भिलाई/ छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भिलाई चरोदा नगर निगम क्षेत्र अंतर्गत उम्दा रोड स्थित ओशो आश्रम में गुरूवार संध्या 7 बजे तीन दिवसीय ध्यान शिविर “मन ही पूजा मन ही धूप” का उद्घाटन जबलपुर से आए शिविर संचालक स्वामी अनादि अनंत के द्वारा किया गया। शिविर में उपस्थित साधकों ने ध्यान और नृत्य उत्सव कर ओशो द्वारा बताए गए ध्यान को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करने संकल्प लिया। इस दौरान शिविर संचालक स्वामी अनादि अनंत ने बताया कि शुक्रवार दिनांक 4/10/2024 को प्रातः 7 बजे से ध्यान शुरु होगा और प्रतिदिन 4 से 5 अलग अलग ध्यान प्रयोग ध्यान शिविर में कराए जाएंगे।ओशो ने बताया ध्यान क्या है?
जब लोग आकर मुझसे पूछते हैं, ‘ध्यान कैसे करें?’ मैं उन्हें कहता हूं, ‘यह पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है कि ध्यान कैसे करें, बस पूछें कि कैसे स्वयं को खाली रखें। ध्यान सहज घटता है। बस पूछो कि कैसे खाली रहना है, बस इतना ही। यह ध्यान की कुल तरकीब है – कैसे खाली रहना है। तब आप कुछ भी नहीं करेंगे और ध्यान का फूल खिलेगा।
जब तुम कुछ भी नहीं करते तब ऊर्जा केंद्र की तरफ बढ़ती है, यह केंद्र की ओर एकत्रित हो जाती है। जब तुम कुछ करते हो तो ऊर्जा बाहर निकलती है। करना बाहर की ओर जाने का एक मार्ग है। ना करना भीतर की ओर जाने का एक मार्ग है। किसी कार्य को करना पलायन है। तुम बाइबिल पढ़ सकते हो, तुम इसे एक कार्य बना सकते हो। धार्मिक कार्य और धर्मनिरपेक्ष कार्य के बीच कोई अंतर नही है: सभी कार्य, कार्य हैं, और वे तुम्हें तुम्हारी चेतना से बाहर की ओर ले जाने में मदद करते हैं। वे बाहर रहने के लिए बहाने हैं।
मनुष्य अज्ञानी और अंधा है, और वह अज्ञानी और अंधा बने रहना चाहता है, क्योंकि स्वयं के भीतर आना अराजकता में प्रवेश करने की भांती लगता है। और ऐसा ही है; अपने भीतर तुमने एक अराजकता निर्मित कर ली है। तुम्हें इसका सामना करना होगा और इससे होकर गुजरना होगा। साहस की आवश्यकता है – साहस- स्वयं होने का, साहस- भीतर जाने का। ध्यानपूर्वक होने का साहस – इस साहस से बड़ा साहस मैंने नहीं जाना है।
तो ध्यान क्या है? ध्यान है केवल स्वयं की उपस्थिति में आनंदित होना; ध्यान स्वयं में होने का आनंद है। यह बहुत सरल है – चेतना की पूरी तरह से विश्रांत अवस्था जहां तुम कुछ भी नहीं कर रहे होते। जिस क्षण तुम्हारे भीतर कर्ता भाव प्रवेश करता है तुम तनाव में आ जाते हो; चिंता तुरंत तुम्हारे भीतर प्रवेश कर जाती है। कैसे करें? क्या करें? सफल कैसे हों? असफलता से कैसे बचें? तुम पहले ही भविष्य में चले जाते हो।
यदि तुम विचार कर रहे हो, तो तुम क्या विचार कर सकते हो? तुम अज्ञात पर कैसे विचार कर सकते हो? तुम केवल ज्ञात पर विचार कर सकते हो। तुम इसे बार-बार चबा सकते हो, लेकिन यह ज्ञात है। यदि तुम जीसस के बारे में कुछ जानते हो, तो तुम इस पर बार-बार चिंतन कर सकते हो; अगर तुम कृष्णा के बारे में कुछ जानते हो, तो तुम इस पर बार-बार चिंतन कर सकते हो; तुम संशोधन, बदलाहट, सजावट किए जा सकते हो – लेकिन यह तुम्हें अज्ञात की ओर ले जाने वाला नहीं है। और “ईश्वर” अज्ञात है।
ध्यान मात्र होना है, बिना कुछ किए – कोई कार्य नहीं, कोई विचार नहीं, कोई भाव नहीं। तुम बस हो। और यह एक कोरा आनंद है। जब तुम कुछ नहीं करते हो तो यह आनंद कहां से आता है? यह कहीं से नहीं आता या फिर हर जगह से आता है। यह अकारण है, क्योंकि अस्तित्व आनंद नाम की वस्तु से बना है। इसे किसी कारण की आवश्यकता नहीं है। यदि तुम अप्रसन्न हो तो तुम्हारे पास अप्रसन्नता का कारण है; अगर तुम प्रसन्न हो तो तुम बस प्रसन्न हो – इसके पीछे कोई कारण नहीं है। तुम्हारा मन कारण खोजने की कोशिश करता है क्योंकि यह अकारण पर विश्वास नहीं कर सकता, क्योंकि यह अकारण को नियंत्रित नहीं कर सकता – जो अकारण है उससे दिमाग बस नपुंसक हो जाता है। तो मन कुछ ना कुछ कारण खोजने में लग जाता है। लेकिन मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि जब भी तुम आनंदित होते हो, तो तुम किसी भी कारण से आनंदित नहीं होते, जब भी तुम अप्रसन्न होते हो, तो तुम्हारे पास अप्रसन्नता का कोई कारण होता है – क्योंकि आनंद ही वह चीज है जिससे तुम बने हो। यह तुम्हारी ही चेतना है, यह तुम्हारा ही अंतरतम है। प्रसन्नता तुम्हारा अंतरतम है।
देखें ध्यान शिविर उद्घाटन की वीडियो
https://youtube.com/shorts/NW6v4_BImA0?si=4Y8EXklIoXnQbiQW
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