अगर प्रेम और ध्यान का जन्म नहीं हुआ है तो उम्र फिजूल चली गई “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)
ओशो- बुद्ध के पास एक भिक्षु कुछ वर्षों से दीक्षित था। एक दिन बुद्ध ने उससे पूछा कि भिक्षु, तुम्हारी उम्र क्या है? उस भिक्षु ने कहा, मेरी उम्र? पांच वर्ष! बुद्ध कहने लगे, पांच वर्ष? तुम तो कोई सत्तर वर्ष के मालूम पड़ते हो! कैसा झूठ बोलते हो!
उस भिक्षु ने कहा, लेकिन पांच वर्ष पहले ही मेरे जीवन में ध्यान की किरण फूटी। पांच वर्ष पहले ही मेरे जीवन में प्रेम की वर्षा हुई। उसके पहले मैं जीता था, वह सपने में जीना था, वह नींद में जीना था। उसकी गिनती अब मैं नहीं करता हूं। कैसे करूं? जिंदगी तो इधर पांच वर्षों से शुरू हुई, इसलिए मैं कहता हूं, मेरी उम्र पांच वर्ष है।
बुद्ध ने अपने भिक्षुओं से कहा, भिक्षुओ, इस बात को खयाल में रख लेना। अपनी उम्र आज से तुम भी इसी तरह जोड़ना। यही उम्र को नापने का ढंग समझना।
अगर प्रेम और ध्यान का जन्म नहीं हुआ है तो उम्र फिजूल चली गई। अभी आपका ठीक जन्म भी नहीं हुआ है। और कभी भी इतनी देर नहीं हुई, जब कि हम प्रयास करें, श्रम करें और हम अपने नये जन्म को उपलब्ध न हो जाएं।
इसलिए मेरी बात से यह नतीजा मत निकाल लेना आप कि आप तो अब बचपन के पार हो चुके, इसलिए यह बात आने वाले बच्चों के लिए है। कोई आदमी किसी भी क्षण इतनी दूर नहीं निकल गया है कि वापस न लौट आए। कोई आदमी कितने ही गलत रास्तों पर चला हो, ऐसी जगह नहीं पहुंच गया है कि ठीक रास्ता उसे दिखाई न पड़ सके। कोई आदमी कितने ही हजारों वर्षों से अंधकार में रह रहा हो, इसका मतलब यह नहीं है कि वह दीया जलाएगा तो अंधकार कहेगा कि मैं हजार वर्ष पुराना हूं, इसलिए नहीं टूटता! दीया जलाने से एक दिन का अंधकार भी टूटता है, हजार साल का अंधकार भी उसी तरह टूट जाता है। दीया जलाने की चेष्टा बचपन में आसानी से हो सकती है, बाद में थोड़ी कठिनाई है।
लेकिन कठिनाई का अर्थ असंभावना नहीं है। कठिनाई का अर्थ है: थोड़ा ज्यादा श्रम। कठिनाई का अर्थ है: थोड़ा ज्यादा संकल्प। कठिनाई का अर्थ है: थोड़ा ज्यादा लगनपूर्वक, ज्यादा सातत्य से तोड़ना पड़ेगा, व्यक्तित्व की जो बंधी धाराएं हैं उनको, और नये मार्ग खोलने पड़ेंगे।
लेकिन जब नये मार्ग की जरा सी भी किरण फूटनी शुरू होती है, तो सारा श्रम ऐसा लगता है कि हमने कुछ भी नहीं किया और बहुत कुछ पा लिया है। जब एक किरण भी आती है उस आनंद की, उस सत्य की, उस प्रकाश की, तो लगता है कि हमने तो बिना कुछ किए पा लिया है। क्योंकि हमने जो किया था, उसका तो कोई भी मूल्य नहीं था। जो हाथ में आ गया है, वह तो अमूल्य है।
इसलिए यह भाव मन में आप न लेंगे। ऐसी मेरी प्रार्थना है।…. 29 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३