दुनिया की हुकूमतें, दुनिया के पोलिटिशियंस, दुनिया के धर्म-पुरोहित, दुनिया के शोषण करने वाले लोग, कोई भी यह नहीं चाहते कि आप विचार करो वे सब चाहते हैं, विश्वास करो जिससे आपका शोषण मजे से होता रहेगा “ओशो”
ओशो– दुनिया में बड़ा खतरा है विश्वास के कारण। क्योंकि जो लोग विश्वास करते हैं, वे किसी भी चीज पर विश्वास कर सकते हैं। उन्हें कोई भी चीज समझाई जा सकती है, क्योंकि विश्वास करने वाला आदमी कभी विचार नहीं करता। इसलिए दुनिया की हुकूमतें, दुनिया के पोलिटिशियंस, दुनिया के धर्म-पुरोहित, दुनिया के शोषण करने वाले लोग, कोई भी यह नहीं चाहते कि आप विचार करो। वे सब चाहते हैं, विश्वास करो। क्योंकि आप विश्वास करोगे, तो दुनिया में कोई क्रांति नहीं होगी, कोई बगावत नहीं होगी। आपका शोषण मजे से होता रहेगा, आपको मूढ़ बनाया जाता रहेगा और आप चुपचाप चलते रहोगे। विचार से वे सब घबड़ाए हुए हैं। और विचार के न होने का यह परिणाम है कि पांच हजार साल से आदमी कष्ट उठा रहा है, न मालूम कितने प्रकार के, जिनका कोई हिसाब नहीं है। विचार पैदा होना चाहिए। क्योंकि विचार बगावत है, विचार रिबेलियन है। विचार पैदा होना चाहिए, तो शायद बगावत भी पैदा हो और हम एक नई दुनिया बनाने में समर्थ हो जाएं।
निश्चित ही पुरानी दुनिया तोड़नी पड़ेगी, नई दुनिया बनाने के लिए; पुराने ढांचे मिटाने होंगे, नये आदमी को जन्म देने के लिए।
पुरानी दुनिया भली नहीं थी। क्या आपको पता है, पांच हजार सालों में पंद्रह हजार युद्ध लड़े हैं पुरानी दुनिया ने। इस दुनिया को कोई भला कहेगा? यह दुनिया पागल रही होगी। जहां पांच हजार साल में पंद्रह हजार युद्ध लड़ने पड़े हों, जहां रोज युद्ध करने पड़े हों, जहां रोज हत्या करनी पड़ी हो, यह दुनिया अच्छी दुनिया रही होगी? यह पागलों की दुनिया रही होगी। इस दुनिया को बदल देना जरूरी है। और बदलने के लिए पहला सूत्र है, विश्वास करना नहीं, विचार करना, खोजना विवेक से, अपने प्राणों की पूरी ताकत से, जो ठीक लगे उसको स्वीकार करना। निश्चित ही जो मां-बाप अपने बच्चों को विचार करने में सहयोगी बनेंगे, बच्चे उनके लिए सदा के लिए आदर से भर जाएंगे। जो मां-बाप अपने बच्चों के लिए विचार और विवेक की शक्ति जगाने में सहयोगी होंगे, वे बच्चे आजीवन उन मां-बाप के प्रति सम्मान का अनुभव करेंगे। जो गुरु आदर नहीं मांगेगा, बल्कि इस तरह का जीवन जीएगा, जो कि बच्चे के भीतर स्वतंत्रता लाए, बच्चे के भीतर विचार और विवेक लाए, उस गुरु के प्रति उन बच्चों के माथे हमेशा के लिए झुक जाएंगे।आदर तो मिलता है; मांगा नहीं जाता। प्रेम मिलता है; मांगा नहीं जाता। सम्मान मिलता है; खरीदा नहीं जाता। न भय दिखा कर पाया जाता है, न झपटा जाता है। लेकिन वह तभी मिलता है जब हम किसी की आत्मा को विकसित होने में सहयोगी बनते हैं। तो निश्चित ही वह आत्मा सदा के लिए ऋणी हो जाती है, वह आत्मा हमेशा के लिए अनुगृहीत हो जाती है, एक ग्रेटिट्यूड उसके भीतर पैदा हो जाता है। क्या आप अपने बच्चों को स्वतंत्र करने में सहयोगी हो रहे हैं? अगर हो रहे हैं, तो ये बच्चे आपको सम्मान देंगे। जितने ये स्वतंत्र होंगे, उतना सम्मान देंगे। क्या इन बच्चों में विचार पैदा कर रहे हैं? अगर इनमें विचार पैदा किया, तो ये अनुगृहीत होंगे। क्योंकि विचार इन्हें जीवन की बड़ी ऊंचाइयों पर ले जाएगा, जीवन के शिखरों पर ले जाएगा, जीवन की गहराइयों में ले जाएगा। विचारपूर्वक ये सत्य को किसी दिन जानने में समर्थ हो सकेंगे। ये आनंदित हो सकेंगे किसी दिन। और जिस क्षण इनके जीवन में आनंद उतरेगा, उस दिन आपके प्रति इनका ऋण, उस दिन आपके प्रति इनकी कृतज्ञता, उस दिन आपके प्रति इनकी धन्यता का कोई पारावार न होगा, कोई सीमा न होगी।
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ आनंद की खोज-(प्रवचन-02)