पश्चिम के कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह सलाह देनी शुरू की है कि बाल-विवाह शुरू कर दो, अन्यथा खतरा है “ओशो”

 पश्चिम के कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह सलाह देनी शुरू की है कि बाल-विवाह शुरू कर दो, अन्यथा खतरा है “ओशो”

सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन उर्जा रुपांतरण का विज्ञान)

ओशो- पश्चिम मन के साथ प्रयोग कर रहा है, इसलिए विवाह टूट रहा है, परिवार नष्ट हो रहा है। मन के साथ विवाह और परिवार खड़े नहीं रह सकते। अभी दो वर्ष में तलाक है, कल दो घंटे में तलाक हो सकता है। मन तो घंटे भर में बदल जाता है। तो पश्चिम का सारा समाज अस्तव्यस्त हो गया है। पूरब का समाज व्यवस्थित था। लेकिन सेक्स की जो गहरी अनुभूति थी, वह पूरब को उपलब्ध नहीं हो सकी।
एक और स्थिरता है, एक और घड़ी है–अध्यात्म की। उस तल पर जो पति-पत्नी एक बार मिल जाते हैं या दो व्यक्ति एक बार मिल जाते हैं, उन्हें तो ऐसा लगता है कि वे अनंत जन्मों के लिए एक हो गए। वहां फिर कोई परिवर्तन नहीं है। उस तल पर चाहिए स्थिरता। उस तल पर चाहिए अनुभव।
तो मैं जिस अनुभव की बात कर रहा हूं, जिस सेक्स की बात कर रहा हूं, वह स्प्रिचुअल सेक्स है। आध्यात्मिक अर्थ नियोजन करना चाहता हूं काम की वासना में। और अगर मेरी यह बात समझेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि मां का बेटे के प्रति जो प्रेम है, वह आध्यात्मिक काम है, वह स्प्रिचुअल सेक्स का हिस्सा है।
आप कहेंगे, यह तो बहुत उलटी बात है! मां का बेटे के प्रति काम का क्या संबंध?
लेकिन जैसा मैंने कहा कि पुरुष और स्त्री, पति और पत्नी एक क्षण के लिए मिलते हैं, एक क्षण के लिए दोनों की आत्माएं एक हो जाती हैं। और उस घड़ी में जो उन्हें आनंद का अनुभव होता है, वही उनको बांधने वाला हो जाता है। कभी आपने सोचा कि मां के पेट में बेटा नौ महीने तक रहता है और मां के अस्तित्व से मिला रहता है। पति एक क्षण को मिलता है। बेटा नौ महीने के लिए एक होता है, इकट्ठा होता है। इसीलिए मां का बेटे से जो गहरा संबंध है, वह पति से भी कभी नहीं होता। हो भी नहीं सकता। पति एक क्षण के लिए मिलता है अस्तित्व के तल पर, जहां एक्झिस्टेंस है, जहां बीइंग है, वहां एक क्षण को मिलता है, फिर बिछुड़ जाता है। एक क्षण को करीब आते हैं और फिर कोसों का फासला शुरू हो जाता है। लेकिन बेटा नौ महीने तक मां की सांस से सांस लेता है, मां के हृदय से धड़कता है, मां के खून से खून, मां के प्राण से प्राण। उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता, वह मां का एक हिस्सा होता है।
इसीलिए स्त्री मां बने बिना कभी भी पूरी तरह तृप्त नहीं हो पाती। कोई पति स्त्री को कभी तृप्त नहीं कर सकता, जो उसका बेटा उसको कर देता है। कोई पति कभी उतना गहरा कंटेंटमेंट उसे नहीं दे पाता, जितना उसका बेटा उसको दे पाता है। स्त्री मां बने बिना पूरी नहीं हो पाती। उसके व्यक्तित्व का पूरा निखार और पूरा सौंदर्य उसके मां बनने पर प्रकट होता है। उससे उसके बेटे के आत्मिक संबंध बहुत गहरे हैं।
और इसीलिए आप यह भी समझ लो कि जैसे ही स्त्री मां बन जाती है, उसकी सेक्स में रुचि कम हो जाती है। यह कभी आपने खयाल किया? जैसे ही स्त्री मां बन जाती है, सेक्स के प्रति उसकी रुचि कम हो जाती है। फिर सेक्स में उसे उतना रस नहीं मालूम पड़ता। उसने एक और गहरा रस ले लिया है–मातृत्व का। वह एक प्राण के साथ और नौ महीने तक इकट्ठी जी ली है, अब उसे सेक्स में रस नहीं रह जाता।
अक्सर पति हैरान होते हैं। क्योंकि पति के पिता बनने से पुरुषों में कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मां बनने से स्त्री में बुनियादी फर्क पड़ जाता है। पिता बनने से पति में कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि पिता कोई बहुत गहरा संबंध नहीं है। जो नया व्यक्ति पैदा होता है उससे पिता का कोई गहरा संबंध नहीं है। पिता बिलकुल सामाजिक व्यवस्था है, सोशल इंस्टीट्यूशन है। पिता के बिना भी दुनिया चल सकती है। इसीलिए पिता से कोई गहरा संबंध नहीं है बेटे का।
मां से उसके बहुत गहरे संबंध हैं। और मां तृप्त हो जाती है उसके बाद, और उसमें एक और ही तरह की आध्यात्मिक गरिमा प्रकट होती है। जो मां नहीं बनी है स्त्री, उसको देखें; और जो मां बन गई है, उसे देखें। और उन दोनों की चमक और उनकी ऊर्जा और उनका व्यक्तित्व अलग मालूम प़डेगा। मां में एक दीप्ति दिखाई पड़ेगी–शांत। जैसे नदी जब मैदान में आ जाती है तब शांत हो जाती है। जो अभी मां नहीं बनी है, उस स्त्री में एक दौड़ दिखेगी। जैसे पहाड़ पर नदी दौड़ती है, झरने की तरह टूटती है, चिल्लाती है, गड़गड़ाहट है, आवाज है, दौड़ है। मां बन कर वह एकदम शांत हो जाती है।
इसीलिए मैं आपसे इस संदर्भ में यह भी कहना चाहता हूं कि जिन स्त्रियों को सेक्स का पागलपन सवार हो गया है–जैसे पश्चिम में–वे इसीलिए मां नहीं बनना चाहतीं, क्योंकि मां बनने के बाद सेक्स का रस कम हो जाता है। पश्चिम की स्त्री मां बनने से इनकार करती है, क्योंकि मां बनी कि सेक्स का रस गया। सेक्स का रस तभी तक रह सकता है, जब तक वह मां न बने।
तो पश्चिम की अनेक हुकूमतें घबरा गई हैं इस बात से कि यह रोग अगर बढ़ता चला गया तो उनकी संख्या का क्या होगा! हम यहां घबरा रहे हैं कि हमारी संख्या न बढ़ जाए। पश्चिम में मुल्क घबरा रहे हैं कि उनकी संख्या कहीं कम न हो जाए! क्योंकि स्त्रियों को अगर इतने तीव्र रूप से यह भाव पैदा हो जाए की मां बनने से सेक्स का रस कम हो जाता है और वे मां न बनना चाहें तो क्या किया जा सकता है! कोई कानूनी जबरदस्ती की जा सकती है? किसी को संतति-नियमन के लिए तो कानूनी जबरदस्ती भी की जा सकती है कि हम जबरदस्ती बच्चे नहीं होने देंगे। लेकिन किसी स्त्री को मजबूर नहीं किया जा सकता कि बच्चे पैदा करने ही पड़ेंगे।
पश्चिम के सामने हमसे बड़ा सवाल है। हमारा सवाल उतना बड़ा नहीं है। हम संख्या को रोक सकते हैं जबरदस्ती, कानूनन। लेकिन संख्या को कानूनन बढ़ाने का कोई भी रास्ता नहीं है। किसी व्यक्ति को जबरदस्ती नहीं की जा सकती कि तुम बच्चे पैदा करो। और आज से दो सौ साल के भीतर पश्चिम के सामने यह प्रश्न बहुत भारी हो जाएगा। क्योंकि पूरब की संख्या बढ़ती चली जाएगी, वह सारी दुनिया पर छा सकती है। और पश्चिम की संख्या क्षीण होती जा सकती है। स्त्री को मां बनने के लिए उन्हें फिर से राजी करना पड़ेगा।
और उनके कुछ मनोवैज्ञानिकों ने यह सलाह देनी शुरू की है कि बाल-विवाह शुरू कर दो, अन्यथा खतरा है। क्योंकि स्त्री होश में आ जाती है तो वह मां नहीं बनना चाहती, उसे सेक्स का रस लेने में ज्यादा ठीक मालूम पड़ता है। इसलिए बचपन में शादी कर दो, उसे पता ही न चले वह कब मां बन गई।
पूरब में जो बाल-विवाह चलता था, उसके एक कारणों में यह भी था। स्त्री जितनी युवा हो जाएगी और जितनी समझदार हो जाएगी और सेक्स का जैसे रस लेने लगेगी, वैसे वह मां नहीं बनना चाहेगी। हालांकि उसे कुछ पता नहीं कि मां बनने से क्या मिलेगा। यह तो मां बनने से ही पता चल सकता है। उसके पहले कोई उपाय नहीं है। …. 38 क्रमशः 

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3