पीड़ा का कारण बाहर नहीं है बल्कि तुम्हारे होने का ढंग है “ओशो”

 पीड़ा का कारण बाहर नहीं है बल्कि तुम्हारे होने का ढंग है “ओशो”

ओशो– साधारण आदमी की तरकीब यह है कि वह सदा बाहर कारण खोजता है। तुम दुखी हो। तुम तत्क्षण कारण खोजते हो बाहर कि कौन मुझे दुखी कर रहा है? क्या कारण है मेरे दुख का?और बड़ा संसार है चारों तरफ। कोई न कोई कारण तुम खोज लेते हो। वह कारण झूठा है। दुखी तुम हो बिना कारण। क्योंकि तुम्हारे जीवन का ढंग मूर्च्छा से भरा है। और मूर्च्छा का अर्थ है दुख। मूर्च्छा में दुख ही फलता है और कुछ नहीं फलता। मूर्च्छा में दुख के ही फूल लगते हैं और कोई फूल नहीं लगते। दुख के कांटे लगते हैं, कहना चाहिए। जहर ही लगता है।लेकिन कारण तुम बाहर खोजते हो। तुम दुखी हो, तो तुम कारण बाहर खोजते हो। तुम क्रोधित हो, तो तुम कारण बाहर खोजते हो, कि किसी ने अपमान किया होगा जरूर! कोई दुख दे रहा है तभी तो मैं दुखी हूं।

जैसे-जैसे तुम्हारा ध्यान सम्हलेगा, वैसे-वैसे तुम्हें दिखाई पड़ेगा कारण तो कोई भी नहीं है, तुम ही हो। तब धीरे-धीरे तुम पाओगे कि किसी के गाली देने से तुम क्रोधित नहीं होते; तुम क्रोधित होते हो, क्योंकि क्रोध तुम्हारे भीतर है। गाली तो सिर्फ निमित्त है।

बुद्ध को भी तुमने गालियां दी हैं, जीसस को भी गालियां दी हैं, तुम्हारी बालटी खाली ही वापस लौट आई है। कोई क्रोध वहां से वापस नहीं लौटा।

गाली ज्यादा से ज्यादा निमित्त हो सकती है, लेकिन कारण नहीं है। कारण और निमित्त का यही फर्क है। कारण तो तुम हो, गाली निमित्त है। और अगर आज कोई गाली न
देता तो तुम कोई और निमित्त खोज लेते।निमित्त तुम खोजते ही; क्योंकि तुम्हारे भीतर जो क्रोध उबल रहा था, उसे बाहर निकलने के लिए कोई सहारा चाहिए था। अगर बिना सहारे निकलेगा तो तुम पागल मालूम पड़ोगे। तुम कोई न कोई कारण खोज लेते।

पीड़ा तुम हो। जैसे-जैसे ध्यान बनेगा, सधेगा, वैसे-वैसे कारण गिरते जाएंगे। तब बड़ी घबड़ाहट होगी। घबड़ाहट यह होगी कि मैं अपने ही कारण दुख में हूं। जब कोई कारण न दिखेगा, तभी तुम्हें मूल कारण दिखाई पड़ेगा, कि मैं ही कारण हूं, मैं ही अपना नरक हूं।

और यह बहुत बड़ा अनुभव है। इससे गुजरना ही पड़ता है। बहुत पीड़ादायी है। बड़ा संतापपूर्ण है। छेद देता है बुरी तरह प्राणों को। तड़फड़ाते हो। पीछे लौट जाने का मन होगा, कि वही दुनिया अच्छी
थी, दूसरे पर दोष डालकर जी तो लेते थे! अब तो कोई दूसरा दोषी भी न रहा। हम ही दोषी हो गए।

लेकिन अगर हिम्मत से इसको पार कर गए, तो तुम पाओगे कि जो व्यक्ति हिम्मत से इसे पार कर जाता है, पहले दूसरों पर से कारण हट जाते हैं। सब कारण स्वयं में आ जाते हैं। और जब सब कारण स्वयं में आ जाते हैं तो जीवन-क्रांति अनिवार्य हो जाती है।

☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
सुरति का दीया—(प्रवचन-१६)