ओशो– पुनर्जन्म का प्रारंभ जीवन की आकांक्षा है, जीते रहने की आकांक्षा, लस्ट फार लाइफ, जीवेषणा, और जीता ही रहूं, और जीता ही चला जाऊं। एक वासना पूरी नहीं होती कि दस वासनाओं को जन्म दे जाती है। और किसी भी वासना को पूरा करना हो, तो जीवन चाहिए, समय चाहिए, अन्यथा वासना पूरी नहीं होगी।
वासना के लिए भविष्य चाहिए। अगर भविष्य न हो, तो वासना क्या करेगी? अगर मैं इसी क्षण मर जाने वाला हूं, तो वासना करना व्यर्थ हो जाएगा। क्योंकि वासना के लिए जरूरी है कि कल हो, आने वाला दिन हो। आने वाला दिन हो, तो ही मैं वासना को फैलाऊं, श्रम करूं, भवन बनाऊं, पूर्ति की आकांक्षा करूं, दौडूं। वासना पूरी हो सके, उस मंजिल तक जाने का यत्न करूं। लेकिन समय की जरूरत है; टाइम इज़ नीडेड।
अगर वासना पूरी करनी है, तो समय के बिना पूरी नहीं हो सकती। समय चाहिए। और अगर हर वासना दस वासनाओं को जन्म दे जाती हो, तो हर वासना के बाद दस गुना समय चाहिए। हर जीवन के बाद हमें दस और जीवन चाहिए, इतनी वासनाएं हम पैदा कर लेते हैं।
और मजा यह है कि पूरे जीवन हम वासनाओं को पूरा करने की कोशिश करते हैं और आखिर में पाते हैं, कोई वासना पूरी नहीं हुई, मरते क्षण हम और भी वासनाओं को जिंदा कर लिए हैं। जन्म के समय जितनी वासनाएं हमारे पास होती हैं, मृत्यु के समय तक उनमें से एक भी कम नहीं होती, यद्यपि बहुत बढ़ जाती हैं। तब मरते क्षण और जन्म की आकांक्षा पैदा होती है। क्योंकि वासना है, तो और जीवन चाहिए। और जीवन पुनर्जन्म बन जाता है; और जीवन को पाने की इच्छा पुनर्जन्म बन जाती है।
पुनर्जन्म होता है जीवन की आकांक्षा से; जीवन की आकांक्षा होती है, वासना को तृप्त करने के लिए समय की मांग से। तो अगर ठीक से समझें, तो पुनर्जन्म का सूत्र या दुख का सूत्र, वासना है, तृष्णा है, डिजायर है। अगर कोई भी वासना नहीं है, तो आप कहेंगे कि कल की अब मुझे कोई जरूरत न रही, देन टाइम इज़ नाट नीडेड।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️ गीता-दर्शन – भाग 4