ्यता खो गई; इजिप्त की सभ्यता खो गई। पिरामिड खड़े हैं, पत्थर के शिलालेख। लेकिन ज्ञान-गरिमा का कोई स्रोत नहीं छूट गया है, जिससे कि हम फिर से समझ लें कि इजिप्त ने क्या छुआ था अपनी जवानी में, अपनी पूर्णता की अवस्था में! यौवन की आखिरी ऊंचाई पर इजिप्त ने क्या जाना था, कहना मुश्किल है। कल्पना की जा सकती है।
अकेला भारत ऐसा मुल्क है कि उसने जो जाना था, वह महाभारत में छूट गया है। वह लिखा हुआ है। आज उस पर भरोसा भी नहीं आ सकता। बहुत-सी बातें गैर-भरोसे की हो गई हैं। क्योंकि उन्हें आज सिद्ध करना भी मुश्किल है। लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान की खोज आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे लगता है कि जो भी महाभारत में लिखा है, वह सब सही हुआ होगा। क्योंकि विज्ञान उस सब को फिर से प्रत्यक्ष किए ले रहा है।

अब यह थोड़ा सोचने जैसा है कि महाभारत में जिन अस्त्र-शस्त्रों की धारणा है, वे ठीक आणविक मालूम होते हैं। उनसे जैसा विराट विध्वंस हुआ, वह केवल अणु अस्त्रों से हो सकता है।
पश्चिम फिर अणु अस्त्रों के करीब पहुंच गया है। और इस बात की संभावना है कि अगर कोई तीसरा महायुद्ध हुआ, तो सारी सभ्यता विनष्ट हो जाएगी। फिर जो उल्लेख रह जाएंगे, हजारों साल तक उन पर भरोसा न आएगा कि यह हो सकता है, क्योंकि उनका कोई प्रमाण न छूट जाएगा।

और आश्चर्य की बात यह है कि जब भी कोई सभ्यता नष्ट होती है, तो उसके महानगर, जहां सभ्यता केंद्रित होती है, पहले नष्ट होते हैं। छोटे गांव, दूर आदिम कबीले बच जाते हैं। जैसे आज अगर भारत नष्ट हो जाए और बस्तर के आदिवासी बच जाएं, तो उनकी कहानियों में यह बात रह जाएगी कि रेलगाड़ियां चलती थीं, हवाई जहाज उड़ते थे। लेकिन वे अपने बच्चों को समझा न सकेंगे। और अगर बच्चे पूछेंगे, कैसे उड़ते थे? तो बस्तर का आदिवासी कैसे समझाएगा कि हवाई जहाज कैसे उड़ता था! उसने देखा था उड़ते हुए, बाकी कैसे उड़ता था, यह बस्तर का आदिवासी कैसे समझाएगा! वह तो पूरा शास्त्र है उसको समझना तो।
अगर तीसरा महायुद्ध हुआ, तो न्यूयार्क, लंदन, बंबई, दिल्ली, पेरिस नष्ट हो जाएंगे; महानगरियां तो नष्ट हो जाएंगी। बचेंगे छोटे-मोटे गांव, दूर पहाड़ों में दबे। उनकी कहानियों में याद रह जाएगी। और हजारों साल तक वे कहानियां दोहराएंगे, और बड़े उससे दोहराएंगे कि हमने जाना है। लेकिन बच्चों को संदेह होगा, क्योंकि सब कहानियां मालूम होती हैं; कोई प्रमाण उनके पास न होगा।

जब भी कोई महा सभ्यता खोती है, तो उसके सारे प्रमाण टूट जाते हैं।

यह जो कहा जाता है कि महाभारत में जो है, वह सब है, और जो वहां नहीं है, वह कहीं भी नहीं है, वह बहुत अर्थों में सही है। क्योंकि जब भी कोई एक सभ्यता अपनी ऊंचाई को छूती है, तो वह उन सभी बातों को छू लेती है, जो कोई भी सभ्यता अपनी ऊंचाई में छुएगी। थोड़े-बहुत फर्क फासले होंगे, लेकिन मौलिक बात एक ही होने वाली है।

मैं भी कहता हूं कि जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं है। अगर न मिले महाभारत में, तो जरा गौर से खोजना। बस, मिल जाएगा। जो भी तुम्हें कहीं मिल जाए, उसको तुम महाभारत में गौर से खोजना।
महाभारत हमारा इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका है। जैसे कि जो तुम्हें इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में न मिले, वह समझना कि होगा ही नहीं। वह उनका सार संचय है। अगर योरोप की सभ्यता खो जाए और ब्रिटानिका रह जाए, तो जैसी हालत होगी, वैसे ही महाभारत रह गया, हमारी सभ्यता खो गई।

वह हमारा शब्दकोश, हमारा भाषाकोश, हमारा ज्ञानकोश, विश्वकोश, सब कुछ है। यद्यपि उन दिनों चीजों को कहने के ढंग अलग थे। कथाओं में हमने कहा था। और वे कहने के ढंग भी सोचने जैसे हैं।

कथाओं को याद रखना आसान है; हजारों साल तक याद रखा जा सकता है। क्योंकि कहानी में याददाश्त में उतर जाने की एक क्षमता होती है। इसलिए हमने कहानियों में लिखा था। और कहानियों में हमने सब रख दिया था। जब भी किसी के पास आंख होगी, खोलने की समझ होगी, कुंजी होगी, वह खोल लेगा।

और महाभारत के मध्य में है #गीता। महाभारत में सब है। जो महाभारत में नहीं है, वह कहीं भी नहीं। और जो भी महाभारत में है, उसका नवनीत गीता में है। और जो गीता में नहीं है, वह महाभारत में नहीं है। गीता हमारी सारी आध्यात्मिक खोज की नवनीतशृंखला है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 

गीता दर्शन (भाग: आठ)
अध्याय – १८
प्रवचन – १४