आप की दी गई एक गाली से अकल्पनीय अहित हो सकता है इसलिए अधार्मिक वह है, जो अपना शत्रु है “ओशो”
ओशो– जो आदमी अपना शत्रु है, वही आदमी अधार्मिक है। और जो अपना शत्रु है, वह किसी का मित्र तो कैसे हो सकेगा? जो अपना भी मित्र नहीं, वह किसका मित्र हो सकेगा! जो अपने लिए ही दुख के आधार बना रहा है, वह सबके लिए दुख के आधार बना देगा।पहला पाप अपने साथ शत्रुता है। फिर उसका फैलाव होता है। फिर अपने निकटतम लोगों के साथ शत्रुता बनती है, फिर दूरतम लोगों के साथ। फिर जहर फैलता चला जाता है। हमें पता भी नहीं चलता।
ऐसे ही हम जो करते हैं, हम तो करके चुक भी जाते हैं। आपने एक गाली दे दी। बात खत्म हो गई। फिर आप गीता पढ़ने लगे। लेकिन वह गाली की जो रिपल्स, जो तरंगें पैदा हुईं, वे चल पड़ीं। वे न मालूम कितने दूर के छोरों को छुएंगी। और जितना अहित उस गाली से होगा, उतने सारे अहित के लिए आप जिम्मेवार हो गए।
आप कहेंगे, कितना अहित हो सकता है एक गाली से? अकल्पनीय अहित हो सकता है। और जितना अहित हो जाएगा इस विश्व के तंत्र में, उतने के लिए आप जिम्मेवार हो जाएंगे। और कौन जिम्मेवार होगा? आपने ही उठाईं वे लहरें। आपने ही पैदा किया वह सब। आपने ही बोया बीज। अब वह चल पड़ा। अब वह दूर-दूर तक फैल जाएगा। एक छोटी-सी दी गई गाली से क्या-क्या हो सकता है! अगर आपने अकेले में दी हो और किसी ने न सुनी हो, तब तो शायद आप सोचेंगे कि कुछ भी नहीं होगा इसका परिणाम।लेकिन इस जगत में कोई भी घटना निष्परिणामी नहीं है। उसके परिणाम होंगे ही। कठिन मालूम पड़ेगा। किसी को गाली दी हो, उसका दिल दुखाया हो, तब तो हमने कोई शत्रुता खड़ी की है। लेकिन अंधेरे में गाली दे दी हो, तो उससे कोई शत्रुता पैदा हो सकती है? उससे भी पैदा होती है।
आप बहुत सूक्ष्म तरंगें पैदा करते हैं अपने चारों ओर। वे तरंगें फैलती हैं। उन तरंगों के प्रभाव में जो लोग भी आएंगे, वे गलत रास्ते पर धक्का खाएंगे। उन तरंगों के प्रभाव में गलत रास्ते पर धक्का खाएंगे।
अभी इस पर बहुत काम चलता है, सूक्ष्मतम तरंगों पर। और खयाल में आता है कि अगर गलत लोग एक जगह इकट्ठे हों, सिर्फ चुपचाप बैठे हों, कुछ न कर रहे हों, सिर्फ गलत हों, और आप उनके पास से गुजर जाएं, तो आपके भीतर जो गलत हिस्सा है, वह ऊपर आ जाता है। और जो ठीक हिस्सा है, वह नीचे दब जाता है।
दोनों हिस्से आपके भीतर हैं। अगर कुछ अच्छे लोग बैठे हों एक जगह, प्रभु का स्मरण करते हों, कि प्रभु का गीत गाते हों, कि किन्हीं सदभावों के फूलों की सुगंध में जीते हों, कि सिर्फ मौन ही बैठे हों। जब आप उनके पास से गुजरते हैं–वही आप, जो गलत लोगों के पास से गुजरे थे, और आपका गलत हिस्सा ऊपर आ गया था–जब आप इन लोगों के पास से गुजरते हैं, तो दूसरी घटना घटती है। आपका गलत हिस्सा नीचे दब जाता है; आपका श्रेष्ठ हिस्सा ऊपर आ जाता है।
आपकी संभावनाओं में इतने सूक्ष्मतम अंतर होते हैं। और हम चौबीस घंटे जो कर रहे हैं, उसका कोई हिसाब नहीं रखता कि हम क्या कर रहे हैं। एक छोटा-सा गलत बोला गया शब्द कितने दूर तक कांटों को बो जाएगा, हमें कुछ पता नहीं है।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 3
मालकियत की घोषणा—(अध्याय-6)
प्रवचन—तीसरा