एकाध दिन ऐसा व्रत उपासना करें, चौबीस घंटे एक व्रत ले लें कि चौबीस घंटे जो भी मिलेगा उसको पूरी तरह परमात्मा मानकर चलेंगे, जो भी होगा उसको पूरा परमात्मा देखेंगे जीवन बदल जाएगा “ओशो”

 एकाध दिन ऐसा व्रत उपासना करें, चौबीस घंटे एक व्रत ले लें कि चौबीस घंटे जो भी मिलेगा उसको पूरी तरह परमात्मा मानकर चलेंगे, जो भी होगा उसको पूरा परमात्मा देखेंगे जीवन बदल जाएगा “ओशो”

ओशो– कभी एकाध दिन ऐसा प्रयोग करें। चौबीस घंटे के लिए एक व्रत ले लें। बहुत तरह के व्रत लेते हैं लोग। चौबीस घंटे भूखे रहेंगे फिर भूखे ही रह पाते हैं, और कुछ होता नहीं। कि चौबीस घंटे घी न खाएंगे, न घी खाया तो क्या फर्क पड़ता है? कि चौबीस घंटे यह न करेंगे, वह न करेंगे।मैं एक व्रत आपको कहता हूं। चौबीस घंटे एक व्रत ले लें कि चौबीस घंटे जो भी मिलेगा उसको पूरी तरह परमात्मा मानकर चलेंगे। जो भी होगा उसको पूरा परमात्मा देखेंगे। कोई हिस्सा न काटेंगे। चौबीस घंटे- और आपकी जिंदगी दुबारा वही नहीं हो सकेगी। व्रत तो वही है जिसके पार जिंदगी फिर दुबारा वापिस न हो सके। अन्यथा व्रत का मतलब!

चौबीस घंटे खाना नहीं खाया। चौबीस घंटे के बाद दुगुना खा लिया। और आदमी वही—का—वही रहेगा। बल्कि बदतर हो सकता है। बदतर इसलिए हो सकता है कि अब यह और खयाल में आ गया कि व्रत भी कर बैठे। व्रत भी हो गया। अब यह और एक उपद्रव पीछे लग गया। भूखे क्या रहे, अहंकार का पेट भर गया। शरीर को भूखा मारा, अहंकार का पेट भर लिया।

चौबीस घंटे का एक व्रत लेकर देखें कि चौबीस घंटे में अस्वीकार करेंगे ही नहीं, किसी चीज को बुरा कहेंगे ही नहीं। परमात्मा ही देखे चले जाएंगे। बड़ी घबड़ाहट लगेगी कि इसमें तो लुट जाएंगे। पता नहीं कोई आदमी आकर मारपीट करने लगे, फिर क्या करेंगे? और डर लगता, क्योंकि कई को इस हालत में कर दिया है कि आपकी मारपीट करें। कई को लूटा है। इसलिए डर लगेगा कि ऐसा मौका वे लोग न छोड़ेंगे। अगर किसी को ऐसा पता चल गया कि चौबीस घंटे के लिए व्रत लिया है इस आदमी ने कि परमात्मा ही देखेंगे, तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी।

धर्म अभय में छलांग है। और यह व्रत अभय का प्रयोग है। भूखे मरने में कोई बड़ा अभय नहीं है। और जिनको ज्यादा खाने—पीने को मिला हुआ है, उनके लिए तो लाभ है, नुकसान जरा— भी नहीं है। इसलिए मजे की बात है कि सिर्फ ज्यादा खाने—पीने वाले समाज ही उपवास को व्रत मानते हैं। गरीब लोगों के समाज कभी भी उपवास को व्रत नहीं मानते हैं। अगर गरीब आदमी का समाज व्रत भी करता है तो उस दिन मिष्ठान्न खाता है। सिर्फ अमीरों के समाज व्रत में निराहार रहते हैं। गरीब आदमी का धार्मिक दिन आता है, तो उत्सव मनाता है खाकर। अमीर धार्मिक आदमी का दिन आता है, तो उत्सव मानता है भूखा रहकर। यह बिलकुल व्यवस्थित बातें हैं। ठीक अर्थशास्त्र से संबंधित। इनका धर्म से कोई लेना—देना नहीं। अमीर आदमी खा—खाकर परेशान है, उपवास उसको राहत देता है। गरीब आदमी भूखा रह—रहकर परेशान है, रोज तो ठीक से नहीं खा सकता, धार्मिक उत्सव के दिन ठीक से खा लेता है। इनका धर्म से कोई संबंध नहीं है, अर्थ से संबंध है।

इसलिए भारत में जैनों के पास एक समृद्ध समाज है तो भूखा रहना, उपवास रखना इत्यादि उनके धार्मिक कृत्य हैं। गरीब आदमी का समाज इनको धार्मिक कृत्य नहीं मान सकता। धर्म का दिन तो उत्सव का दिन है। क्योंकि पूरी जिंदगी तो गैर—उत्सव से भरी है। भूख से भरी है। अब धार्मिक दिन को और भूख से मरने में क्या प्रयोजन है! और फिर कोई भेद भी नहीं मालूम पड़ेगा। ऐसे ही भूखे हैं। ऐसे ही उपवास चल रहा है। ऐसे ही एकाशन में बैठे हुए हैं। अब और एकाशन क्या अर्थ लाएगा? इससे विपरीत चाहिए। स्वाद बदलने के लिए विपरीत अच्छा भी है। लेकिन धर्म से उसका कोई लेना—देना नहीं है।

ऐसा कुछ व्रत जिसके पार आप दुबारा वही आदमी न हो सकें। अगर चौबीस घंटे आपने परमात्मा देख लिया तो फिर आप दुबारा भूल न करेंगे कुछ और देखने की। क्योंकि इस चौबीस घंटे में जितनी आनंद की वर्षा आपके जीवन पर हो जाएगी, वह फिर आपको खींचेगा। बूंद में सागर के गिरने का अर्थ यही है। मैं बूंद हूं मेरे चारों तरफ जो मौजूद है वह सागर है। जिस दिन मैं उसमें परमात्मा देख पाऊंगा उस दिन मेरे हृदय के द्वार उसके लिए खुल जाएंगे। उस दिन सागर बूंद में गिर सकता है।

लेकिन धार्मिक आदमी अक्सर बूंद की तरह सागर की खोज पर निकलता है, जब कि सागर यहीं मौजूद है। धार्मिक आदमी कहता है कि ईश्वर की खोज पर जा रहे हैं। और ईश्वर यहीं मौजूद है। ज्यादा बेहतर होता कि ईश्वर की खोज पर न जाते, हृदय के द्वार खोलते, ताकि ईश्वर गिर सके। मगर हृदय के द्वार बंद हैं और हिमालय की यात्रा चल रही है। मक्का और मदीना और काशी की यात्रा चल रही है। और हृदय के द्वार बंद हैं। कहीं भी घूम आओ, बूंद अगर चारों तरफ से अपने को बंद किये है, तो सागर उसमें नहीं गिर सकता। और बूंद अगर अपने को चारों तरफ से बंद किये है तो सागर के पास भी पहुंच जाए तो भी गिरने की हिम्मत नहीं जुटा सकती।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

कैवल्य उपनिषद