तप का वास्तविक अर्थ है, सत्य की खोज में जो भी दुख आ जाएं, उन्हें सहज स्वीकार करने की तैयारी “ओशो”
ओशो– अक्सर तो ऐसा होता है कि जो लोग अपने को कष्ट देते हैं, वे कष्ट देने में रस पाते हैं-सैडिस्ट हैं। अपने को सताने में या दूसरे को सताने में। या सैडिस्ट हैं या मैसोचिस्ट हैं। जो लोग तप को बहुत आदर देते हैं, वे अक्सर मैसोचिस्ट होते हैं, खुद को सताने में रस पाते हैं।अगर एक आदमी ने बीस दिन का उपवास किया है, तो उसके जुलूस में पचासों लोग इकट्ठे होकर सम्मिलित होंगे। आप देख लेना, जो उपवास किया है, वह मैसोचिस्ट है, और जो जुलूस में सम्मिलित हुए हैं, वे सैडिस्ट हैं। इनको मजा आ रहा है कि इसने उपवास किया, इनको बडा मजा आ रहा है कि यह आदमी भूखा मरा। यह भूखा मरने वाला है, इसने अपने को सताकर मजा लिया। ये इसके सताए जाने में मजा ले रहे हैं। इनको बड़ा रस आ रहा है।
ये विकृतियां हैं। अध्यात्म में भी ये विकृतियां खूब प्रवेश कर जाती हैं। कुछ लोग हैं, जो अपने को सताने में ही मजा लेने लगते हैं। और इन लोगों के आस-पास, जो अपने को सताने में मजा लेते हैं, मैसोच जैसे लोग, इनके आस-पास सैडिस्ट इकट्ठे हो जाते हैं, जो दूसरे को सताने में मजा लेते हैं।
तप के नाम से सौ में निन्यानबे मौकों पर मानसिक बीमार संलग्न होते हैं। लेकिन एक व्यक्ति सौ में ऐसा भी होता है, जो तप में मानसिक बीमारी की तरह नहीं जाता। वस्तुत: सत्य की खोज में जो भी कष्ट आ जाएं, उन्हें सहने की तैयारी दिखाता है, उसी का नाम तप है। सत्य की खोज में जो भी कष्ट आ जाएं! कष्टों को निर्मित नहीं करता। अगर वह ध्यान करने खड़ा है और धूप आ जाए, तो वह धूप को सहने को तैयार होता है। लेकिन वह ध्यान करने के लिए धूप की खोज नहीं करता, कि छाया में बैठा हो, तो ध्यान न कर सके। अगर उसे लगे कि ध्यान करते वक्त अगर भोजन नहीं लिया जाए तो ध्यान गहरा हो जाता है, तो वह उपवास भी करता है। लेकिन वह ऐसा नहीं कहता कि उपवास करो, तो ही ध्यान हो सकेगा। सहज जो भी कष्ट उसे झेलने पडे परम सत्य की खोज में, वह उनके लिए तैयार होता है, सहर्ष!लेकिन तब उनकी प्रशंसा की वह चिंता नहीं करता। अगर आप उससे कहें कि तुमने धूप में रहकर बडा काम किया है, हम तुम्हारी पूजा करेंगे। तो वह कहेगा कि तुम पागल हो। धूप में खड़े रहकर मैंने कोई काम नहीं किया है। काम तो मैं भीतर कर रहा था, धूप आ गई, तो मैंने उसकी बाधा को अस्वीकार नहीं किया। – मैंने उसे स्वीकार कर लिया। ध्यान तो मैं भीतर कर रहा था। भूख लग गई, अगर भोजन के लिए जाऊं तो बाधा पडेगी, इसलिए भोजन के लिए नहीं गया; भूख के लिए राजी हो गया। काम तो मैं भीतर कर रहा था। मैं भूखा नहीं रहा हूं। मैं धूप में नहीं खड़ा हूं। यह परिस्थिति थी, उसे मैंने शांति से सह लिया है।
तप का वास्तविक अर्थ है, सत्य की खोज में जो भी दुख आ जाएं, उन्हें सहज स्वीकार करने की तैयारी। लेकिन सत्य की खोज से विचलित न होना, सत्य की खोज से रंचमात्र भी यहां-वहां न जाना, चाहे कितने ही कांटे हों पथ पर।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 4
तत्वज्ञ—कर्मकांड के पार
अध्याय—8 – प्रवचन—ग्यारहवां