जब तक तुम खुद ही अपना सहारा पकड़े हुए हो तो तब तक परमात्मा का सहारा नहीं मिलता “ओशो”

 जब तक तुम खुद ही अपना सहारा पकड़े हुए हो तो तब तक परमात्मा का सहारा नहीं मिलता “ओशो”

ओशो– अफ्रीका में बहुत से कबीले हैं जो दिन में एक ही बार भोजन करते हैं। चोबीस घंटे में एक ही बार। जब उनको पहली दफा पता चला कि दुनिया में और लोग दो बार करते हैं, कुछ लोग तीन बार और अमरीकी हैं जो पांच बार। और पांच बार के बीच-बीच में जो-जो फ्रिज तक जाते हैं, उसकी कोई गिनती ही नहीं। तो उनको भरोसा ही नहीं आया। मगर उन्होंने कभी यह नहीं सोचा कि वे कोई त्याग कर रहे हैं कि एक ही बार भोजन कर रहे हैं।शरीर के समायोजन की क्षमता इतनी है कि तुम एक बार भोजन करो तो वह धीरे-धीरे एक ही बार में उतना भोजन लेने लगता है जितना चैबीस घंटे के लिए जरूरी है। इसलिए जो लोग एक बार भोजन करेंगे उनकी तोंदें बड़ी हो जाएंगी। तुम जैन मुनियों को देखो। जैन मुनियों की तोंद तो होनी ही नहीं चाहिए। जैन मुनि और तोंद का संबंध ही नहीं होना चाहिए। क्योंकि जैन मुनि तो बेचारा उपवास करता है, लंबे उपवास करता है..दो-दो तीन-तीन दिन के, फिर पंद्रह-पंद्रह दिन के भी उपवास करता है। मगर उसकी तोंद क्यों बढ़ जाती है? क्योंकि जब वह दो-तीन दिन के बाद भोजन करता है तो फिर डट कर ही करता है।

तुम देखोगे कि जहां अकाल पड़ जाता है वहां बच्चों के पेट बड़े हो जाते हैं। फोटुएं तुमने अखबारों में देखी होंगी। क्यों? अकाल पड़ा है, बच्चों के पेट बड़े क्यों हैं? इसीलिए कि जब मिल जाता है तब वे इतना कर जाते हैं जितना कि दो-चार-आठ दिन के लिए जरूरी है, नहीं तो जिएंगे कैसे? जैसे-जैसे कोई देश समृद्ध होता जाता है वैसे-वैसे उस देश में तोंद कम होती जाती है। जब भोजन ठीक से उपलब्ध होने लगता है तो तोंद समाप्त हो जाती है, अपने आप समाप्त हो जाती है। क्योंकि उसकी कोई जरूरत नहीं है। जब जरूरत होगी तब भोजन कर लेंगे।

और आदमी शाकाहारी है। आदमी की जो पेट की व्यवस्था है वह बताती है कि वह शाकाहारी है। उसकी जो अंतड़ियां हैं पेट की, वे बताती हैं कि वह शाकाहारी है। क्योंकि मांसाहारी जानवरों के पेट की अंतड़ी छोटी होती हैं और शाकाहारी जानवरों के पेट की अंतड़ियां बहुत बड़ी होती हैं। मनुष्य के पेट की अंतड़ियां बहुत बड़ी हैं, कई फीट लंबी हैं। गुड़री मार कर बैठी हैं। क्योंकि मांस तो पचा हुआ भोजन है। वह दूसरे ने पचा लिया, तब तो मांस बना। इसलिए छोटी अंतड़ी काफी है।

सिंह के पेट की अंतड़ी बहुत छोटी होती है, इसलिए सिंह चैबीस घंटे में एक ही बार भोजन करता है। कर ही नहीं सकता दो बार करना भी चाहे तो। उसकी अंतड़ी में जगह नहीं होती। और एक ही बार का भोजन पर्याप्त हो जाता है, क्योंकि पचा हुआ है उसको पचाने का काम खुद भी नहीं करना पड़ता। और भारी भी है मांसाहार, क्योंकि पूरा का पूरा भोजन पचा हुआ है। उसमें कुछ भी व्यर्थ नहीं है जो फेंकना है बाहर। जब तुम शाक-सब्जी खाते हो उसमें सत्तर प्रतिशत तो बेकार है, कूड़ा-करकट है; उसे बाहर फेंकना पड़ेगा। तुम्हें बड़ी अंतड़ी चाहिए, क्योंकि सत्तर प्रतिशत जगह तो व्यर्थ की चीजें ले लेंगी, तीस प्रतिशत ही सार्थक चीजों के लिए जगह बचेगी।

इसलिए जितने शाकाहारी जानवर हैं, जैसे बंदर, वह दिन भर तुम देखो चल रहा है काम उनका। इस झाड़ से उस झाड़ पर…। अमरीकी उसी अवस्था में आ गए हैं। सुबह-सुबह..ब्रेकफास्ट…फास्ट किया ही नहीं है..और ब्रेकफास्ट! अजीब आदमी हैं। लेकिन वे उसको फास्ट कहते हैं..रात जो बारह बजे भोजन बंद कर दिया, सो गए और फिर सुबह जो आठ बजे उठे तो आठ घंटे का फास्ट हो गया न! वह आठ घंटे का उपवास हो गया। अब उपवास-भंग, ब्रेकफास्ट। फिर दिन भर यह प्रक्रिया चलती है बारह बजे रात तक।

शरीर के समायोजन की व्यवस्थाएं हैं।

जितना समृद्ध देश होगा उतनी ही तोंदें कम होंगी। जितना गरीब देश होगा उतनी ही तोंदे ज्यादा होगी। और साधु-संन्यासियों की तोंदों का तो कहना ही क्या! तुमने मुक्तानंद के गुरु नित्यानंद की तोंद देखी? अगर नहीं देखी तो दुनिया का दसवां चमत्कार नहीं देखा! तो तुम्हारा जीवन अकारथ है! तस्वीर में ही देख लेना, मगर नित्यानंद की तोंद जरूर देख लेना। तोंदें तो बहुत हुईं मगर नित्यानंद, कोई उनका मुकाबला नहीं कर सकता। साधारणतः आदमी की तोंद होती है; नित्यानंद को देख कर लगता है तोंद को आदमी है। और नित्यानंद बड़े उपवासी हैं! उपवास करोगे, यह होनेवाला है, यह स्वाभाविक है।

ये कोई तपश्चर्याएं नहीं हैं। तपश्चर्या एक ही है: नकार कर दो बाहर से सारे ज्ञान को, विच्छिन्न कर लो अपने को..सारे सामाजिक सम्मोहन से, सारे सामाजिक संस्कारों से। हिंदू, मुसलमान, जैन, ईसाई, यहूदी कोई भी संस्कार हो, सारे संस्कारों से अपने को मुक्त कर लो; यही तपश्चर्या है। कठिन है, कठोर है। कपड़े उतारने जैसी नहीं है, चमड़ी उघाड़ने जैसी है। और जब तुम सारे संस्कारों से नकार कर दोगे तब तुम्हारे भीतर एक ऐसा महाशून्य घिरेगा कि तुम घबड़ाओगे कि मौत आई, कि अब मरा, पकड़ने को कुछ भी नहीं रहा, कोई सहारा न रहा! और जब तुम पूरे बेसहारा हो जाते हो तभी परमात्मा का सहारा मिलता है। जब तक तुम खुद ही अपना सहारा पकड़े हुए हो तो तब तक परमात्मा का सहारा नहीं मिलता।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३