साधना सिर्फ आपको निखारती है, परमात्मा को नहीं मिलाती “ओशो”

 साधना सिर्फ आपको निखारती है, परमात्मा को नहीं मिलाती “ओशो”

प्रश्न- क्या परमात्मा को पाने के लिए साधना ज़रूरी है?

ओशो– आप परमात्मा को साधना से नहीं ला सकते। वह तो मौजूद है। साधना से सिर्फ आप अपनी आंख खोलते हैं। साधना से सिर्फ आप अपने को तैयार करते हैं। परमात्मा तो मौजूद है, उसको पाने का कोई सवाल नहीं है।

ऐसा समझें कि आप अपने घर में बैठे हैं। सूरज निकल गया है, सुबह है। और आप सब तरफ से द्वार—दरवाजे बंद किए अंदर बैठे हैं। सूरज आपके दरवाजों को तोड़कर भीतर नहीं आएगा। लेकिन दरवाजे पर उसकी किरणें रुकी रहेंगी। आप चाहें कि जाकर बाहर सूरज की रोशनी को गठरी में बांधकर भीतर ले आएं, तो भी आप न ला सकेंगे। गठरी भीतर आ जाएगी, रोशनी बाहर की बाहर रह जाएगी। लेकिन आप एक काम कर सकते हैं कि दरवाजे खुले छोड़ दें, और सूरज भीतर चला आएगा।

न तो सूरज को जबरदस्ती भीतर लाने का कोई उपाय है। और न सूरज जबरदस्ती अपनी तरफ से भीतर आता है। आप क्या कर सकते हैं? एक मजेदार बात है। आप सूरज को भीतर तो नहीं ला सकते, लेकिन बाहर रोक सकते हैं। आप दरवाजा बंद रखें, तो भीतर नहीं आएगा। आप दरवाजा खोल दें, तो भीतर आएगा।

ठीक परमात्मा ऐसा ही मौजूद है। और जब तक आप अपने विचारों में बंद, अपने मन से घिरे, मुर्दे की तरह हैं, एक कब में, चारों तरफ दीवालों से घिरे हुए एक कारागृह में—वासनाओं का, विचारों का, स्मृतियों का कारागृह; आशाओं का, अपेक्षाओं का कारागृह—तब तक परमात्मा से आपका मिलन नहीं हो पाता। जिस क्षण यह कारागृह आपसे गिर जाता है, जिस क्षण, जैसे वस्त्र गिर जाएं, और आप नग्न हो गए, ऐसे ये सारे विचार—वासनाओं के वस्त्र गिर गए और आप नग्न हो गए अपनी शुद्धता में, उसी क्षण आपका मिलना हो जाता है।

साधना आपको निखारती है, परमात्मा को नहीं मिलाती। लेकिन जिस दिन आप निखर जाते हैं.. और कोई नहीं कह सकता कि कब आप निखर जाते हैं, क्योंकि इतनी अनहोनी घटना है कि कोई मापदंड नहीं है। और जांचने का कोई उपाय नहीं है। कोई दिशासूचक यंत्र नहीं है। कोई नक्‍शा नहीं है, अनचार्टर्ड है। यात्रा बिलकुल ही नक्‍शे रहित है।

आपके पास कुछ भी नहीं है कि आप पता लगा लें कि आप कहां पहुंच गए। निन्यानबे डिग्री पर पहुंच गए, कि साढ़े निन्यानबे डिग्री पर पहुंच गए कि कब सौ डिग्री हो जाएगी, कब आप भाप बन जाएंगे। यह तो जब आप बन जाते हैं, तभी पता चलता है कि बन गए। वह आदमी पुराना समाप्त हो गया और एक नई चेतना का जन्म हो गया। अकस्मात, अचानक विस्फोट हो जाता है।

लेकिन उस अकस्मात विस्फोट के पहले लंबी यात्रा है साधना की। जब पानी भाप बनता है, तो सौ डिग्री पर अकस्मात बन जाता है। लेकिन आप यह मत समझना कि निन्यानबे डिग्री पर, अट्ठानबे डिग्री पर भी अकस्मात बन जाएगा। सौ डिग्री तक पहुंचेगा, तो एकदम से भाप बन जाएगा। लेकिन सौ डिग्री तक पहुंचने के लिए जो गरमी की जरूरत है, वह साधना जुटाएगी।

इसलिए हमने साधना को तप कहा है। तप का अर्थ है, गरमी। वह तपाना है स्वयं को और एक ऐसी स्थिति में ले आना है, जहां परमात्मा से मिलन हो सकता है।

 ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३