मां-बाप के प्रति श्रद्धा समाप्त करने में मां-बाप का अपना हाथ है, आप जिन बातों के लिए बच्चों को गंदा कहते हैं, बच्चे बहुत जल्दी पता लगा लेते हैं कि उन सारी गंदगियों में आप भलीभांति लवलीन हैं “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)
ओशो– बूढ़े लोग ध्यान की चेष्टा करते हैं दुनिया में, जो बिलकुल ही गलत है। ध्यान की सारी चेष्टा छोटे बच्चों पर की जानी चाहिए। लेकिन मरने के करीब पहुंच कर आदमी ध्यान में उत्सुक होता है! वह पूछता है–ध्यान क्या? योग क्या? हम कैसे शांत हो जाएं? जब जीवन की सारी ऊर्जा खो गई, जब जीवन के सब रास्ते सख्त और मजबूत हो गए, जब झुकना और बदलना मुश्किल हो गया, तब वह पूछता है, अब मैं कैसे बदल जाऊं? एक पैर आदमी कब्र में डाल लेता है और दूसरा पैर बाहर रख कर पूछता है, ध्यान का कोई रास्ता है?
अजीब सी बात है। बिलकुल पागलपन की बात है। यह पृथ्वी कभी भी शांत और ध्यानस्थ नहीं हो सकेगी, जब तक ध्यान का संबंध पहले दिन के पैदा हुए बच्चे से हम न जोड़ेंगे। अंतिम दिन के वृद्ध से नहीं जोड़ा जा सकता। व्यर्थ ही हमें बहुत श्रम उठाना पड़ता है बाद के दिनों में शांत होने के लिए, जो कि पहले एकदम हो सकता था।
छोटे बच्चों को ध्यान की दीक्षा, काम के रूपांतरण का पहला चरण है–शांत होने की दीक्षा, निर्विचार होने की दीक्षा, मौन होने की दीक्षा। बच्चे ऐसे भी मौन हैं, बच्चे ऐसे भी शांत हैं। अगर उन्हें थोड़ी सी दिशा दी जाए और उन्हें मौन और शांत होने के लिए घड़ी भर की शिक्षा दी जाए, तो जब वे चौदह वर्ष के होने के करीब आएंगे, जब काम जगेगा, तब तक उनका एक द्वार खुल चुका होगा। शक्ति इकट्ठी होगी और जो द्वार खुला है उसी द्वार से बहनी शुरू हो जाएगी। उन्हें शांति का, आनंद का, कालहीनता का, निरहंकार भाव का अनुभव सेक्स के बहुत अनुभव के पहले उपलब्ध हो जाएगा। वही अनुभव उनकी ऊर्जा को गलत मार्गों से रोकेगा और ठीक मार्गों पर ले आएगा।
लेकिन हम छोटे-छोटे बच्चों को ध्यान तो नहीं सिखाते, काम का विरोध सिखाते हैं! पाप है, गंदगी है, कुरूपता है, बुराई है, नरक है–यह सब हम बताते हैं! और इस सबके बताने से कुछ भी फर्क नहीं पड़ता, कुछ भी फर्क नहीं पड़ता। बल्कि हमारे बताने से वे और भी आकर्षित होते हैं और तलाश करते हैं कि क्या है यह गंदगी, क्या है यह नरक, जिसके लिए बड़े इतने भयभीत और बेचैन हैं?
और फिर थोड़े ही दिनों में उन्हें यह भी पता चल जाता है कि बड़े जिस बात से हमें रोकने की कोशिश कर रहे हैं, खुद दिन-रात उसी में लीन हैं। और जिस दिन उन्हें यह पता चल जाता है, मां-बाप के प्रति सारी श्रद्धा समाप्त हो जाती है।
मां-बाप के प्रति श्रद्धा समाप्त करने में शिक्षा का हाथ नहीं है। मां-बाप के प्रति श्रद्धा समाप्त करने में मां-बाप का अपना हाथ है। आप जिन बातों के लिए बच्चों को गंदा कहते हैं, बच्चे बहुत जल्दी पता लगा लेते हैं कि उन सारी गंदगियों में आप भलीभांति लवलीन हैं। आपकी दिन की जिंदगी दूसरी है और रात की दूसरी। आप कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं। छोटे बच्चे बहुत एक्यूट आब्जर्वर होते हैं। वे बहुत गौर से निरीक्षण करते रहते हैं कि क्या हो रहा है घर में! वे देखते हैं कि मां जिस बात को गंदा कहती है, बाप जिस बात को गंदा कहता है, वही गंदी बात दिन-रात घर में चल रही है। इसका उन्हें बहुत जल्दी बोध हो जाता है। उनका सारा श्रद्धा का भाव विलीन हो जाता है–कि धोखेबाज हैं ये मां-बाप! पाखंडी हैं! हिपोक्रेट हैं! ये बातें कुछ और कहते हैं, करते कुछ और हैं।
और जिन बच्चों का मां-बाप पर से विश्वास उठ गया, वे बच्चे परमात्मा पर कभी विश्वास नहीं कर सकेंगे, इसको याद रखना। क्योंकि बच्चों के लिए परमात्मा का पहला दर्शन मां-बाप में होता है। अगर वही खंडित हो गया, तो ये बच्चे भविष्य में नास्तिक हो जाने वाले हैं। बच्चों को पहले परमात्मा की प्रतीति अपने मां-बाप की पवित्रता से होती है। पहली दफा बच्चे मां-बाप को ही जानते हैं निकटतम और उनसे ही उन्हें पहली दफा श्रद्धा और रिवरेंस का भाव पैदा होता है। अगर वही खंडित हो गया, तो इन बच्चों को मरते दम तक वापस परमात्मा के रास्ते पर लाना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि पहला परमात्मा ही धोखा दे गया। जो मां थी, जो बाप था, वही धोखेबाज सिद्ध हुआ।
आज सारी दुनिया में जो लड़के यह कह रहे हैं कि कोई परमात्मा नहीं है, कोई आत्मा नहीं है, कोई मोक्ष नहीं है, धर्म सब बकवास है–उसका कारण यह नहीं है कि लड़कों ने पता लगा लिया है कि आत्मा नहीं है, परमात्मा नहीं है। उसका कारण यह है कि लड़कों ने मां-बाप का पता लगा लिया है कि वे धोखेबाज हैं। और यह सारा धोखा सेक्स के आस-पास केंद्रित है। यह सारा धोखा सेक्स के केंद्र पर खड़ा हुआ है।
बच्चों को यह सिखाने की जरूरत नहीं कि सेक्स पाप है, बल्कि ईमानदारी से यह सिखाने की जरूरत है कि सेक्स जिंदगी का एक हिस्सा है और तुम सेक्स से ही पैदा हुए हो और हमारी जिंदगी में वह है। ताकि बच्चे सरलता से मां-बाप को समझ सकें और जब जीवन को वे जानें तो वे आदर से भर सकें कि मां-बाप सच्चे और ईमानदार थे। उनको जीवन में आस्तिक बनाने में इससे बड़ा संबल और कुछ भी नहीं होगा कि वे अपने मां-बाप को सच्चा और ईमानदार अनुभव कर सकें।
लेकिन आज सब बच्चे जानते हैं कि मां-बाप बेईमान और धोखेबाज हैं। यह बच्चे और मां-बाप के
बीच एक कलह का कारण बनता है। सेक्स का दमन पति और पत्नी को तोड़ दिया है। मां-बाप और बच्चों को तोड़ दिया है।
नहीं, सेक्स का विरोध नहीं, निंदा नहीं, बल्कि सेक्स की शिक्षा दी जानी चाहिए। जैसे ही बच्चे पूछने को तैयार हो जाएं, जो भी जरूरी मालूम पड़े, जो उनके समझ के योग्य मालूम पड़े, वह सब उन्हें बता दिया जाना चाहिए। ताकि वे सेक्स के संबंध में अति उत्सुक न हों; ताकि उनका आकर्षण न पैदा हो; ताकि वे दीवाने होकर गलत रास्तों से जानकारी पाने की कोशिश न करें।
आज बच्चे सब जानकारी पा लेते हैं यहां-वहां से। गलत मार्गों से, गलत लोगों से उन्हें जानकारी मिलती है, जो जीवन भर उन्हें पीड़ा देती है। और मां-बाप और उनके बीच एक मौन की दीवार होती है, जैसे मां-बाप को कुछ भी पता नहीं और बच्चों को भी कुछ पता नहीं! उन्हें सेक्स की सम्यक शिक्षा मिलनी चाहिए–राइट एजुकेशन।
और दूसरी बात, उन्हें ध्यान की दीक्षा मिलनी चाहिए–कैसे मौन हों, कैसे शांत हों, कैसे निर्विचार हों। और बच्चे तत्क्षण निर्विचार हो सकते हैं, मौन हो सकते हैं, शांत हो सकते हैं। चौबीस घंटे में एक घंटे अगर बच्चों को घर में मौन में ले जाने की व्यवस्था हो–निश्चित ही, वे मौन में तभी जा सकेंगे, जब आप भी उनके साथ मौन बैठ सकें। हर घर में एक घंटा मौन का अनिवार्य होना चाहिए। एक दिन खाना न मिले घर में तो चल सकता है, लेकिन एक घंटा मौन के बिना घर नहीं चल सकता है। वह घर झूठा है, उस घर को परिवार कहना गलत है, जिस परिवार में एक घंटे के मौन की दीक्षा नहीं है।
वह एक घंटे का मौन चौदह वर्षों में उस दरवाजे को तोड़ देगा–रोज धक्के मारेगा–उस दरवाजे को तोड़ देगा, जिसका नाम ध्यान है। जिस ध्यान से मनुष्य को समयहीन, टाइमलेसनेस, ईगोलेसनेस, अहंकार-शून्य अनुभव होता है, जहां से आत्मा की झलक मिलती है। वह झलक सेक्स के अनुभव के पहले मिल जानी जरूरी है। अगर वह झलक मिल जाए तो सेक्स के प्रति अतिशय दौड़ समाप्त हो जाएगी। ऊर्जा इस नये मार्ग से बहने लगेगी।…. 25 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३