ओशो- प्रेम की मौलिक समस्या है पहिले विकसित और परिपक्व बनना, तब तुम एक विकसित साझीदार खोज लोगे और तब अविकसित लोग तुम्हें ज़रा भी आकर्षित नहीं करेंगे। यह ठीक उसी तरह होगा जैसे यदि तुम पच्चीस वर्ष की आयु के हो तो तुम एक दो वर्ष की बेबी के प्रेम नहीं पड़ोगे ठीक इसी तरह से जब तुम मनोवैज्ञानिक रूप से और धार्मिक रूप से एक परिपक्व व्यक्ति हो—तुम एक छोटी बच्ची के साथ प्रेम में नहीं पड़ोगे ऐसा कभी नहीं होता और न ऐसा हो सकता है। तुम देख सकते हो कि यह अर्थ हीन होने जा रही है।वास्तव में एक विकसित और परिपक्व व्यक्ति प्रेम में गिरता ही नहीं है, वह प्रेम में उपर उठता है। वह प्रेम में गिरना शब्द ही ठीक नहीं है। केवल अविकसित लोग ही प्रेम में गिरते हैं। वे टकराते हैं और प्रेम में गिर जाते है। वे लोग किसी तरह व्यवस्था बनाकर खड़े हुए थे, लेकिन अब वे न तो व्यवस्था कर सकते हैं, और नहीं खड़े हो सकते है-वे एक स्त्री खोजते हैं, अथवा वे एक पुरूष खोजती हैं, और उसके पीछे लग जाते हैं। वे लोग हमेशा से पहिले ही जमीन पर गिरने को और रेंगने को तैयार होते है। उसके पास कोई रीढ़ की हड्डी नहीं होती है, और उनके पास अकेले खड़े होने की स्थिरता नहीं होती है।
एक विकसित और परिपक्व व्यक्ति के पास अकेले खड़े होने की सत्यनिष्ठा होती है। और जब एक विकसित व्यक्ति प्रेम देता है; तो वह कृतज्ञता का अनुभव करता है कि तुम ने उसका प्रेम स्वीकार किया। वह तुमसे इसके विपरीत इसके लिए ज़रा भी धन्यवादी होने की अपेक्षा नहीं करता। उसे तुम्हारे धन्यवाद की भी जरूरत नहीं होती। वह अपना प्रेम स्वीकार करने के लिए तुम्हें धन्यवाद देता है।
जब दो विकसित और परिपक्व व्यक्ति प्रेम में होते हैं, जीवन के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक घटती है, एक सबसे अधिक सुंदर घटना घटती है। वे लोग एक साथ होते है और फिर अत्यधिक अकेले भी होते है। वे इतने अधिक एक साथ होते हैं कि वे लगभग एक होते है। लेकिन उनका एकत्व उनकी वैयक्तिकता को नष्ट नहीं करता। वास्तव में वह उसे बढ़ाता है। वे और अधिक वैयक्तिक होते जाते है। दो विकसित और परिपक्व व्यक्ति प्रेम में स्वतंत्र होने के लिए एक दूसरे की सहायता करते हैं। न वहां कोई भी राजनीति, न कोई भी कूटनीति और न प्रभुत्व जमाने का कोई प्रयास ही संयुक्त होता है। जिस व्यक्ति से तुम प्रेम करते हो, तुम उस पर कैसे प्रभुत्व जमा सकते हो?जरा इस पर विचार करो।
प्रभुत्व स्थापित करना एक तरह की घृणा की तरह का क्रोध और शत्रुता है। जिस व्यक्ति से तुम प्रेम करते हो, तुम उस पर प्रभुत्व स्थापित करने की बात भी कैसे सोच सकते हो? तुम उस व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वतंत्र देखने से प्रेम होगा। और तुम उसे और-और अधिक वैयक्तिकता देना चाहोगे। इसी कारण मैं इसे सबसे अधिक विरोधाभास मानता हूं। वे दोनों इतने अधिक एक साथ हैं कि वे लगभग एक हो गए हैं, लेकिन अपने एकत्व में वे फिर भी वैयक्तिक है। उनकी वैयक्तिकता नष्ट नहीं होती। वे और अधिक बढ़ती जाती है। जहां तक उनकी स्वतंत्रता का संबंध है दूसरे ने उसे और अधिक समृद्ध बना दिया है।
प्रेम में अविकसित और अपरिपक्व लोग प्रेम में गिरकर एक दूसरे की स्वतंत्रता को नष्ट कर देते है, वे एक बंधन सृजित करते है और उसे एक कारागार बना देते है। विकसित लोग प्रेम में एक दूसरे को स्वतंत्र होने में सहायता करते हैं। और जब प्रेम स्वतंत्रता से प्रवाहित होता है तो वहां एक सौंदर्य होता है। जब प्रेम आश्रित होने के साथ प्रवाहित होता है तो उसमें एक तरह की कुरूपता आ जाती है।
स्मरण रहे, प्रेम की अपेक्षा स्वतंत्रता का कहीं अधिक उच्च मूल्य होता है, इसी कारण भारत में हम मोक्ष को सर्वोच्च अथवा अंतिम कहते हैं। मोक्ष का अर्थ है स्वतंत्रता। प्रेम की अपेक्षा स्वतंत्रता कहीं अधिक मूल्यवान है। इसलिए यदि प्रेम स्वतंत्रता को नष्ट कर रहा है, तो वह किसी मूल्य का नहीं है। स्वतंत्रता को बचाने के लिए प्रेम को छोड़ा जा सकता है। स्वतंत्रता कहीं अधिक मूल्यवान है। और बिना स्वतंत्रता के तुम कभी भी प्रसन्न नहीं हो सकते, यह सम्भव है ही नहीं। स्वतंत्रता पूर्ण स्वतंत्रता, परिपूर्ण स्वतंत्रता, प्रत्येक पुरूष और प्रत्येक स्त्री की अंतर्निहित कामना होती है।
स्वतंत्रता कहीं अधिक मूल्यवान है। और बिना स्वतंत्रता के तुम कभी भी प्रसन्न नहीं हो सकते, यह सम्भव है ही नहीं। स्वतंत्रता पूर्ण स्वतंत्रता, परिपूर्ण स्वतंत्रता, प्रत्येक पुरूष और प्रत्येक स्त्री की अंतर्निहित कामना होती है।